भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें।

उत्तर ⇒ 20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ही भारत में साम्यवादी विचारधाराओं क अंतर्गत बंबई, कलकत्ता, कानपर, लाहौर, मद्रास आदि जगहों पर साम्यवादी सभाएं बननी शुरू हो गई थी। उस समय इन विचारों से जुड़े लोगों में मुजफ्फर अहमद, एस० ए० डांगे, मौलवी बरकतुल्ला, गुलाम हुसैन आदि नाम प्रमुख हैं। इन लोगों ने अपने पत्रों के माध्यम से साम्यवादी विचारों का पोषण शुरू कर दिया था। परंतु रूसी क्रांति की सफलता के बाद साम्यवादी विचारों का तेजी से भारत में फैलाव शुरू हुआ। उसी समय 1920 में एम० एन० राय ने ताशकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। असहयोग आंदोलन के दौरान पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन्हें उपने विचारों को फैलाने का मौका मिला। अब ये लोग आतंकवादी राष्ट्रवादी आंदोलनों से भी जुड़ने लगे थे। इसलिए असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद सरकार ने इन लोगों का दमन शुरू किया और पेशावर षड्यंत्र केस (1922-23), कानपुर षड्यंत्र केस (1924) और मेरठ षड्यंत्र केस (1929) के तहत लोगों पर मुकदमें चलाए। तब साम्यवादियों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया और राष्ट्रवादी “साम्यवादी शहीद” कहे जाने लगे। इसी समय इन्हें कांग्रेसियों का समर्थन मिला क्योंकि सरकार द्वारा लाए गए “पब्लिक सेफ्टी बिल” को कांग्रेसी पारित होने नहीं दिए थे, क्योंकि यह कानून कम्युनिस्टों के विरोध में था। इस तरह अब साम्यवादी आंदोलन प्रतिष्ठित होता जा रहा था।
अब तक कई मजदूर संघों का गठन हो चुका था। 1920 में AITUC की स्थापना हो गई थी तथा 1929 में एन० एम० जोशी ने AITUF का गठन कर लिया। इस तरह वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था। किसानों को भी साम्यवाद से जोड़ने का प्रयास हुआ। लेबर स्वराज पार्टी भारत में पहली किसान मजदूर पार्टी थी लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर दिसंबर, 1928 में अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी बनी। अक्टूबर, 1934 में बंबई में कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की गयी। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान साम्यवादियों ने कांग्रेस का विरोध करना शुरू किया क्योंकि कांग्रेस उन उद्योगपतियों एवं मर्थन से चल रही थी जो मजदूरों का शोषण करते थे।

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