पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु में क्या अन्तर है ? विस्तार से समझाइये ।

पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु में क्या अन्तर है ? विस्तार से समझाइये । 

उत्तर— पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु (पाठ्यचर्या ) में अन्तर– वर्तमान समय में शिक्षा जगत् में पाठ्यक्रम के लिए ‘करीकुलम’ के साथ-साथ सिलेबस एवं कोर्स ऑफ स्टडी शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है, परन्तु सूक्ष्मता से विवेचन करने पर इन तीनों शब्दों में स्पष्ट अंतर परिलक्षित होता है। पाठ्यक्रम शब्द का उपयोग अब व्यापक अर्थ में होने लगा है क्योंकि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी अनुभव आ जाते हैं; जिन्हें छात्र विद्यालयीय जीवन में प्राप्त करता है और जिनमें कक्षा के अन्दर एवं बाहर आयोजित होने वाली पाठ्य एवं पाठ्येत्तर क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। जैसे कि शिक्षा – शब्दकोश में लिखा है “पाठ्यक्रम विषयवस्तु (कोर्स) और नियोजित अनुभवों का समूह है, जिसे एक छात्र विद्यालय अथवा महाविद्यालय के निर्देशन में प्राप्त करता है।”
पाठ्यवस्तु (सिलेबस) पूर्ण शैक्षिक सत्र में विभिन्न विषयों में शिक्षण द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय में निश्चित जानकारी प्रस्तुत करता है। शिक्षा – शब्दकोश में पाठ्यवस्तु (सिलेबस) के विषय में लिखा है, “पाठ्यवस्तु (सिलेबस) अध्ययन की विषयवस्तु के मुख्य बिन्दुओं का कथन अथवा संक्षिप्त रूपरेखा है।”
कक्षान्तर्गत शिक्षण में अध्यापक व विद्यार्थियों की सुविधा के लिए विषय सामग्री को व्यवस्थित रूप से एकीकृत कर लिया जाता है तो उसे हम पाठ्य-विवरण कहते हैं । पाठ्यक्रम शब्द का प्रयोग कभी-कभी भ्रमवश ‘सिलेबस’ के अर्थ में कर दिया जाता है परन्तु पाठ्य विवरण तो पाठ्यक्रम का एक विशिष्ट अंग है न कि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम | कोर्स, विषय सामग्री तथा पाठ्य विवरण आदि शब्द पाठ्यक्रम की विस्तृत अवधारणा को स्पष्ट करने में असमर्थ हैं।
पाठ्यक्रम शब्द ही अर्थ विस्तार की दृष्टि से पाठ्यक्रम की आधुनिक अवधारणा को स्पष्ट कर सकता है। इसीलिए कुछ शिक्षाशास्त्री पाठ्यक्रम के स्थान पर ‘शिक्षा-क्रम’ या ‘पाठ्यचर्या’ जैसे व्यापक अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग करते हैं।
उपर्युक्त परिभाषाओं व अन्य विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि पाठ्यक्रम में कक्षान्तर्गत प्राप्त अनुभव तो सम्मिलित हैं ही साथ ही कक्षा के बाहर के अनुभव भी शामिल हैं। सभी बौद्धिक विषय, विविध कौशल, समस्त कार्य, पढ़ना-लिखना, शिल्प, खेल-कूद, अन्य विविध पाठ्यक्रम, सहगामी क्रियाएँ एवं क्रियाकलाप पाठ्यक्रम के क्षेत्र में सम्मिलित हैं। इसे क्रिया एवं अनुभव के रूप में समझना चाहिए न कि अर्जित ज्ञान एवं संग्रहीत तथ्यों के रूप में । पाठ्यक्रम में कक्षा, पुस्तकालय, क्रीड़ा-स्थल, प्रयोगशाला, समस्त विद्यालय प्रांगण, भौगोलिक यात्राओं के स्थल, स्थानीय उद्योग-धंधे आदि द्वारा प्राप्त सभी अनुभवों के क्षेत्र सम्मिलित हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं होना चाहिए कि पाठ्यक्रम ही जीवन व शिक्षा का उद्देश्य है। पाठ्यक्रम केवल जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति का एक साधन है, साध्य नहीं। पाठ्यक्रम के माध्यम से जीवन आदर्शों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
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