निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए—

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए—

(अ) लिंग और छिपा हुआ पाठ्यक्रम

(ब) जीवन कौशल व लैंगिकता
(स) शिक्षक शिक्षा में जेण्डर शिक्षा का महत्व
उत्तर — (अ) लिंग और छिपा हुआ पाठ्यक्रम —  पाठ्यचर्या के अन्तर्गत विद्यालय में प्रदान किए जाने वाले सभी आवश्यक एवं उपयुक्त ज्ञान का समावेश होता है। इसमें विद्यालयी नीतियों के अभ्यास के साथसाथ शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए पाठ्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है। शिक्षण-अधिगम सामग्री, कक्षा-कक्ष प्रक्रिया, मूल्यांकन तथा भाषा नीति आदि सब पाठ्यचर्या के अन्तर्गत शामिल हैं एवं इन सभी का ज्ञान विद्यालय में रहकर ही होता है। अतः जब बालक विद्यालय में अध्ययन कर रहा होता है उसी समय यह भी आवश्यक हो जाता है कि विद्यालयी पुस्तकों में लिंग प्रस्तुतीकरण सम्बन्धी विचारधारा को भी समझा जाए। साथ ही साथ यह विचारधाराएँ किस प्रकार दिन-प्रतिदिन के विद्यालयी अभ्यास एवं अनुभव में अभिव्यक्त हो रही हैं यह भी देखा जाना चाहिए इस प्रकार की प्रक्रिया ही छिपी पाठ्यचर्या कहलाती है। इसके अन्तर्गत विद्यालय परिसर की भौतिक एवं अभौतिक व्यवस्थाएँ आदि आती हैं।
विद्यालय में लिंग की छिपी पाठ्यचर्या से तात्पर्य निम्नलिखित हैं—
(1) संगठनात्मक व्यवस्था अर्थात् लिंग के अनुसार कक्षा-कक्ष में बालक-बालिकाओं की बैठने की व्यवस्था |
(2) विद्यालय में विभिन्न कार्यों का विवरण एवं श्रम का लैंगिक विभाजन अर्थात् बालक-बालिकाओं के बाहर जाने की आज्ञा होना एवं बालिकाओं को साफ-सफाई के कार्यों में संलग्न करना ।
(3) बालक एवं बालिकाओं को पृथक्-पृथक् तरीके से अनुशासित करना, दोनों के लिए दण्ड एवं पुरस्कार के अलग-अलग विधान आदि ।
(4) विद्यालय में प्रतिदिन के कार्यकलाप, अभ्यास एवं परम्पराएँ ” अर्थात् बालक एवं बालिकाओं की अलग-अलग पंक्तियाँ बनाना, दोनों का अलग-अलग समूह में बाँटना आदि।
‘पाठ्यचर्या विकास’ पुस्तक के अनुसार, “छिपी पाठ्यचर्या किसी कक्षा-कक्ष या विद्यालय के भौतिक स्थिति, शिक्षक या छात्रों के मनोभावों, शिक्षक छात्र अन्तः क्रिया, सहकर्मियों के प्रभाव और अन्य कारक जो ज्ञान को प्रतिपादित करने को प्रभावित करते हैं, को सन्दर्भित करती है। “
एलन ग्रेथन के अनुसार, “वास्तव में, छिपी पाठ्यचर्या विद्यालय में संचालित पाठ्यचर्याओं के प्रकार में से ही एक है।”
छिपी पाठ्यचर्या की विशेषताएँ – छिपी पाठ्यचर्या की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(1) इस पाठ्यचर्या में छात्रों को कक्षा-कक्ष एवं सामाजिक वातावरण में आदर्शों, मूल्यों एवं धारणाओं से अवगत कराया जाता है।
(2) इसके द्वारा छात्रों में सामाजिकता की भावना का विकास करना ताकि वे एक सामाजिक प्राणी बन सकें।
(3) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे समस्त मानवता के गुणों को स्वयं में समाहित कर सकें।
(4) इस पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों को विद्यालय, राज्य एवं राष्ट्र की संस्कृति से अवगत कराया जा सकता है।
(5) इस पाठ्यचर्या में छात्रों को उनकी सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान की जाती है।
(6) यह छात्र केन्द्रित पाठ्यचर्या है।
(7) छिपी पाठ्यचर्या विद्यालय की संरचना एवं आर्थिक व्यवस्था के मध्य सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होती है।
(8) इस पाठ्यचर्या में छात्र गतिविधियों, नियोजित एवं अनियोजित माध्यम से अनुभव प्राप्त करते हैं।
छिपी पाठ्यचर्या में पारस्परिक लिंग भूमिकाएँ-छिपी पाठ्यचर्या में पारस्परिक लिंग भूमिकाओं को निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं—
(1) मिश्रित माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षण कार्य में पुरुष उच्च प्रतिनिधित्व तथा महिला निम्न प्रतिनिधित्व भूमिका निभाते हैं।
(2) विद्यालयों में छात्रों के ड्रेस में भी विभिन्नता होती है। लड़के तथा लड़कियों के लिए अलग-अलग ड्रेस का प्रावधान होता है। बालकों के लिए पैंट तथा बालिकाओं के लिए स्कर्ट होती है।
(3) औपचारिक पाठ्यचर्या में लड़के तथा लड़कियों के लिए अलग-अलग विषय, खेल, विषय सामग्री होती है। जैसेकला, शिक्षाशास्त्र, गृहविज्ञान, वाणिज्य आदि विषयों में लड़कियों को अधिक सम्मिलित किया जाता हैं तथा गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र आदि में लड़कों को वरीयता दी जाती है।
(4) कभी-कभी कुछ पुरुष शिक्षक छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार करते हैं जिसके कारण छात्राओं में हीन भावना आ जाती हैं। इस प्रकार के कृत्य भी लिंग विभेदन को बढ़ावा देते हैं।
उपर्युक्त बिन्दुओं से पारम्परिक लिंग भूमिकाओं का दृश्य स्पष्ट है किन्तु ये परिदृश्य बदलते समय के साथ परिवर्तित हो गये हैं जो निम्नलिखित हैं—
(1) शिक्षक वर्तमान में समानता तथा अवसर के मुद्दों से अच्छी तरह परिचित हैं तथा पारम्परिक लिंग भूमिकाओं को स्वीकार न करते हुए छात्रों को समान अवसर प्रदान करते हैं।
(2) कैरियर तथा विषयों के चयन में छात्रों की रुचि को वरीयता दी जाती है।
(3) प्राथमिक तथा माध्यमिक विद्यालयों में महिला शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान किया गया जिससे छात्राओं को क्षति न हो।
(ब) जीवन कौशल एवं लैंगिकता – शिक्षा ने मनुष्य को परिष्कृत करने का कार्य किया है। शिक्षित व्यक्ति अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत करता है चाहे वह आर्थिक हो, सामाजिक, व्यावसायिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक आदि ही क्यों न हो। जीवन की दक्षता तथा शिक्षा के मध्य अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। व्यक्ति के भीतर निहित सभी प्रकार की दक्षताओं और कुशलताओं को शिक्षा के द्वारा बाहर निकाला जाता है तथा अधिगम के अधिक-से-अधिक अवसरों की उपलब्धता, अनुभवों की प्राप्ति, क्रिया के द्वारा सीखने के अवसरों द्वारा दक्षता में वृद्धि होती है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज में सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए जीवन दक्षता (Life Skill) का होना अत्यावश्यक है।
जीवन दक्षता एवं उसके पक्ष- जीवन दक्षता प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएँ भोजन, वस्त्र तथा मकान हैं, जिनके बिना व्यक्ति जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। इन मूलभूत आवश्यकताओं के अतिरिक्त व्यक्ति के जीवन की कुछ भौतिक तथा आध्यात्मिक आवश्यकताएँ हैं जो मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि तथा आत्मा को पोषित करती हैं। आदिकाल में मनुष्य के जीवन में दक्षता हेतु प्रशिक्षण का अभाव था, जिसके कारण वह वृक्षों की छाल पहनता था, कन्दराओं में निवास करता था और वृक्षों की छाल तथा पत्तियों से अपना शरीर ढकता था। जीवन दक्षता से तात्पर्य ऐसी दक्षता से है जिसके द्वारा व्यक्ति को जीवन व्यतीत करने हेतु दक्ष अर्थात् कुशल बनाया जाता है। जीवन दक्षता के द्वारा व्यक्ति को जीवन के विविध पक्षों को कुशलता से जीने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। जीवन दक्षता के विभिन्न पक्ष निम्नलिखित हैं-
(1) आर्थिक पक्ष में दक्षता –  आर्थिक पक्ष में दक्षता की आवश्यकता अत्यधिक है। मनुष्य अपने जीवन की मूलभूत और विलासपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति आर्थिक जीवन में दक्षता प्राप्त किये बिना नहीं कर सकता है। स्त्रियों को लिंग के आधार पर घरेलू कार्यों का दायित्व दे दिया गया और आर्थिक जीवन में उनकी भागीदारी न के बराबर रह गयी, परन्तु वर्तमान में लिंगीय असमानता को समाप्त करने के लिए पुरुषों की भाँति स्त्रियों को भी आर्थिक दक्षता का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। आर्थिक दक्षता पर लिंग का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। स्त्रियों और पुरुषों के स्वभाव में अन्तर के कारण आर्थिक क्षेत्रों के चयन में विविधता, विषयों के चयन में अन्तर प्राप्त होना है। स्त्रियाँ आर्थिक दक्षता के लिए कम जोखिमपूर्ण क्षेत्रों का चयन करती हैं और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गृहविज्ञान, पाककला, बाल विज्ञान तथा पोषण विज्ञान आदि पर बल दिया जाता है।
(2) सामाजिक पक्ष में दक्षता– सामाजिक पक्ष के अन्तर्गत सामाजिक सुधारों, सामाजिक व्यवस्था, ताना-बाना, सामाजिक समता और न्याय, सामाजिक परिवर्तनों के कारकों, सामाजिक सौहार्द्र तथा सामाजिक जीवन को सफलतापूर्वक व्यतीत करने की शिक्षा प्रदान की जाती है। सामाजिक जीवन में दक्षता को लिंगी आधार प्रवाहित करते हैं, क्योंकि स्त्री-पुरुष दोनों के साहचर्य और संयोग द्वारा सामाजिक जीवन चलता है। अकेले पुरुष या स्त्री कोई भी दोनों में से सामाजिक पक्ष का संचालन अकेले नहीं कर सकता है। इसी कारण से प्राचीन काल से ही स्त्री-पुरुषों के कार्यों, अधिकारों और उत्तरदायित्वों का बंटवारा कर दिया गया था, जो आज रूढ़ हो गयी है। लिंगानुसार सामाजिक जीवन में दक्षता आवश्यक है, क्योंकि स्त्री-पुरुष दोनों की शारीरिक संरचना ही अलग नहीं है, अपितु उनकी रुचियाँ, विचार तथा गुणों में भिन्नता है और ये दोनों मिलकर सामाजिक ढाँचे को सुचारू रूप से आगे बढ़ाते हैं।
(3) सांवेगिक पक्ष में दक्षता– बालक तथा बालिकाओं की वृद्धि तथा विकासक्रम में कुछ असमानताएँ उनके लिंग के कारण होती हैं। सांवेगिक रूप से बालिकाएँ और बालकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । मनुष्य जानवरों से इसीलिए अलग और श्रेष्ठ माना जाता है कि वह बुद्धि के प्रयोग द्वारा अपने संवेगों को नियंत्रित तथा मार्गान्तरीकृत करता है। सांवेगिक दक्षता में प्रशिक्षण की आवश्यकता वर्तमान में अत्यधिक है, क्योंकि सांवेगिक अस्थिरता व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष और विकास को प्रभावित कर कुण्ठा और आपराधिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करती है। बालक तथा बालिकाओं को प्रारम्भ से ही उनके लिंग की विशेषताओं, आवश्यकताओं के अनुरूप सांवेगिक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए, जिससे वे जीवन में अच्छे मनुष्य बन सकें। संवेगों के बहाव को नियंत्रित कर सकें, सांवेगिक आतुरता में गलत निर्णय लेने से बचें। इस प्रकार लिंग की भूमिका सांवेगिक दक्षता के विकास हेतु है ।
(4) सांस्कृतिक पक्ष में दक्षता –  पुरुषों की अपेक्षा सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण और भावी पीढ़ी तक हस्तान्तरण का कार्य स्त्रियों द्वारा अधिक सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जाता है। सांस्कृतिक तत्त्वों, उनकी उत्तरजीविता और उसमें स्त्रियों की भूमिका इत्यादि से स्त्रियों को अवगत कराकर स्वस्थ सांस्कृतिक परम्परा की नींव डाली जा सकती है। इस प्रकार संस्कृति में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका स्त्री-पुरुष के मध्य सहयोग की अभिवृत्ति का विकास होने से लैंगिक भेदभावों में कमी आयेगी।
(5) राजनीतिक पक्ष में दक्षता–राजनीति में पुरुषों की प्रधानता और उनका वर्चस्व देखा जा सकता है, परन्तु महिलाएँ अब राजनीति के उच्च पदों पर आसीन हो रही हैं और राजनीति में उनकी प्रभावी भूमिका के लिए उनको राजनीतिक दक्षता के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, बिना किसी लैंगिक भेदभाव के। यह भ्रम टूट रहा है कि स्त्रियाँ राजनीति के लिए अनुपयुक्त हैं। वर्तमान में लिंगीय भेदभावों से परे उठाकर महिलाओं के जीवन स्तर में वृद्धि के लिए उन्हें राजनीति में दक्ष बनाया जा रहा है।
( 6 ) धार्मिक पक्ष में दक्षता – धर्म व्यक्ति को उसके कर्त्तव्यों, अच्छाई तथा बुराई से अवगत कराकर, मानसिक शान्ति और आत्मिक उत्थान करने में सहायता प्रदान करता है। स्त्री तथा पुरुषों को लिंगीय आधार पर धार्मिक दक्षता हेतु प्रशिक्षित किया जाता है। धार्मिक परम्पराओं का पालन और उसके हस्तान्तरण का कार्य स्त्रियाँ करती हैं, अतः उनके प्रशिक्षण की आवश्यकता अत्यधिक है जिससे धर्म के संकुचित रूप नहीं, व्यापक रूप का प्रशिक्षण प्रदान कर भावी पीढ़ियों से भी संकीर्णता को समाप्त किया जा सके। अच्छे जीवन के लिए धार्मिक दक्षता का महत्त्व अत्यधिक है। धर्म ही व्यक्ति को शान्ति और आन्तरिक ऊर्जा प्रदान करता है। धार्मिक पक्ष में स्त्रियों की अनदेखी की जाती रही है। जिसको समाप्त कर वैदिक काल की भाँति स्त्रियों को पुरुषों की ही भाँति धार्मिक जीवन के लिए दक्ष किया जाना चाहिए।
( 7 ) व्यावसायिक पक्ष में दक्षता—स्त्रियों को व्यवसायों में भागीदारी देने की अपेक्षा घरेलू कार्यों में ही संलग्न रखा जाता है, परन्तु वर्तमान में लैंगिक मिथकों को तोड़ती हुई स्त्रियाँ घरेलू- व्यवसायों के साथ-साथ अपना स्वयं का व्यवसाय भी कर रही हैं। व्यावसायिक पक्ष में दक्षता के लिए बालिकाओं को उनकी रुचि तथा विशिष्ट आवश्यकता के अनुरूप व्यावसायिक विषयों के चयन की स्वतन्त्रता तथा उपलब्धता और व्यावसायिक निर्देशन तथा परामर्श की व्यवस्था प्रदान की जानी चाहिए। व्यावसायिक जीवन में दक्षता के द्वारा स्त्रियाँ स्वावलम्बी बनेंगी, देश तथा समाज में गतिशीलता आयेगी, जिससे लैंगिक भेदभावों में कमी आयेगी। व्यावसायिक पक्ष में स्त्रियों की दक्षता के परिणामस्वरूप जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
(8) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष में दक्षता–राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों में भी स्त्रियों को बिना स्त्री-पुरुष के भेदभाव के प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। स्त्रियों को करुणा, प्रेम, दया, त्याग और विश्वशान्ति का अग्रदूत माना जाता है। वर्तमान में वैश्वीकरण, उदारीकरण, संचार और सूचना क्रान्ति के कारण कोई भी राष्ट्र अलग-थलग नहीं रह सकता। ऐसे में स्त्रियों की अनदेखी नहीं की जा सकती है और राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों से उनको पृथक् नहीं रखा जा सकता। यदि देश की और विश्व मानवता की सच्ची सेवा और उन्नति करनी है तो राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर स्त्रियों को प्रशिक्षित कर उनकी शक्तियों का भरपूर उपयोग कर, जीवन दक्षता में वृद्धि करनी चाहिए। इस प्रकार लिंगीय अभेदपूर्णता के कारण स्त्रियाँ पुरुषों के समान ही राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर जागरूक होकर जागरूकता का प्रचार-प्रसार करेंगी, जिससे जीवन की दक्षता तथा गुणवत्ता में वृद्धि का कार्य शीघ्रता से सम्पन्न होगी।
(स) शिक्षक शिक्षा में जेण्डर शिक्षा का महत्त्व — शिक्षण में गुणवत्ता लाने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है। शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय सरकार द्वारा व निजी स्तर पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा खोले जाते हैं जहाँ पर सरकार द्वारा चयनित शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है। शिक्षक प्रशिक्षण दो स्तर पर होते हैं। पहला BSTC स्तर पर दूसरा B.Ed. स्तर पर। दोनों ही स्तर पर दो साल की अवधि का कोर्स पाठ्यक्रम होता है।
शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों में कुशल शिक्षक तैयार करने के लिए शिक्षा सिद्धान्त, शिक्षा दर्शन, शिक्षा मनोविज्ञान, विद्यालय प्रबंध, परीक्षा मूल्यांकन विधि, स्वास्थ्य विज्ञान व शिक्षा उन्नयन से सम्बन्धित विभिन्न विषयों का अध्ययन करवाया जाता है। शिक्षण में कौशल विकसित करने के साथ-साथ छात्र तथा छात्राओं को शिक्षा विस्तार के बारे में बतलाया जाता है। आजकल शिक्षा का अधिकार नियम के अन्तर्गत सरकार ने 14 साल तक के बच्चों की शिक्षा निःशुल्क एवं अनिवार्य कर दी है। इसके साथ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मिड डे भोजन, निःशुल्क पुस्तकें तथा शिक्षण सामग्री भी दी जाती हैं ।
शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों में आजकल जेण्डर शिक्षा का भी प्रावधान किया जा रहा है। जेण्डर शिक्षा से तात्पर्य बालक व बालिकाओं को शिक्षण व्यवस्था में समान भाव से देखना है। शिक्षण में लड़के व लड़की में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं रखा जाएँ। प्रायः देखा जाता हैं कि विद्यालयों में यह पूर्वाग्रह है कि लड़कियाँ पढ़ाई में कमजोर रहती हैं या समाज में लड़कियों की शिक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होती है या लड़कियाँ गणित में सदा से ही निम्न स्तरीय होती हैं, आदि धारणाएँ पहले से विद्यमान हैं। परन्तु यह सोच समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह के कारण है या पितृसत्तात्मक व्यवस्था से उत्पन्न है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बालिका शिक्षा बहुत कम है। आदिवासी क्षेत्रों में तथा अल्पसंख्यकों में बालिका शिक्षा बहुत कम है। यदि शिक्षक प्रशिक्षण में जेण्डर शिक्षा दी · जाती है, तो ये शिक्षक ग्रामीण क्षेत्रों में तथा नगरीय क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार करेंगे तथा पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मानने वालों को समझा सकेंगे कि परिवार में लड़का व लड़की समान हैं।
 सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालय खोल रखे हैं, फिर भी स्त्रियों की साक्षरता दर बहुत कम है। डॉक्टरी, इंजीनियरिंग तथा वकालत करने वाली लड़कियों की संख्या तो बहुत कम है। स्त्रियों की शिक्षा कम होने का कारण पर्दा प्रथा और स्त्रियों की पुरुषों पर निर्भरता होना है। उनको घर पर ही रहना है। प्रशिक्षित शिक्षक ग्रामों में जाकर पुरुषों की पूर्वाग्रह की मान्यताओं को बदल सकेंगे। ग्रामीण लोग यह कहते हैं कि लड़की तो पराया धन है। उसे पढ़ाकर हमें कोई राज नहीं करवाना है।
लैंगिक असमानता के लिए उत्तरदायी कारण व शिक्षक का उत्तरदायित्व—समाज में लैंगिक असमानता के कई कारक हैं, जैसे—
(1) स्त्री शिक्षा की उपेक्षा
(2) आदर्श व मूल्य
(3) वैवाहिक कुरीतियाँ
(4) संयुक्त परिवार व्यवस्था
(5) पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता
(6) अशिक्षा
(7) महिलाओं में जागरूकता का अभाव ।
ऐसी स्थिति में प्रशिक्षित शिक्षक का उत्तरदायित्व महत्त्वपूर्ण है कि वह उपर्युक्त कारकों को अपनी समझ से दूर करें तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करें; महिलाओं को मानवाधिकार दिलाने का प्रयत्न करें—
(1) महिलाएँ प्रसन्नचित्त होकर स्वावलम्बी बनें ।
(2) महिलाओं की राजनीतिक व प्रशासनिक मामलों में समानता रहे।
(3) उनके साथ शारीरिक व बौद्धिक भेदभाव न करें।
(4) परिवार के आर्थिक साधनों पर उसका अधिकार हो।
(5) घर, परिवार तथा समाज में उसे सम्मान मिले।
(6) सार्वजनिक स्थलों पर उसके सम्मान की सुरक्षा हो।
(7) किसी भी निर्णय में उसकी सम्मति लागू हो।
महिलाओं को मानवाधिकार एवं सम्मान दिलाने में प्रशिक्षित शिक्षक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। इसलिए शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों में जेण्डर शिक्षा का अध्ययन कराना आवश्यक है। ।
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