भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में जनजातीय लोगों की क्या भूमिका थी ?

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में जनजातीय लोगों की क्या भूमिका थी ?

उत्तर ⇒ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में जनजातियों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 19 वीं एवं 20 वीं शताब्दियों में उनके अनेक आंदोलन हुए। 19 वा शताब्दी में हो, कोल, संथाल एवं बिरसा मुंडा आंदोलन हुए। 1916 में दक्षिण भारत की गोदावरी पहाड़ियों के पुराने रंपा प्रदेश में विद्रोह हुआ। 1920 के दशक में आंध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में अल्लूरी सीताराम राजू का विद्रोह हुआ। छोटानागपुर में उराँव जनजातियों के बीच जतरा भगत के नेतृत्व में ताना भगत आंदोलन चला। इन प्रमुख आंदोलनों के अतिरिक्त देश के अन्य भागों में भी अनेक जनजातीय विद्रोह हुए, जैसे – उड़ीसा में 1914 का खोंड विद्रोह, 1917 में मयूरभंज में संथालों एवं मणिपुर में थोडोई कुकियों का विद्रोह, बस्तर में 1910 में गुंदा धुर का विद्रोह इत्यादि। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत की जनजातियों एवं भारत छोडो आंदोलन के समय झारखंड के आदिवासियों ने भी विद्रोह किए। ये सभी जनजातीय विद्रोह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हुए थे।

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