जल संग्रहण पर प्रकाश डालें।

जल संग्रहण पर प्रकाश डालें।

उत्तर⇒जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया जाता है जिससे कि ‘जैव-मात्रा’ उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका प्रमुख उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधों एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिससे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा न हो। जल संभर प्रबंधन न केवल जल संभर समुदाय का उत्पादन एवं आय बढ़ाता है वरन् सूखे एवं बाढ़ को भी शांत करता है तथा निचले बाँध एवं जलाशयों का सेवा काल भी बढ़ाता है। यथा छोटे-छोटे गड्ढे खोदना, झीलों का निर्माण, साधारण जल संभर व्यवस्था की स्थापना. मिट्टी के छोटे बाँध बनाना, रेत तथा चूने के पत्थर के संग्रहक बनाना तथा घर की छतों से जल एकत्र करना। इससे भूजल स्तर के संग्रहक बनाना तथा नदी भी पुनः जीवित हो जाती है।
जल संग्रहण (water harvesting) भारत में बहुत पुरानी संकल्पना है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र के बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तरप्रदेश में बंधिस, बिहार में आहर तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्म के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस (Tank), केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कहा इत्यादि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं।

Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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