ज्ञान के निर्माण में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

ज्ञान के निर्माण में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर— ज्ञान के निर्माण में शिक्षक की भूमिका–औपचारिक अधिगम का सृष्टा अध्यापक है। यह विद्यालय का आधार है उसका आधार उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना बालक का विद्यालय में होना । शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यवहार में संशोधन करना है। उनका इस प्रकार विकास करना है जिसमें वे समाज के, देश के उपयोगी अंग बन सकें। इस कार्य का क्रियान्वयन अध्यापक के अभाव में नहीं हो सकता। परिस्थिति का लाभ उस समय तक उठाया नहीं जा सकता जब तक कि अन्तरण का अभ्यास नहीं कराया जायेगा । फलतः अध्यापक को इन बातों का ध्या रखना चाहिये—
(1) स्पष्ट ज्ञान–अध्यापक जिस विषय को पढ़ा रहा है, उसका ज्ञान उसे स्पष्ट होना चाहिये। अध्यापन के समय इस बात का उसे पता होना चाहिये कि किन विषयों में उसे अन्तरण का ज्ञान देना है। अन्तरण स्वयं नहीं होता है, उसकी योजना बनानी पड़ती है।
(2) बुद्धि–अध्यापक को चाहिये कि वह कक्षा में कुशाग्र बुद्धि के छात्रों पर अन्तरण की दृष्टि से विशेष ध्यान दे। इसका कारण है- जो छात्र कुशाग्र बुद्धि होते हैं, वे अनुभव तथा योग्यता का उपयोग सरलतापूर्वक अन्य परिस्थिति में कर लेते हैं ।
(3) शिक्षण विधि–अध्यापक किस विधि से पाठ को पढ़ाता है, अन्तरण इस बात पर भी अधिक निर्भर करता है। अध्यापक यदि मनोवैज्ञानिक विधि से बालकों को पढ़ायेगा तो वह उसमें रुचि लेंगे और समस्या भी स्पष्ट हो जायेगी। अन्तरण की सफलता के लिए आवश्यक है कि शिक्षण को रोचक बनाया जाये।
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