छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकता की पूर्ति हेतु शैक्षणिक रणनीति का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए ।
छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकता की पूर्ति हेतु शैक्षणिक रणनीति का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए ।
उत्तर— छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के प्रत्युत्तर में शैक्षणिक रणनीतियाँ–शिक्षकों के सामने अपनी कक्षा से सम्बन्धित कई चुनौतियाँ सामने आती है जैसे कि कक्षा में विविध आवश्यकता से ग्रसित विद्यार्थियों को पढ़ाने हेतु विभिन्न समावेशित शिक्षण विधियों की आवश्यकता पड़ती है। इन कक्षाओं में विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। वर्तमान में अधिकांश विद्यार्थियों को लाभ पहुँचाने के लिए अनेक परिवर्तन हुए।
वर्तमान में शिक्षक अपनी पारम्परिक विधियों के साथ ऐसी विधियों का समावेश कर रहे हैं जिससे कक्षा के कमजोर एवं अलग-अलग आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को भी लाभ मिल रहा है। व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षक पाठ योजना का निर्माण, अनुकूलित तकनीक, विशिष्ट शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग कक्षा शिक्षण में करते हैं। समावेशित कक्षा में शिक्षक को कुछ अलग करना होता है। इसलिए वर्तमान में समावेशित शिक्षा की पैडागोजी के अनुसंधान को बढ़ावा दिया है इसके प्रमुख बिन्दु निम्न हैं—
(1) सभी बच्चों की शैक्षणिक सहभागिता में वृद्धि करने के लिए कौनसी रणनीति सहायक है ? उस रणनीति का चयन करना; जैसे—विशेष शैक्षणिक आवश्यकता वाले विधायी तथा अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता वाले विद्यार्थी जैसे अधिगम अक्षम, स्वालीन ADHD आदि के लिए विशेष अतिरिक्त रणनीति ।
(2) समावेशित शिक्षा की पैडागोजी शिक्षकों के लिए किस प्रकार उपयोगी है ? कक्षा शिक्षण में उनका उपयोग कैसे किया जाए ?
वर्तमान में विद्यार्थी केन्द्रित पैडागोजी पर जोर दिया जा रहा है। शिक्षकों का विविध पृष्ठभूमि, क्षमता, अभिरुचि तथा अधिगम आवश्यकताओं वाले विद्यार्थी से सामना होगा। हालाँकि विशेष विद्यालय में अलग-अलग निःशक्तता के लिए विधियाँ अलग-अलग होती हैं। विद्यार्थियों की आवश्यकता के दृष्टिगत यह भी आवश्यक है कि क्षेत्रीय परिस्थितियों एवं संस्कृतियों को भी ध्यान में रखा जाए। सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, जैसी नीतियाँ और कार्यक्रम को लागू करने के बाद यह आवश्यक हो गया है कि शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में अन्य बच्चों की भाँति विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के कक्षा-समायोजन का प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। समावेशित कक्षा में निःशक्त बच्चों को पढ़ाने हेतु ‘विशेष शैक्षणिक उपागम’ का प्रयोग करना चाहिए या ‘सामान्य शैक्षणिक उपागम’ को अपनाना चाहिए । इस विवाद के फलस्वरूप दो प्रमुख बातें सामने आती हैं—
(1) सामान्य अन्तर – सभी बच्चों की आवश्यकताएँ अलगअलग होती हैं तथा विशिष्ट आवश्यकताओं के छोटे-छोटे समूह बनते हैं। कुछ बच्चे बहु विकलांगता से ग्रसित होने की वजह से उनकी आवश्यकता बढ़ जाती है। दृष्टिबाधित बच्चों को ब्रेल, अबेकस की आवश्यकता होती है तथा श्रवण बाधित को सांकेतिक भाषा से शिक्षण की आवश्यकता होती है। शोधकर्त्ता इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाये हैं कि छोटे-छोटे समूह की आवश्यकताएँ समान होती हैं या असमान। विकलांगता की मात्रा, प्रकार प्रकृति तथा घटित होने का समय अलगअलग होता है जिस कारण किसी निश्चित विधि को अपनाया जाना सम्भव नहीं होता। सामान्य विद्यालयों के शिक्षकों द्वारा अपनाई जाने वाले विधि से इनकी विधि अलग होती है ।
(2) विशिष्ट अन्तर – सभी बच्चों की आवश्यकता अलगअलग होने के साथ-साथ कुछ आवश्यकताएँ समान होती है । उन समान आवश्यकताओं को सामान्य विधि द्वारा शिक्षण किया जा सकता है। विधायी केन्द्रित पैडागोजी को अपनाने से विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इसलिए निःशक्त विद्यार्थियों को अलग विधियों द्वारा शिक्षण देने की आवश्यकता नहीं है ।
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