तिलका आंदोलन : (1784-1785 ई.) : Tilka Rebellion (1784-1785)

तिलका आंदोलन : (1784-1785 ई.) : Tilka Rebellion (1784-1785)

Tilka Rebellion (1784-1785) | तिलका आंदोलन : (1784-1785 ई.)

विद्रोह  के कारण :

वर्ष 1784 ई. में तिलका मांझी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया, जिसे ‘तिलका आंदोलन’ के नाम से जाना गया। यह आंदोलन अपनी जमीन पर अधिकार के लिए, पड़हियों/पहाड़ियों को अधिक सुविधा देकर फूट डालने वाली नीति के विरोध में तथा क्लिवलैण्ड के दमन के विरोध में था।विद्रोह  का स्वरुप

18वीं सदी के अंतिम वर्षों में राजमहल क्षेत्र में संथालों का प्रवेश हुआ। संथाल आदिवासियों के राजमहल प्रवेश का पड़हिया/पहाड़िया समुदाय ने विरोध किया। कुछ मुठभेड़ों के बाद संथाल इस क्षेत्र में बस गए। संथाल पहाड़ों पर रहते थे और जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नावें गंगा नदी से होकर गुजरती थीं, तब वे पहाड़ों से उतर कर उन्हें लूटते थे तथा डाक ले जाने वालों की हत्या कर देते थे। वे गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) करने में बड़े कुशल थे। वर्ष 1778 ई. में ऑगस्टल क्लिवलैण्ड को राजमहल क्षेत्र का पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। उसने फूट डालने की नीति अपनाई और नियुक्ति के नौ महीने के भीतर 47 पड़हिया सरदारों को अपना समर्थक बना लिया और जौराह नामक व्यक्ति को इनका प्रमुख बनाया। पड़हिया सरदारों को कुछ सुविधाएँ दी गई और अंग्रेज उनसे कोई कर नहीं लेते थे। इस बात का विरोध संथाल समुदाय के एक वीर सरदार तिलका मांझी ने किया। उसका कहना था कि नीति एक समान होनी चाहिए। तिलका ने अंग्रेजों के समर्थक पड़हिया जाति के जौराह का भी विरोध किया। तिलका मांझी का उर्फ नाम जाबरा पहाड़िया था। तिलका ने भागलपुर के पास वनचरीजोर नामक स्थान से अंग्रेजों का विरोध आरंभ किया। राबिनहुड की भाँति वह जब तब शाही खजानों व गोदामों को लूट कर गरीबों के बीच बाँट देता था। उसने साल पत्ता के माध्यम से घर-घर संदेश भेजा और संथालों को संगठित करना शुरू कर दिया। वर्ष 1784 ई. के आरंभ में अपने अनुयायियों के सहयोग से तिलका ने भागलपुर पर आक्रमण किया। 13 जनवरी के दिन वह ताड़ के एक पेड़ पर छुप कर बैठ गया। उसी रास्ते से होकर गुजरते हुए घोड़े पर सवार क्लिवलैण्ड को उसने तीर से मार गिराया।

इससे अंग्रेजी सेना में दहशत फैल गई। अब अंग्रेजी सेना की मदद के लिए आयरकूट को भेजा गया। आयरकूट ने पड़हिया सरदार जौराह के साथ मिलकर तिलका मांझी के अनुयायियों पर हमला बोल दिया। तिलका मांझी के अनेक अनुयायी हताहत हुए। लेकिन तिलका मांझी बचकर भाग निकला और सुल्तानगंज की पहाड़ियों में जा छिपा। 1785 ई. में तिलका मांझी को धोखे से पकड़ लिया गया और उसे रस्सी से बाँधकर चार घोड़ों द्वारा घसीटते हुए भागलपुर लाया गया, जहाँ उसे बरगद के पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी गई। वह स्थान आज ‘बाबा तिलका मांझी चौक’ के नाम से जाना जाता है।तिलका आंदोलन के प्रमुख तथ्य :

  • तिलका आंदोलन का प्रारंभ 1783 ई. में तिलका मांझी के नेतृत्व में द हुआ।
  • इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी स्वायत्ता की रक्षा एवं इस क्षेत्र से अंग्रेजों को खदेड़ना था। इन्होंने आधुनिक रॉबिनहुड की भांति अंग्रेजी खजाना लूट कर गरीबों एवं जरूरतमंदों के बीच बांटना प्रारंभ किया। तिलका मांझी द्वारा गांव-गांव में सखुआ पत्ता घुमाकर विद्रोह का संदेश भेजा जाता था।
  • तिलका मांझी ने सुल्तानगंज की पहाड़ियों से छापामार युद्ध का नेतृत्व किया।
  • तिलका मांझी के तीरों से मारा जाने वाला अंग्रेज सेना का नायक अगस्टीन क्लीवलैंड था।
  • 1785 ई. में तिलका मांझी को धोखे से गिरफ्तार कर लिया गया और भागलपुर में बरगद पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी गयी।
  • वह स्थान आज भागलपुर में बाबा तिलका मांझी चौक के नाम से प्रसिद्ध है।
  • भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले विद्रोही शहीद तिलका मांझी थे।
  • सर्वाधिक महत्व की बात यह है कि तिलका विद्रोह में महिलाओं की भी भागीदारी थी, जबकि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में महिलाओं ने काफी बाद में हिस्सा लेना प्रारंभ किया।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Whats’App ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *