निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए—

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(i) ग्रीन हाउस प्रभाव

(ii) वैश्विक ताप वृद्धि
उत्तर– (i) हरित गृह प्रभाव (Green House effect) -सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली सौर ऊष्मा का कुछ भाग पेड़-पौधों द्वारा कुछ अंश जल द्वारा, कुछ अंश पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा शेष अधिकांश ऊष्मा आकाश की ओर परावर्तित हो जाती है। पृथ्वी से थोड़ा ऊपर कार्बन डाई-आक्साइड, मैथेन तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन की एक मोटी परत बन चुकी है, जो पृथ्वी द्वारा परावर्तित ऊष्मा का मार्ग अवरुद्ध कर उसे स्वयं में शोषित कर लेती है और पृथ्वी पर पुनः परावर्तित कर देती है। इस प्रकार सौर ऊर्जा अपने प्राकृतिक चक्र को पूरा करने के स्थान पर प्रदूषण द्वारा उत्पन्न वायुमण्डलीय गैसों के जाल में फंसकर वातावरण का तापक्रम उसी तरह बढ़ा देती है जैसे पौधघर में सौर ऊष्मा अवरोधी दीवारों से बाहर न निकलने के कारण अन्दर ही बंधक बना ली जाती है। वायुमण्डल के बढ़ते ताप-प्रभाव की तुलना, इसी कारण हरित गृह से की गई है, क्योंकि पृथ्वी से परावर्तित सौर ऊर्जा के लिए प्रदूषणकारी वायुमण्डलीय गैसें, ऊष्मारोधी दीवार की भूमिका निभाती हैं और पृथ्वी एक घुटन भरे गर्म गैसयुक्त कमरे के समान हो जाती है।
हरित गृह प्रभाव के भयंकर परिणाम — हरित गृह गैस इस कारण भी घातक मानी जाती रही है, क्योंकि इनकी उत्तरोत्तर वृद्धि से ऊँचे पर्वतीय शिखरों की बर्फ के भारी मात्रा में पिघलने से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होगी, जिससे पृथ्वी का समुद्रतटीय भू-भाग जल प्लावित हो जाएगा। इस जल स्तर वृद्धि से कई देश पूरी तरह जलमग्न हो जाएंगे। इसके अतिरिक्त अति जल-वृष्टि तथा अम्ल वर्षा जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ेगा। ओजोन की परत जो एक छतरी की तरह से पृथ्वी पर ऊष्मा के अतिरिक्त अन्य सौर विकिरणों को शोषित करके, उनसे रक्षा करतीहै, छिद्रित हो जाने के कारण तीव्रता वाली पराबैंगनी किरणों को अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आने से नहीं रोक पाएगी जिससे सौर जलन, त्वचा का कैंसर व सौराएसिस जैसे रोगों से लाखों लोग प्रभावित होंगे।
सुरक्षा के उपाय—
(1) यदि जीवाश्म ईंधन के दहन पर पूर्णतया रोक लगा दी जाए तो मुख्य हरितगृह गैस कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर कम किया जा सकता है। जीवाश्म ईंधन के स्थान पर ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतीं को बढ़ावा देना चाहिए।
(2) वन विनाश को पूर्णतया प्रतिबंधित कर वृक्षारोपण द्वारा बढ़े हुए कार्बन डाईऑक्साइड स्तर को कम किया जा सकता है।
(3) धूम्र (स्मोग) बनाने में सहायक उद्योगों को पूर्णतया बंद करके वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। इस श्रृंखला में क्लोराफ्लोरो कार्बन, नाइट्रस आक्साइड तथा क्लोरीन वायुमण्डल में छोड़ने वाले उद्योग प्रतिबन्धित किए जाए।
(4) ओजोन का क्षरण रोका जाए।
(5) प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करने वाले उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाए।
(6) ऊर्जा के गैर परम्परागत साधनों जैसे- सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन, जल विद्युत व पवन-ऊर्जा आदि के साधनों को विकसित किया जाए।
(7) पृथ्वी के धरातल को हरा-भरा किया जाए।
(ii) वैश्विक ताप वृद्धि (Global Warming) – मानवीय कारणों के कारण गत 150 वर्षों में अधिक ऊर्जा के साधनों का प्रयोग हुआ है जिसके परिणामस्वरूप वायुमण्डलीय तापमान में भी वृद्धि हुई है। इसका जलवायु पर भी बहुत अधिक प्रभाव होगा साथ ही अन्य प्रकार के कई और पर्यावरणीय परिवर्तन होंगे ।
वायुमण्डल में हुए इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप विश्वभर में जलवृष्टि के वितरण और क्षेत्रीय स्वरूप में आशातीत परिवर्तन होंगे। कई तरह के क्षेत्रों में शुष्कता और शुष्क क्षेत्रों में जलवृष्टि की मात्रा में वृद्धि के कारण वायुमण्डलीय और मिट्टी में नमी बढ़ जाएगी। नदियाँ जो मौसमी हैं वर्षावाही हो जाएँगी। विश्व के वर्तमान समुद्रतल में भी वृद्धि हो जाएगी। जो तटीय नगरों, तटीय मैदानों तथा कम ऊँचाई के द्वीप समूहों के लिए गंभीर खतरे पैदा कर देगी। विश्व जलचक्र में परिवर्तन होंगे जिससे वानस्पतिक प्रकृति एवं विस्तार पर भी प्रभाव होगा । स्वभावतः मानवीय क्रियाकलाप भी अप्रभावित न रह पाएँगे।
जलवृष्टि, वाष्पीकरण प्रणालियों में परिवर्तन, सूखे का प्रभाव व प्रकोप, वृष्टि अनिश्चितता, मृदा अपरदन और जलीय वितरण में भी अप्रत्याशित बदलाव होने की आशंका बनी रहेगी। इन सबके परिणामस्वरूप विश्व कृषि में व्यापक परिवर्तनों की आशंका बनी रहेंगी। यही नहीं इन प्राकृतिक परिवर्तनों से परिवर्तनों से कृषि उत्पादकता में भी अवश्यंभावी परिवर्तन होंगे।
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