चयनित विषयवस्तु में हास्यात्मक चित्र कथाओं के लक्षण बताइए।

चयनित विषयवस्तु में हास्यात्मक चित्र कथाओं के लक्षण बताइए।

उत्तर— चयनित विषयवस्तु में हास्य कथाओं का समावेश आवश्यक होता है क्योंकि जब तक छात्रों का कक्षा-कक्ष में मनोरंजन नहीं होगा तब तक उनकी रुचि कक्षा-कक्ष में नहीं होगी। इसलिये प्रत्येक शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि उसको अपने स्तर से सभी छात्रों का मनोरंजन करना चाहिये। विषयवस्तु के चयनकर्त्ताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वें कार्टून कथाओं एवं हास्य कथाओं का प्रधानता के साथ चयन करें। इससे छात्रों के अधिगम स्तर में तीव्र गति से वृद्धि होगी।
चयनित विषयवस्तु में समाहित सर्वोत्तम हास्य कथाओं की विशेषताएँ—जब शैक्षिक दृष्टि से हास्य चित्र कथाओं का चयन किया जाता है तो उनके ऊपर भी गम्भीरता से विचार किया जाता है। इन सभी हास्य चित्र कथाओं में एक सन्देश छिपा होता है । सन्देश तथा शिक्षाओं के कारण ही इनकी उपयोगिता को स्वीकार किया जाता है। हास्य चित्र कथाओं के चयन में अनेक सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिये। हास्य चित्र कथाओं के स्वरूप सम्बन्धी सावधानियों, गुणों एवं विशेषताओं को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) हास्य चित्र कथाओं में स्पष्टता—हास्य चित्र कथाओं में स्पष्टता का समावेश होना चाहिये जिससे छात्र जिस चित्र पर भी दृष्टि डालें उसको स्पष्ट रूप से समझ सकें। यदि छात्र अस्पष्ट चित्र देखेगा तो उसके स्वरूप के बारे में नहीं समझ सकेगा फलस्वरूप वह उस चित्रकथा का पूर्ण आनन्द प्राप्त नहीं कर सकेगा। इस स्थिति में हास्य चित्र कथाओं के द्वारा प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी। अतः संलग्नता एवं रुचि के लिये तथा हास्य चित्र कथाओं में सर्वोत्तमता लाने के लिए हास्य चित्र कथाओं के चित्र स्पष्ट होने चाहिये।
(2) हास्य चित्र कथाओं के उद्देश्य—हास्य चित्र कथाओं का एक उद्देश्य होता है। जो भी हास्य कथा विषयवस्तु में चयनित की जाय उससे पूर्व उसका उद्देश्य होना चाहिये जैसे- जानवरों तथा पक्षियों से सम्बन्धित हास्य कथाओं का वर्णन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि छात्रों का पक्षियों तथा जानवरों के प्रति लगाव उत्पन्न हो। वह जानवरों तथा पक्षियों को अपने जीवन का अंग समझे। इससे एक ओर छात्रों का मनोरंजन होगा तो दूसरी ओर छात्रों की रुचि में वृद्धि होगी।
(3) हास्य चित्र कथाओं में ऐतिहासिक तथ्य—जो भी हास्य कथाएँ प्रस्तुत की जायें उनका सम्बन्ध ऐतिहासिक घटनाओं से होना चाहिये; जैसे- -अकबर तथा बीरबल की कहानियों को हास्य चित्र कथाओं के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। बीरबल की सूझ-बूझ से राजा अकबर अनेक बार समस्याओं से बच जाते थे। इन सभी प्रकार की कथाओं में मनोरंजन भी होता है तथा छात्रों को विभिन्न प्रकार की कुशलताओं को सीखने का अवसर मिलता है।
(4) हास्य चित्र कथाओं में पर्यावरण—हास्य चित्र कथाओं का सम्बन्ध बालकों के वातावरण से होना चाहिये; जैसे— एक बालक सड़क पर कूड़ा फेंकता है। एक दिन उसने केला खाकर छिलका सड़क पर फेंक दिया जब वह सड़क पर बाहर घूमने निकला तो गिर गया । इससे छात्रों को हँसी भी आयेगी तथा उनको एक सन्देश मिलेगा कि दैनिक जीवन में छिलंका तथा अन्य कूड़ा सड़क पर नहीं फेंकना चाहिये। इस प्रकार की स्थिति में छात्रों का परिवेशीय घटनाओं से सम्बन्ध होने के कारण संलग्नता वृद्धि होगी।
(5) हास्य चित्र कथाओं में चित्र—अनेक अवसरों पर जानवरों तथा पक्षियों से सम्बन्धित चित्र कथाओं को चयनित किया जाता है। चयन की इस प्रक्रिया में पक्षियों एवं जानवरों के वास्तविक रूप-रंग वाले चित्र होने चाहिये जिससे छात्र प्रत्येक पक्षी तथा जानवर को पहचान सके; जैसे—तोते का रंग हरा होता है तो उसका प्रदर्शन काले रंग से नहीं होना चाहिये। चित्र कथाओं में वास्तविकता के समावेश से की रुचि में व्यापक वृद्धि होगी।
(6) हास्य चित्र कथाओं में सकारात्मकता—हास्य चित्र कथाओं में मनोरंजन के साथ-साथ सकारात्मक दृष्टिकोण का भी समावेश होना चाहिये। इससे छात्र सफलता तथा आशावादिता के बारे में सीख सकेंगे; जैसे—वीर बालक राक्षस को मार देता है तथ बालकों को राक्षस से छुड़ा लेता है। इस प्रकार से उस वीर बालक की सम्पूर्ण समाज में प्रशंसा होती है तथा उसको पुरस्कार दिया जाता है। इस प्रकार की हास्य चित्र कथाओं के द्वारा छात्रों की रुचि में वृद्धि होती है।
(7) हास्य चित्र कथाओं में कल्पनाएँ—हास्य चित्र कथाओं में कल्पनाओं का समावेश भी होना चाहिये क्योंकि छात्रों को विभिन्न प्रकार की कल्पनाएँ बहुत अच्छी लगती हैं। कल्पनाओं का स्वरूप छात्रों के स्तरानुकूल होना चाहिये; जैसे— हास्य चित्र कथाओं में सोहन का पालतू कुत्ता परी के आशीर्वाद से उड़ने लगता है या सोहन स्वयं परी के आशीर्वाद से चन्द्रमा पर पहुँच जाता है। इस प्रकार की कल्पनाओं के द्वारा छात्रों में एक ओर संलग्नता एवं रुचि का विकास होता है तो दूसरी ओर छात्रों में अन्वेषण की प्रकृति का विकास होता है।
(8) हास्य चित्र कथाओं में परम्पराएँ—हास्य चित्र कथाओं में परम्पराओं का समावेश होने से छात्रों को अपनी परम्पराओं को सीखने का अवसर मिलता है। इसके साथ-साथ उनकी रुचि एवं संलग्नता में भी व्यापक वृद्धि होती है; जैसे- -एक छात्र जब यह देखता है कि बिल्ली के बच्चे अपनी माँ से आशीर्वाद लेकर विद्यालय पढ़ने के लिये जाते हैं तो छात्र को हँसी भी आती है तथा वह एक परम्परा को सीखता है कि छोटे बालक तथा बालिकाओं को अपने से बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये।
(9) हास्य चित्र कथाओं में सामाजिक मूल्य—हास्य चित्र कथाओं को प्रस्तुत करते समय उनमें सामाजिक मूल्यों तथा व्यवस्थाओं का भी ध्यान रखना चाहिये । हास्य चित्र कथाओं में प्रेम, सहयोग, त्याम एवं उदारता सम्बन्धी घटनाओं को बीच-बीच में स्थान देना चाहिये । इससे छात्रों को मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों एवं गतिविधियों को सीखने के अवसर प्राप्त हो सकेंगे।
(10) हास्य चित्र कथाओं में सांस्कृतिक तथ्य —चयनित विषयवस्तु में उन सांस्कृतिक तथ्यों का समावेश होना चाहिये जो कि समाज तथा व्यवस्था से सम्बन्धित हों; जैसे— भारतीय संस्कृति में शठे शाठ्यम् समाचरेत’ का पाठ पढ़ाया जाता है। इसके साथ-साथ प्रेम, सहयोग एवं उदारता का भी प्रस्तुतीकरण किया जाता है। इन सभी मूल्यों से सम्बन्धित हास्य चित्र कथाओं को चयनित विषयवस्तु में स्थान देना चाहिये।
अतः कहा जा सकता है कि हास्य चित्र कथाओं के द्वारा छात्रों की रुचि एवं संलग्नतां को भाषा कक्षा-कक्ष के प्रति विकसित किया जा सकता है। भाषायी विषयवस्तु में हास्य कथाओं का उपयोग मात्र मनोरंजन के लिये ही नहीं होता बल्कि इनके छात्रों में विविध प्रकार के गुणों, कौशलों एवं व्यावहारिक योग्यताओं को विकसित किया जाता है।
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