निष्पक्षता (समता) एवं समानता से आप क्या समझते हैं ?
निष्पक्षता (समता) एवं समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – समता व समानता इन दोनों शब्दों को अधिकतर एकदूसरे का पर्यायवाची समझा जाता है। वैसे तो भारतीय संविधान की स्थापना समानता के आधार पर हुई है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, “जनतन्त्र यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों को का समान अवसर मिले।”
अपने अन्तर्निहित, असमान गुणों के विकास भारतीय संविधान की धारा 15, 16, 17, 38 तथा 48 भी यह सुनिश्चित करती है कि राज्य व्यक्तियों के बीच जाति, धर्म, वर्ग और स्थान के आधार पर विभेद नहीं करेगा। इसके अतिरिक्त 1964-66 में प्रस्तावित शिक्षा कमीशन में डॉ. माथुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि शिक्षा का एक प्रमुख ध्येय सभी को अवसरों की समानता प्रदान करना है जिससे कि पिछड़े और दबे कुचले लोगों को शिक्षा का प्रयोग कर अपनी स्थिति में सुधार करने का मौका मिले । वस्तुतः समता एवं समानता एक जटिल विचार है। इसीलिए कभी-कभी इसका अर्थ समझने में हम गलती कर जाते हैं। सर्वप्रथम, हमें यह समझना चाहिए कि समता यानि प्रत्येक मायने में समान, एक कल्पना ही है जिसमें सब कुछ समान होने की बात की जाती है जबकि यह सम्भव ही नहीं है, जैसे—महिला और पुरुष के सभी मामलों में समता सम्भव नहीं है इसमें कुछ न कुछ अन्तर तो रहेगा ही, पर समानता जरूर कायम की जा सकती है।
समता एवं समानता का अर्थ—
समस्त – समता का सामान्य अर्थ है–सबको एक समान परिस्थतियाँ उपलब्ध कराना। इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी को एक जैसा बना दिया जाए। सभी को एक समान वेतन देना, सभी को एक जैसा घर देना, सभी को एक जैसा सामान देना आदि समता के उदाहरण हैं। समता के लिए एक शब्द का प्रयोग किया जा सकता है, वह है निष्पक्षता, न्यायपूर्ण समान सच्चा व्यवहार समता एक व्यापक शब्द और प्रत्यय है जो न्याय और निष्पक्षता के आधार पर समान परिस्थितियाँ उत्पन्न करने पर बल देता है।
समानता–समानता का अर्थ है समान व्यवहार करना । समानता का वास्तविक अर्थ है सभी को एक जैसी परिस्थितियाँ देना। हम सभी को ।बिल्कुल समान नहीं बना सकते लेकिन समान परिस्थितियाँ तो दी जा सकती हैं जैसे—शिक्षा प्राप्त करने के लिए समाज के सभी लोगों को चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या लिंग के हों, सभी को समान अधिकार दिया गया है। कानून भी सबके लिए समान एवं सभी को उपलब्ध है। लोकतांत्रिक परिस्थतियाँ उत्पन्न करना भी समाज के लिए आवश्यक होता है। लोकतन्त्र बिना समानता के अधूरा है लेकिन जब समाज में किसी खास वर्ग को विशेष अधिकार मिल जाता है तथा विशेष लाभ मिलने लगता है तब समानता का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और असमानता की स्थिति पैदा हो जाती है।
उदाहरण के लिए–“सभी को एक जैसा काम मिले—यह समता है।” सभी को काम मिलने की समान परिस्थितियाँ उपलब्ध हो— यह समानता है। “
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