मगध साम्राज्य के समकालीन बिहार के प्रमुख राजवंश
मगध साम्राज्य के समकालीन बिहार के प्रमुख राजवंश
बिहार एक प्राकृतिक संसाधनों के परिपूर्ण राज्य रहा है, यहाँ पर आदिकाल से ही कई समुदायों, राजवंशों ने अपना राज किया। इनमें से कुछ प्रमुख राजवंश इस प्रकार है –
वृहद्रथ-वंश (बृहद्रथ वंश) (Brihadratha Dynasty)
- संस्थापक – वृहद्रथ
- प्रसिद्ध राजा – जरासंध
- अंतिम शासक – रिपुंजय
यद्यपि मगध का प्रथम ऐतिहासिक वैश हर्यक वैश है, जिसके नेतृत्व में मगध साम्राज्य का उदय हुआ, लेकिन पौराणिक मोत के अनुसार मगध का प्रथम वंश वृहद्रथ वंश था। इस वंश का संस्थापक वृहद्रथ था। इसके पिता का नाम चेदिराज वसु था। इसकी राजधानी वसुमती या गिरिव्रज या कुशाग्रपुर थी। इस वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा जरासंध हुआ। महाभारत में जरासंध एवं भीम के बीच मल्ल युद्ध का वर्णन मिलता है। एक मान्यता के अनुसार राजगृह की चट्टानों में इस युग का पद-चिन्ह आज भी दिखाई देता है। इसने काशी, कोसल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, कलिंग, कश्मीर और गांधार के राजाओं को भी पराजित किया। जरासंध की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सहदेव शासक बना। वृहद्रथ वंश का अंतिम शासक रिपुंजय था, जिसको हत्या उसके मंत्री पुलक ने कर दी और अपने पुत्र को राजा बना दिया। बाद में एक दरबारी महीय ने पुलक और उसके पुत्र को मारकर अपने पुत्र बिंबिसार को गद्दी पर बैठाया।
हर्यक वंश (Haryanka Dynasty)
शिशुनाग वंश (412 – 345 ई.पू.) [Shishunaga Dynasty]
- संस्थापक – शिशुनाग
- प्रसिद्ध राजा – कालाशोक
- अंतिम शासक – नंदवर्धन
काशी का राज्यपाल शिशुनाग 412 ई.पू. में मगध का राजा बना। इसने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र से वैशाली स्थानांतरित किया। शिशुनाग ने वत्स, अवत, कौशांबी पर विजय प्राप्त की। 394 ई.पू. में शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक (काकण) मगध को गद्दी पर बैठा। इसने मगध की राजधानी पुनः पाटलिपुत्र को बनाया। शिशुनाग वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक कालाशोक ही हुआ। इसके शासन काल में ही वैशाली में बौद्ध धर्म की ‘दिवतीय संगीति’ का आयोजन 383 ई.पू. में हुआ। नंदवर्धन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था।
नंद वंश (345 – 321 ई.पू.) [Nanda Dynasty]
- संस्थापक – महापद्म नंद
- प्रसिद्ध राजा – महापद्मनंद एवं घनानंद
- अंतिम शासक – घनानंद
महापद्म नंद ने शिशुनाग वंश का अंत कर मगध साम्राज्य पर अधिकार किया तथा नंद वंश की स्थापना की। नंद वंश के समय मगध की शक्ति चरमोत्कर्ष पर पहुँची। इस वंश के अधीन नंद एवं उसके आठ पुत्रों ने शासन किया। इस वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक महापद्मनंद एवं घनानंद थे। महापद्मनंद को ‘कलि का अंश’, ‘सर्वश्रांतक’, ‘दूसरे परशुराम का अवतार’, ‘भार्गव’, एकराट आदि कहा गया है। भारतीय इतिहास में पहली बार महापद्मनंद ने मगध जैसे एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जिसकी सीमाएँ गंगा घाटी के मैदानों को अतिक्रमण कर गई। विध्य पर्वत के दक्षिण में विजय-पताका फहरानेवाला पहला मगध का शासक महापद्मनंद ही हुआ। उसने उड़ीसा को जीता तथा वहाँ नहर बनवाई थी। इस विशाल साम्राज्य में एकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था थी।
वह उड़ीसा से जैन मूर्ति को उठाकर मगध लाया था। महापद्मनंद के बाद मगध का अंतिम शासक घनानंद हुआ, जिसके समय में, 326 ई.पू. में, यूनानी शासक सिकंदर का भारत पर आक्रमण हुआ। 322 ई.पू. में चंद्रगुप्त मौर्य ने घनानंद को पराजित कर नंदवंश को समाप्त किया। नंद शासक जैन धर्म को मानते थे तथा शूद्र जाति से संबंधित थे।
Key Notes –
- कालाशोक के शासन काल में ही वैशाली में बौद्ध धर्म की ‘द्वितीय संगीति’ का आयोजन 383 ई.पू. में हुआ।
- घनानंद के समय में, 326 ई.पू. में, यूनानी शासक सिकंदर का भारत पर आक्रमण हुआ।
- Whats’App ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here