प्रतिवर्ती क्रिया क्या है ? चित्र की सहायता से इसका वर्णन करिए।
प्रतिवर्ती क्रिया क्या है ? चित्र की सहायता से इसका वर्णन करिए।
उत्तर⇒प्रतिवर्ती क्रियाएँ स्वायत्त प्रेरक के प्रत्युत्तर हैं। ये क्रियाएँ मस्तिष्क की इच्छा के बिना होती हैं। इसलिए ये अनैच्छिक क्रियाएँ हैं। यह बहुत स्पट आर यांत्रिक प्रकार की हैं।
प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित पेशियों द्वारा अनैच्छिक क्रियाएँ होती हैं जो प्रेरक के प्रत्युत्तर में होती हैं। यदि शरीर के किसी भाग में अचानक एक पिनचुभोया जाए तो संवेदियों द्वारा प्राप्त यह उद्दीपक इस प्रेरक तंतु क्षेत्र के एफैरेंट तंत्रिका तंतु को उद्दीपित करता है। तंत्रिका तंतु मेरु तंत्रिका के पृष्ठीय पथ द्वारा इस उद्दीपक को मेरुरज्जु तक ले जाता है।
मेरुरज्जु से यह उद्दीपन के अधरीय पथ द्वारा एक या अधिक इफरेंट (Efferent) तंत्रिका तंतु में पहुँचता है । इफैरेंट तंत्रिका तंतु प्रभावी अंगों को उद्दीपित करता है। पिन चुभोने के । तुरंत बाद इसी कारण प्राणी प्रभावी भाग हटा लेता है। उद्दीपक का संवेदी अंग से प्रभावी अंग तक का पथ प्रतिवर्ती चाप कहलाता है।
प्रतिवर्ती चाप तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकाई बनाती है।
प्रतिवर्ती चाप में होता है ।
(i) संवेदी अंग – वह अंग या स्थान जो प्रेरक को प्राप्त करता है।
(ii)एफैरेंट तंत्रिका तन्तु (Afferent Nerve Fibre)-यह संवेदक प्रेरणा को संवेदी अंग से केंद्रीय तंत्र तक ले जाता है, जैसे मस्तिष्क यामेरुरज्जु ।
(ii) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र-मस्तिष्क या मेरुरज्जु का कुछ भाग ।
(iv) इफैरेंट अथवा मोटर तंत्रिका (Efferent or Motor Nerve)- यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मोटर प्रेरणाओं को प्रभावी अंगों तक लाता है, जैसे पेशियाँ अथवा ग्रंथियाँ।
(v) प्रभावी अंग (Effector)-यह तंत्रिका विहीन भाग जैसे ग्रंथियों की पेशियाँ जहाँ मोटर प्रेरणा खत्म होती है और प्रत्युत्तर दिया जाता है। कार्य-प्रतिवर्ती क्रिया प्रेरक को तुरंत प्रत्युत्तर देने में सहायता करती है और मस्तिष्क को भी अधिक कार्य से मुक्त करती है।