प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं ?

 प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर—  प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन – प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्ध एक जटिल प्रक्रिया है जो मानव से व्यक्ति, समुदाय से समुदाय तथा प्रदेश से प्रदेश में भिन्नता रखती है। मानव ने पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में जहाँ प्रगति की है व संसाधनों का अतिदोहन किया है वहाँ उसका प्रभाव पर्यावरण के सम्पूर्ण घटकों व प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ा है और स्वाभाविक क्रिया में बााध आने से प्राकृतिक आपदाओं का बोलबाला हो गया है। मानव की शारीरिक व मानसिक सामर्थ्य कम हुई है तथा वनस्पति व जीव-जन्तुओं की नई प्रजातियाँ लुप्त होती जा रही है और प्राकृतिक संसाधनों के समाप्त होने का संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है। अतः इन समस्याओं के निवारण के लिए पर्यावरण के संसाधन प्रबन्ध की आज प्राथमिक आवश्यकता है जिसके द्वारा संसाधनों का युक्ति संगत उपयोग होने के साथ ही क्षेत्रीय आवश्यकताओं को पूर्ण करके पर्यावरण की क्रियाओं मे सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है और आवश्यकता होने पर उपयोग को भी सीमित किया जा सकता है ।
प्रबन्धन के मुख्य बिन्दु — प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्ध के मुख्य बिन्दु निम्न हैं—
(i) पर्यावरण व संसाधन उपयोग सम्बन्धी राष्ट्रीय नीति-निर्धारण में सहयोग करना ।
(ii) पर्यावरण व संसाधन संरक्षण एवं प्रबन्धन हेतु पर्याप्त मानवीय व संस्थागत साधन जुटाना।
(iii) पर्यावरण की गुणवत्ता बनाये रखने हेतु निरन्तर पुनरीक्षण (monitoring) हेतु व्यवस्था करना ।
(iv) पर्यावरण के विभिन्न घटकों को प्रदूषित होने से बचाना।
(v) मानव की पर्यावरण प्रदूषण व संसाधन अभाव से रक्षा करना ।
(vi) विलुप्त होती हुई वनस्पति व जीवों की प्रजातियों को बचाना। विभिन्न
(vii) विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं में प्रबन्धन हेतु समन्वय स्थापित करना ।
(viii) विकास योजनाओं का पर्यावरणीय दृष्टिकोण से विश्लेषण करना ।
(ix) पर्यावरण चेतना जाग्रत करना तथा पर्यावरण शिक्षा की व्यवस्था लागू करना ।
(x) पर्यावरण के विविध पक्षों पर शोध कार्य कर उसे आकर्षित होने से बचाना ।
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