बालिका शिक्षा का अर्थ, महत्त्व एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए

बालिका शिक्षा का अर्थ, महत्त्व एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए

उत्तर – बालिका शिक्षा का अर्थ-शिक्षा अन्य अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए लड़कियों और महिलाओं को सक्षम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बहुत-सी समस्याओं को पुरुषों से नहीं कह सकने के कारण महिलाएँ कठिनाई का सामना करती रहती हैं। अगर महिलाएँ शिक्षित हैं तो वे अपने घरों की सभी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं। स्त्री शिक्षा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास में मदद करती है। आर्थिक विकास और एक राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में मदद करती है। महिला शिक्षा एक अच्छे समाज के निर्माण में मदद करता है।
संस्कृत में यह उक्ति प्रसिद्ध है’ नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति मातृ समोगुरु:’। इसका मतलब यह है कि इस दुनिया में विद्या के समान नेत्र नहीं है और माता के समान गुरु नहीं है। यह बात पूरी तरह सच है। बालक के विकास पर प्रथम और सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता का ही पड़ता है। माता ही अपने बच्चे को पाठ पढ़ाती है। बालक का यह प्रारम्भिक ज्ञान पत्थर पर बनी अमिट लकीर के समान जीवन का स्थायी आधार बन जाता है।
वास्तव में कहा जाता है कि महिलाओं की शिक्षा, किसी भी पुरुष की शिक्षा से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उस नयी समाज की रूपरेखा तैयार करने में महिलाओं की शिक्षा पुरुषों से सौ गुना अधिक उपयोगी है। इसलिए स्त्री शिक्षा के लिए सरकार को प्रयासरत होना चाहिए, तभी अत्याचार जैसी घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है।
बालिका शिक्षा का महत्त्व – बालिका शिक्षा के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है—
( 1 ) मानवीय संसाधनों के पूर्ण विकास के लिए किसी भी राष्ट्र के पास तीन प्रकार के साधन होते हैं—(i) भौतिक, (ii) आर्थिक, (iii) मानवीय ।
इन सबमें मानवीय संसाधन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भौतिक व आर्थिक साधनों का प्रयोग मानव ही करता है। यदि उसमें अपेक्षित कौशल व योग्यता न हो तो ये सभी संसाधन व्यर्थ सिद्ध होते हैं। महिलाएँ भी हमारे राष्ट्र के मानवीय संसाधन हैं अत: उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास होना राष्ट्रीय विकास के लिए बहुत आवश्यक है।
( 2 ) पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए –आजादी के बाद हमने पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य रखा लेकिन इसे अब तक प्राप्त नहीं कर पाये। इसका एक मुख्य कारण लड़कियों की शिक्षा का अभाव है। एक शिक्षित महिला अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति अधिक सचेत होती है । उनको शिक्षित किए बिना पूर्ण साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
( 3 ) महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए  – भारत में महिलायें वर्षों से शोषण का शिकार रही हैं। उन्हें एक दास एवं भोग की वस्तु मात्रा समझा जाता है। आजादी के बाद उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए विशेष कदम उठाये गये। उन्हें पुरुषों के बराबर समानता के स्तर पर लाने के लिए विशेष सुविधायें प्रदान की गयीं। केन्द्र सरकार ने राज्य सभा, लोकसभा व राज्यों की विधानसभाओं के साथ-साथ सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संसद में एक विधेयक पेश करने और आवश्यकता पड़ने पर संविधान में संशोधन करने की घोषणा की है लेकिन गाँवों में रहने वाली या शहरों की भी कम पढ़ीलिखी महिलायें इस आरक्षण तथा उन्हें दी गयी अन्य सुविधाओं का लाभ उठा ही नहीं सकतीं। इसके लिए उनका शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षा के अभाव में उनसे यह अपेक्षा ही नहीं की जासकती कि वे अपने प्रति किए जा रहे शोषण के विरुद्ध आवाज उठायें। आवश्यकता इस बात की है कि उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता लायी जाये, उन्हें उनकी दयनीय दशा का बोध कराया जाये और उसे  सुधारने के लिए प्रेरित किया जाये। इसके लिए उनका शिक्षित होना जरूरी है।
(4) बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए – कोठारी आयोग ने उन्हें “भारत का भाग्य” (Destiny of India) कहा है। प्लेटो ने कहा था कि राष्ट्र का निर्माण देवदार के वृक्षों या ईंट-पत्थरों से नहीं होता। इसका निर्माण तो उन लोगों के चरित्र से होता है जो उसमें रहते हैं। बच्चों में इस अच्छे चरित्र की नींव बाल्यावस्था में ही पड़ जाती है। उसके चरित्र निर्माण में सर्वाधिक योगदान उसकी माँ का होता है।
(5) अनेक राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए –  हमारे में अनेक ऐसी समस्यायें हैं जिनके समाधान में महिलायें अपना रचनात्मक सहयोग प्रदान कर सकती हैं लेकिन इसके लिए उनका शिक्षित होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या अपने आप में तो एक समस्या है ही; गरीबी, बेरोजगारी तथा प्रदूषण जैसी अन्य समस्याओं का कारण भी है। एक शिक्षित महिला बड़े परिवार के खतरों को समझ कर अपने परिवार को सीमित रख सकती है जिससे वह अपने परिवार की दशा को तो सुधारती ही है, अनेक राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने में भी अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है।
(6) सामाजिक परिवर्तन के लिए  – कोई भी समाज तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक उसके निवासी प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तनों को नहीं अपनाते। भारतीय समाज एक बन्द समाज (Closed Society) रहा है। यहाँ लोग अपने पुराने तौर-तरीकों को छोड़कर नए परिवर्तनों को स्वीकार करने से घबराते हैं। उनमें नवीनता का भय इतना अधिक है कि वे अपनी पुरानी रूढ़ियों व विश्वासों को छोड़ना ही नहीं चाहते। यह प्रवृत्ति पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक है। शिक्षा के बिना उन्हें उनकी पुरानी सोच से मुक्त नहीं किया जा सकता। अतः नवीन प्रगतिशील सामाजिक परिवर्तनों को प्रोत्साहन देने के लिए लड़कियों की शिक्षा आवश्यक है।
(7) बच्चों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिएआज भारत के अधिकतर बच्चे माताओं के अशिक्षित होने के कारण कुपोषण व अनेक बीमारियों के शिकार हैं। स्वस्थ शरीर के अभाव में उनके व्यक्तित्व के अन्य पक्ष भी पूर्णतः विकसित नहीं हो पाते । स्त्री शिक्षा महिलाओं को इस योग्य बनाती है कि वे अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें और उन्हें जानलेवा बीमारियों से बचायें। यही नहीं, शिक्षित महिलायें बच्चों को समाज के योग्य नागरिक के रूप में तैयार करती हैं।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि आज भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी स्त्री शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की जा रही है और इसके लिए विशेष कदम भी उठाये जा रहे हैं।
बालिका शिक्षा की समस्याएँ – बालिका शिक्षा की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं—
(1) बालिकाओं और उनकी शिक्षा की ओर माँ बाप का नकारात्मक रवैया होना।
(2) अधिकतर परिवारों में घर के लड़कों की शिक्षा की प्राथमिकता दिया जाना।
(3) माँ-बाप द्वारा बालिकाओं को घर या गाँव से दूर के स्कूल में नहीं भेजना।
(4) बालिका स्कूलों में समुचित व्यवस्थाओं का न होना।
(5) समाज में महिला शिक्षकों की कमी का होना।
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