बिहार पर तुर्क आक्रमण (Turkish attacks on Bihar)

बिहार पर तुर्क आक्रमण (Turkish attacks on Bihar)

बिहार में तुर्क शासन – बिहार इतिहास

12वी और तेरहवीं सर्दियों के मोड़ पर तुर्क आक्रमण के समय बिहार का क्षेत्र एक संगठित राजनीतिक इकाई नहीं बना था. उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच गंगा नदी एक भौगोलिक विभाजन रेखा के साथ साथ राजनीतिक सीमा रेखा भी थी. उत्तरी बिहार का अधिकाश भाग उस समय मिथिला की के कर्नाट वंश द्वारा शासिंत था, जबकि दक्षिण बिहार विभिन्न छोटे-छोटे शासकों के अधीन था.

पठारी क्षेत्र में छोटानागपुर के नाग वंश की चर्चा मिलती है, परंतु विस्तृत रूप में नहीं. मध्यकालीन बिहार के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह रही है कि यह सभी क्षेत्र एक संगठित राजनीतिक और प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत आए.

बिहार में तुर्क सता की स्थापना का वास्तविक श्रेय इख्तियारदीन मोहम्मद इब्ने बख्तियार खिलजी को जाता है. वह बनारस और अवध क्षेत्र के सेनापति मलिक हसमुद्दीन का सहायक था.

उसने 12 वीं और तेरहवीं के मोड़ पर बिहार में कर्मनाशा नदी के पूर्वी ओर सैनिक अभियान आरंभ किए. उस समय सेन वंश का शासक लक्ष्मण सेन था और पाल वंश का शासक इंद्रधनु पाल था. मनेर को अपने सैनिक अभियान का केंद्र बना कर 1198 से 1204 ईसवी के बीच उसने मगध एवं अन्य राज्यों को आत्मसमर्पण हेतु विवश कर दिया.

भौगोलिक कारणों से उसमें बिहार और बंगाल की राजनीतिक स्थिति या एक समान बनी रही. सल्तनत काल में बंगाल में कई बार स्वतंत्र राज्यों का निर्माण हुआ. बंगाल के साथ हमेशा बिहार पर नियंत्रण का प्रयास करते रहे क्योंकि वे दिल्ली की ओर से होने वाले किसी आक्रमण की स्थिति के लिए बिहार को एक अग्रिम पंक्ति के रूप में विकसित करना चाहते थे. फलत: बिहार का क्षेत्र दिल्ली और लखनौती (बंगाल) के सुल्तानों के बीच संघर्ष का अखाड़ा बन रहा था.

बिहार के क्षेत्र में इल्तुतमिश, बलबन, गयासुद्दीन तुगलक, फिरोजा और सिकंदर लोदी के अभियान (आक्रमण) हुए. इन सभी ने बिहार पर अपना वर्चस्व कायम करने के प्रयत्न किए.

लगभग 1225 ईसवी में इल्तुतमिश ने बिहार पर अधिकार कर लिया था. परंतु इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी वह नियंत्रण बनाए रखने में विफल रहे. बाद में बलबन ने क्षेत्र में अभियान किए और तुगरिल के विद्रोह का दमन किया. इस समय तोपों का नियंत्रण गंगा नदी से तटे हुए दक्षिणी मैदान पर स्थापित था.

तुगलक के समय मुख्य रूप से बिहार पर दिल्ली के सुल्तानों का महत्वपूर्ण वर्चस्व कायम हुआ. गयासुद्दीन तुगलक ने 1324 में बंगाल अभियान से लौटते समय उत्तर बिहार में कर्नाटक वंशीय शासक हरि सिंह देव को पराजित किया.

मोहम्मद बिन तुगलक काल में बिहार के प्रांतपति मज्दुल मुल्क ने हरी सिंह देव के विरुद्ध अभियान चलाकर उन्हें  पहाड़ियों में शरण लेने हेतु मजबूर कर दिया. इस प्रकार तिरहुत क्षेत्रम को तुगलक साम्राज्य में मिला लिया गया और क्षेत्र को तुगलकपूर नाम रखा गया. यहां से मोहम्मद बिन तुगलक के सिक्के प्राप्त हुए.

दरभंगा में सुल्तान ने एक दुर्ग और जामा मस्जिद का निर्माण भी करवाया था. गया और पटना के क्षेत्रों से अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं. राजगीर के जैन मंदिरों के अभिलेखों में फिरोजशाह तुगलक द्वारा उन्हें दान दिए जाने का उल्लेख है.

तुगलक के काल में बिहार की राजधानी बिहार शरीफ में थी. बिहार राज्य का नाम बिहार संभवत इसी काल में पड़ा. बिहार शरीफ में ओदंतपुरी का महाविहार और अन्य अनेक विहार यहां मौजूद थे. माना जाता है कि इन्हीं विवादों के कारण राज्य का नाम बिहार पड़ा.

11वीं सदी के प्रारंभ में भारत पर गजनी वंश के शासक महमूद गजनी के नेतृत्व में तुर्क आक्रमण हुआ।

  • तुर्क आक्रमण की जानकारी फिरदौसी की रचना ‘शाहनामा’ से मिलती है।
  • ‘शाहनामा’ फारसी साहित्य की प्रथम सबसे प्रसिद्ध रचना है।




महमूद गजनी का आक्रमण (Mahmoud Ghazni invasion)

  • यामिनी वंश का महमूद गजनी, जो सुबुक्तगीन का पुत्र था, उसने ‘गाजी’ की उपाधि धारण की।
  • महमूद गजनी ने सर्वप्रथम 1001 ई. में उद्भडपुर के हिंदूशाही वंश के शासक जयपाल पर आक्रमण किया था।
  • उसके बाद 1011-12 ई. में थानेश्वर के चक्रस्वामी मंदिर पर एवं 1021-22 ई. में पंजाब पर आक्रमण किया। पंजाब पर आक्रमण का मूल उद्देश्य सैनिक केंद्र की स्थापना करना था।
  • 1025-26 ई. में गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया।
  • गजनी का अंतिम आक्रमण 1027 ई. में जाट शासकों के खिलाफ था।
  • गजनी के आक्रमण का मुख्य उद्देश्य धन लूटना था। इसलिए भारत एवं बिहार के राजनीतिक इतिहास पर इस आक्रमण का विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।

मुहम्मद गोरी का आक्रमण (Invasion of Muhammad Ghori)

  • 12वीं सदी के उत्तरार्ध में भारत पर मुहम्मद गोरी का आक्रमण शुरू हुआ, जिसे तुर्क आक्रमण का द्वितीय चरण भी कहते हैं।
  • मुहम्मद गोरी का मूल नाम मोइजुद्दीन मुहम्मद बिन शाम था।
  • इसने 1175 ई. से 1194 ई. तक भारत पर कई बार आक्रमण किया।
  • इसके आक्रमण का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक सत्ता की स्थापना करना था और इस उद्देश्य में वह पूरी तरह सफल रहा।
  • इसके आक्रमण से पूर्वी भारत में बिहार और बंगाल तक का क्षेत्र प्रभावित हुआ। इसके सफल होने का कारण राजनीतिक एकता का अभाव था।
  • भारत की तरह ही इसके आक्रमण के समय बिहार पर भी विकेंद्रीकृत शक्तियाँ प्रभावी थीं। बिहार भी संगठित राजनीतिक इकाई नहीं था।
  • इस समय उत्तरी बिहार के अधिकांश हिस्सों पर कर्णाट वंश का शासन था, जबकि अन्य भाग में छोटे-छोटे राज्य स्थापित थे। इस समय बंगाल के सेन वंश के शासकों ने बिहार पर आक्रमण कर इसकी स्थिति अत्यधिक दयनीय बना दी थी।




बख्तियार खिलजी (Bakhtiar Khaliji)

  • भारत में मुहम्मद गोरी के तीन सेनापति विजय अभियान चला रहे थे, जिसमें एक सेनापति इख्तियार-अल-दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी पूर्वी भारत में बिहार-बंगाल तक अपना अभियान चला रहा था।
  • बख्तियार खिलजी को गाजी इख्तियार के नाम से भी जाना जाता है।
  • अतः बिहार में तुर्क सत्ता की स्थापना का श्रेय बख्तियार खिलजी को जाता है।
  • जिस समय बख्तियार खिलजी ने बिहार-बंगाल क्षेत्र पर आक्रमण किया, उस समय सेन वंश का शासक लक्ष्मण सेन और पाल वंश का शासक इंद्रद्युम्न पाल ने उसका विरोध किया था।
  • बख्तियार खिलजी ने सबसे पहले बिहार में 1198 ई. में ओदंतपुरी (बिहारशरीफ) को जीता एवं वहाँ स्थापित शिक्षण संस्थान नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर नष्ट कर दिया।
  • 1203-04 ई. में लक्ष्मण सेन की राजधानी नादिया पर आक्रमण किया और उसे पराजित किया।
  • बख्तियार खिलजी ने बिहार और बंगाल के क्षेत्रों को जीतकर एक प्रांत के रूप में संगठित किया तथा लखनौती को राजधानी के रूप में स्थापित किया।
  • बख्तियार खिलजी की हत्या अलीमर्दान खिलजी द्वारा 1206 ई. में कर दी गई।

कुतुबुद्दीन ऐबक (Qutubuddin Aibak)

  • बख्तियार खिलजी के बाद इस क्षेत्र में मुहम्मद गोरी का अन्य सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन स्थापित रहा।
  • 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु होने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में स्वतंत्र तुर्क सत्ता की स्थापना की, जिसे दिल्ली सल्तनत के नाम से जाना जाता है।
  • बिहार-बंगाल का क्षेत्र भी बख्तियार खिलजी की मृत्यु के बाद प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दिल्ली सल्तनत के अधीन आ गया। दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ ही पूर्व मध्यकाल की समाप्ति और मध्यकाल का प्रारंभ होता है।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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