पोषक तत्त्वों व उनके कार्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

पोषक तत्त्वों व उनके कार्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए। 

                                               अथवा
पोषक तत्त्वों व उनकी कमी से होने वाले रोगों का विस्तार से उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— पोषक तत्त्व – स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भोजन द्वारा पोषक तत्त्वों की प्राप्ति अनिवार्य रूप से आवश्यक है। इनकी कमी से अनेक रोग आदि उत्पन्न हो जाते हैं, अत: इन रोगों की जानकारी और उपाय जान लेना बहुत आवश्यक है। इससे भी पूर्व हमें जान लेना चाहिए कि पोषक तत्त्व कौन-कौनसे हैं और ये हमें किन पदार्थों से प्राप्त होते हैं। इस दृष्टि से भोजन का संगठन और उसके कार्यों पर भी एक नजर डालना उपयोगी है।
पोषक तत्त्वों की कमी से पैदा होने वाले रोग – हमारे दैनिक भोज्य पदार्थों में विद्यमान तत्त्वों को रासायनिक संघटन की दृष्टि से छः वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—
(1) प्रोटीन
(2) कार्बोज (कार्बोहाइड्रेट)
(3) वसा
(4) खनिज लवण
(5) विटामिन और
(6) जल।
(1) प्रोटीन – ये दो प्रकार के होते हैं – (1) जन्तुजन्य तथा (2) वनस्पति जन्य । इनकी प्राप्ति गेहूँ, जो, चना, चावल, अरहर, हरे साग, दूध, अण्डा, माँस आदि से होती है।
प्रोटीन की कमी से उत्पन्न रोग— शरीर की वृद्धि में रुकावट, आवश्यक शक्ति प्राप्त होने की कमी, क्वाशियरको नामक रोग ।
उपाय — प्रोटीन युक्त पदार्थों का सेवन, आवश्यक होने पर चिकित्सकीय सहायता की प्राप्ति ।
(2) कार्बोज या कार्बोहाइड्रेट – ये श्वेतसार (माड़ी) तथा शक्कर के खाने से प्राप्त होते हैं। इनकी प्राप्ति गेहूँ, चावल, आलू, शकरकन्द आदि से होती है। गन्ने का रस, मीठे फल, अंगूर तथा खजूर आदि में अधिक होते हैं।
कार्बोज की कमी से रोग – शारीरिक श्रम के लिए गर्मी एवं शक्ति में कमी, शरीर के ताप को स्थिर रखने में शिथिलता इनकी अधिकता से बदहजमी और शरीर में स्थूलता आ जाती है।
उपाय — उचित मात्रा में कार्बोज युक्त पदार्थों का सेवन, डॉक्टरी परामर्श ।
(3) वसा – पशुओं से प्राप्त वसा, मक्खन, घी आदि हैं और वनस्पतियों से प्राप्त वसा सरसों, तिल, नारियल का तेल आदि है। सूखे मेवे, अखरोट, मूँगफली आदि भी इसके स्रोत हैं। यह कार्बोज की तुलना में सवा दो गुनी अधिक शक्ति प्रदान करते हैं।
वसा की कमी से रोग — शरीर की सुडौलता में कमी, स्वास्थ्य और शक्ति में ह्रास ।
उपाय — कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन तत्त्वों से युक्त पदार्थों का सेवन, डॉक्टरी परामर्श ।
(4) खनिज लवण – ये तत्त्व फॉस्फोरस, लोहा, कैल्शियम और सेडियम आदि हैं। ये हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं।
खनिज लवणों की कमी से रोग – हड्डियों तथा दाँतों को उचित पोषण नहीं मिल पाता, रक्त को हीमोग्लोबिन नहीं मिलता। खनिज लवणों की कमी से घेंघा नामक रोग उत्पन्न हो जाता है।
उपाय — दूध, अण्डा, पत्तियों वाली सब्जी का सेवन, डॉक्टरी परामर्श । घेंघा रोग आयोडीन की कमी से होता है। अतः गाजर, गोभी, लहसुन, केला आदि का प्रयोग लाभकारी है।
( 5 ) विटामिन – इनका ज्ञान 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही हुआ है। इनके नाम अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों A, B, C, D, E आदि के आधार पर रखे गये हैं।
विटामिन ‘ए’ की कमी से रोग–प्रायः रतौंधी का रोग हो जाता है ।
उपाय — विटामिन ‘ए’ से युक्त पदार्थों का सेवन, डॉक्टरी परामर्श ।
विटामिन ‘बी’—यह विटामिन वास्तव में कई विटामिनों का एक समूह है, जिसे ‘बी-काम्पलैक्स’ कहा जाता है, जैसे—बी, बी,, बी, तथा बी आदि। इनकी प्राप्ति खमीर, गेहूँ, जौ, चावल, चोकर, दालें, मेवे, दूध, दही, अण्डा तथा माँस आदि से होती है।
विटामिन ‘बी’ की कमी से रोग— भूख में कमी, हृदय की दुर्बलता, शरीर में कमजोरी तथा आलसीपन, अधिक कमी से ‘बेरी-बेरी’ तथा ‘पेलाग्रा’ नामक रोग ।
उपाय — विटामिन ‘बी’ युक्त पदार्थों का सेवन, डॉक्टरी परामर्श ।
विटामिन ‘सी’ – ये सन्तरा, नींबू, टमाटर, अंगूर, आँवला तथा हरी सब्जियों में पाये जाते हैं, अंकुरित दालों में यह काफी मात्रा में होते हैं। इनका कार्य रक्त की शुद्धता, अस्थियों तथा दाँतों के निर्माण तथा वृद्धि में सहायता, मस्तिष्क का पोषण आदि हैं।
विटामिन ‘सी’ की कमी से रोग— विटामिन ‘सी’ की कमी से ‘स्कर्वी’ नामक रोग हो जाता है। जिससे मसूड़े फूलना, मस्तिष्क की कमजोरी, शरीर में थकान आदि होने लगते हैं।
उपाय–विटामिन ‘सी’ युक्त पदार्थों का सेवन, डॉक्टरी परामर्श ।
विटामिन ‘डी’—यह विटामिन दूध, मक्खन, अण्डा, मछली के तेल से प्राप्त होती है, त्वचा पर सूर्य की किरणों के प्रभाव से भी यह शरीर में उत्पन्न हो जाता है। इसके प्रयोग से शरीर में कैल्शियम तथा फास्फोरस के लवणों का शोषण होता है, अस्थियों तथा दाँतों में सुदृढ़ता आती है, गर्भवती स्त्रियों के लिए अधिक लाभप्रद है।
विटामिन ‘डी’ की कमी से रोग–बच्चों को सूखा रोग (रिकेट्स) | तथा स्त्रियों में मश्लास्थि रोग हो जाता है।
उपाय — विटामिन ‘डी’ युक्त पदार्थों का सेवन, डॉक्टरी परामर्श ।
विटामिन ‘ई’ – यह विशेष रूप से दूध, मक्खन, माँस तथा’ अनाज के दानों के तेल’ आदि में पाया जाता है। इसे बन्ध्यता विरोधी विटामिन भी कहा जाता है।
विटामिन ‘ई’ की कमी से रोग— स्त्री पुरुषों की सन्तानोत्पत्ति शक्ति में कमी, स्त्रियों में बाँझपन, पुरुषों की नपुंसकता, गर्भपात की आशंका आदि ।
उपाय — विटामिन ‘ई’ युक्त पदार्थों का सेवन, विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श ।
विटामिन ‘के’ – यह प्रायः गोभी, करमकल्ला, पालक, आलू, टमाटर, दूध, मक्खन तथा अण्डे आदि में पाया जाता है। रक्त को जमाने (थक्का बनाने) के लिए यह अत्यावश्यक है। गर्भिणी तथा स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के लिए अधिक उपयोगी है।
अतः विटामिन ‘के’ की कमी से रोग— रक्त के जमने में बाधा, अधिक रक्तस्राव होने का भय, गर्भिणी तथा प्रसूताओं को शारीरिक दुर्बलता ।
उपाय — विटामिन ‘के’ युक्त पदार्थों का सेवन, डॉक्टरी परामर्श ।
(6) जल – जल जीवन का मूल आधार है। हमारे शरीर में 70 प्रतिशत भाग जल ही होता है। इसे हम भोज्य पदार्थों के साथ प्राप्त करते हैं, यह भोजन के पाचन में सहायक है तथा शरीर की गन्दगी को दूर करता है। रक्त को तरल बनाये रखता है तथा शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है।
जल की कमी से रोग — शरीर में विषाक्त पदार्थों का संचय, का पाचन न होने से भूख की कमी, स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव ।
उपाय — मौसम के अनुसार जल का पर्याप्त प्रयोग करना चाहिए, दैनिक जीवन में शुद्ध जल का ही प्रयोग करना चाहिए, गन्दे तथा कीटाणु युक्त जल को शुद्ध करके ही लेना चाहिए । व्यक्ति को दिनभर में कम से कम 3 से 4 लीटर जल पीना आवश्यक है ।
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