प्राकृतिक आपदा के प्रकार बताइये ।
प्राकृतिक आपदा के प्रकार बताइये ।
उत्तर – प्राकृतिक आपदा के प्रकार — प्राकृतिक आपदा के प्रकार निम्न हैं—
(1) पार्थिव प्राकृतिक आपदायें (Planetary Natural Disaster)–इनके अन्तर्गत पृथ्वी के उन प्रक्रमों को सम्मिलित किया जाता है, जिनके द्वारा पृथ्वी की आपदापन्न घटनाएँ उत्पन्न होती है। पार्थिव आपदायें निम्नलिखित हैं—
(i) भूकम्प (Earth Quake) – पृथ्वी की चट्टानों से होकर दोलनकारी तरंगों के गुजरने से उत्पन्न कम्पन को ‘भूकम्प’ कहते हैं। इसके आने के विभिन्न कारण होते हैं, जिनमें ज्वालामुखी क्रिया, भ्रंशन क्रिया (Faulting), समस्थितिक समायोजन (Isostatic Adjustment ) आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त पर्वतीय स्थानों पर भूस्खलन तथा महाद्वीपीय जलमग्न तट का यकायक टूटना आदि स्थानीय कारण भी सम्मिलित है। भूकम्प की तीव्रता मरकेली (Mercali) तथा रिक्टर (Richter) पैमाने की सहायता से मापी जाती है ।
(ii) भूस्खलन (Landslide) – भूस्खलन एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है। इस घटना में भूमि का एक भाग टूटकर निम्नतर भागों की ओर खिसकता है। यह क्रिया गुरुत्वाकर्षण द्वारा प्राकृतिक रूप से होती है। यह क्रिया अधिकांशतः पर्वतीय उच्च प्रदेशों में होती है। स्ट्रेलर के अनुसार “पर्वतीय ढाल पर किसी भी चट्टान का गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन है।” यदि यह खिसकाव मंद गति से हो तो इसे मृदा खिसकाव (Soilcreep) कहते हैं तथा जब वृहद स्तर पर बड़े शिलाखण्ड़ों का खिसकाव होता है तो इसे भूस्खलन कहते हैं । भूस्खलन विभिन्न कारणों से होता है, जिनमें पृथ्वी की आन्तरिक हलचल, भूसन्तुलन का बिगड़ना, जल द्वारा कटाव, ज्वालामुखी उद्गार तथा भूकम्प प्रमुख हैं।
(iii) ज्वालामुखी क्रिया (Volcanism) – ज्वालामुखी क्रिया भी भूकम्प की तरह एक प्रमुख आपदापन्न प्राकृतिक घटना है। ज्वालामुखी विस्फोट के अनेक कारण बताये जाते हैं, जिनमें पृथ्वी तल के अन्दर दरारों, लवनों का प्रभाव, रेडियो एक्टिव कणों की उपस्थिति आदि प्रमुख हैं। ज्वालामुखी क्रिया द्वारा भूगर्भिक संरचना में परिवर्तन होता है।
(iv) हिमस्खलन (Snowslide) – उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिमस्खलन के कारण प्रभावित क्षेत्रों में काफी हानि पहुँचती है। लेकिन इस क्रिया का प्रभाव अधिक व्यापक नहीं होता है।
(v) चक्रवात (Cyclones) — ये समस्त जलवायु तथा मौसम सम्बन्धी चरम घटनाओं से सम्बन्धित होती हैं। इनकी उत्पत्ति वायुमण्डलीय प्रक्रमों से होती है। ये आपदाएँ दो प्रकार की होती है, यथा दीर्घकालीन आपदाएँ। दीर्घकालीन आपदाओं में बाढ़, सूखा, ताप तथा शीत लहर आदि को सम्मिलित किया जाता है जो संचयी प्रभाव वाले होते हैं। आकस्मिक आपदाओं में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात व तूफान सम्मिलित है। इन चक्रवातों में निम्न प्रमुख हैं—(अ) हरिकेन, (ब) टायफन (स) टारनेडो ।
(vi) बाढ़ (Flood) — बाढ़ भी एक प्राकृतिक आपदा है, कारण विस्तृत क्षेत्र जल प्लावित हो जाता है। इस कारण कृषि का विनाश होता है। वनस्पति समाप्त होकर मृदा अपरदन तीव्र हो जाता है। आवासीय बस्तियाँ जलमग्न हो जाती है। मनुष्य पशु, एवं पक्षियों बाढ़ रूपी काल के ग्रास बन जाते हैं। बाढ़ के उपरान्त विभिन्न क्षेत्रों में जल के फैलने से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ दूषित जल एवं दलदली क्षेत्रों में उत्पन्न होती है। भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से बहुत हानि होती है।
(2) पृथ्व्येत्तर प्राकृतिक आपदायें (Extra Planetary Disasters) — पृथ्वी के बाहर से घटित आपदाओं को पृथ्व्येत्तर आपदायें कहते हैं, ये क्षुद्रग्रह, मध्यवर्ती ग्रह तथा पृच्छल तारों (Coments) की टक्कर के कारण उत्पन्न होती हैं। इनके पृथ्वी की बाहरी वस्तुओं से टक्क्र के कारण अपार धूल-राशि उत्पन्न होती है। महासागरों में ज्वारीय तरंगे उठती हैं सागर तल में परिवर्तन, जलवायु में परिवर्तन, स्थलाकृतियों में परिवर्तन, ज्वालामुखी क्रिया तथा भूतल पर गर्तों का निर्माण आदि परिवर्तन होते हैं। इस प्रकार की अनेक आपदायें प्रकट हो चुकी हैं ।
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