भाषा की कोई चार प्रकृति लिखिए ।
भाषा की कोई चार प्रकृति लिखिए ।
उत्तर— भाषा की प्रकृति – भाषा की प्रकृति निम्नलिखित प्रकार की होती है—
(1) भाषा व विचार का अटूट सम्बन्ध होता है– भाषा का विचार से अटूट सम्बन्ध होता है। इनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। विचार के अभाव में भाषा का कोई मूल्य नहीं होता है। विचारों से ध्वनि उद्भुत होती है और ध्वनियों से विचार | विचार – प्रधान भाषा मनुष्य की विशेषता है। मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों में उनकी अपनी भाषा तो होती है परन्तु विचार नहीं होते। इसलिए उनकी भाषा का कोई मूल्य नहीं होता है।
(2) भाषा अभिव्यक्ति का एक सांकेतिक साधन है–भाषा अभिव्यक्ति का एक सांकेतिक साधन है। भाषा के रूप में प्रयुक्त संकेतों द्वारा समाज के सदस्य अपने भाव प्रकाशित व आपसी विचार-विनिमय करते हैं।
(3) भाषा का सम्बन्ध परम्परा से होता है– भाषा का सम्बन्ध परम्परा से होता है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी द्वारा ग्रहण की जाती है। इसके मूल रूप में थोड़ा-बहुत परिवर्तन तो कर सकते हैं। परन्तु इसमें आमूल-चूल परिवर्तन या बिलकुल नई भाषा का सृजन एक साथ नहीं कर सकते ।
(4) भाषा अर्जित सम्पत्ति है– भाषा का वंशानुक्रम से सम्बन्ध नहीं होता है। बालक प्रारम्भ से ही वातावरण से सीखने का प्रयत्न करता है। वह जिन लोगों के बीच रहता है, उन्हीं का अनुकरण कर उसकी भाषा सीख लेता है। यदि किसी हिन्दी भाषी बालक को अंग्रेजी दम्पति के बीच रखा जाये तो वह अंग्रेजी भाषा ही सीखेगा। इसी प्रकार पंजाब में बस जाने वाली हिन्दी भाषी माँ-बाप के बच्चे पंजाबी बहुत अच्छी तरह बोल व समझ सकते हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि भाषा पैतृक सम्पत्ति न होकर एक अर्जित सम्पत्ति है।
(5) भाषा गतिशील तथा परिवर्तनशील होती है– भाषा स्थिर नहीं होती वरन् वह गतिशील होती है। किसी भाषा विशेष के बोलने वाले उसमें कम से कम परिवर्तन करना चाहते हैं, फिर भी देश, काल तथा सम्पर्क के अनुसार भाषा के रूप में परिवर्तन होता रहता है। भाषा का कोई अन्तिम स्वरूप नहीं होता है।
(6) भाषा मूल रूप से मौखिक साधन है– मौखिक ध्वनि प्रयुक्त प्रकट होने के बाद ही भाषा का अस्तित्व अपने ध्यान में आ जाता है यानि इसका उद्गम ध्वनियों से है। इसीलिए इसकी मूल प्रकृति मौखिक है। बोलने का कार्य ‘जिहवा’ और भाषा के लिए समान शब्द है, जैसे- फारसी का ‘जुबान’ अंग्रेजी का ‘टंग’ और लैटिन का ‘लिंगवा’ आदि। भाषा का मूल रूप है । सभ्यता और संस्कृति ने इसे लिखित रूप प्रदान है।
(7) भाषा मनुष्य को जन्म से प्राप्त नहीं होती अनुकरण से सीखी जाती– कोई भी अपनी माँ के पेट से भाषा सीखकर नहीं आता। मनुष्य को इसका अर्जन करना पड़ता है। इसको सीखने का सामर्थ्य उसके स्वभाव में ही होता है। भाषा अनुकरण द्वारा सीखी जाती है। बच्चे अनुकरणीय रहते हैं। जिस वातावरण मे रहते हैं, उस वातावरण के अनुसार उस स्थान की भाषा को अनुकरण द्वारा जल्द ही सीखते हैं ।
(8) भाषा का सभ्यता के साथ सम्बन्ध होता है— भाषा अपनी जाति, समाज, समुदाय और देश की सभ्यता का प्रतिबिम्ब है। भाषा सभ्यता को प्रभावित भी करती है और विकास की ओर अग्रसर करती है। बैन जानसन ने भाषा को सभ्यता का साधन कहा है।
(9) भाषा एक व्यावहारिक कुशलता है– भाषा कौशल का विषय है। इसके सीखने के लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है, इसी कारण नये-नये उदाहरणों द्वारा इसका अभ्यास कराया जाता है।
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