माध्यमिक विद्यालय स्तर पर निर्योग्य हेतु समावेशी शिक्षा नीति, 2009 की विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए ।

माध्यमिक विद्यालय स्तर पर निर्योग्य हेतु समावेशी शिक्षा नीति, 2009 की विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए ।

अथवा

माध्यमिक विद्यालय स्तर पर निःशक्त जनों के लिए समावेशित शिक्षा की योजना पर निबंध लिखिये ।
उत्तर— माध्यमिक विद्यालय स्तर पर निःशक्तजनों के लिए समावेशित शिक्षा की योजना — निःशक्त बच्चों के लिए चल रही योजना ‘निःशक्त बच्चों के लिए समेकित शिक्षा (IEDC)” में सुधार तथा आवश्यक बदलाव करते हुए अप्रैल, 2009 में माध्यमिक स्तर पर निःशक्तजनों के लिए समावेशित शिक्षा की योजना (IEDSS) की शुरूआत की गई। इस योजना का उद्देश्य किसी निःशक्त बच्चे द्वारा आठ वर्ष की प्राथमिक स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इन बच्चों को आगामी चार वर्ष के लिए माध्यमिक शिक्षा में प्रवेश दिलाना है, यह शिक्षा एक समावेशित तथा अनुकूल वातावरण में प्रदान की जाएगी।
इस योजना के अन्तर्गत उन सभी निःशक्त बच्चों को रखा जा सकता है जिनकी निःशक्तता का उल्लेख PWD Act 1995 तथा राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999) में किया गया है। योजना के अन्तर्गत स्थानीय निःशक्तता से ग्रसित ऐसे बच्चे आते हैं जो किसी सरकारी, निकाय या सरकार से सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा नवमी से बारहवीं में अध्ययन करते हों । PWD Act 1995 में उल्लेखित निःशक्तता से ग्रसित छात्रा विद्यार्थी पर विशेष रूप से ध्यान देकर माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इसके साथ-साथ इस योजना के तहत प्रत्येक राज्य में मॉडल समावेशित स्कूलों की स्थापना की परिकल्पना की गई हैं |
लक्ष्य और उद्देश्य (IEDSS)—माध्यमिक स्तर पर निःशक्तों | के लिए समावेशित शिक्षा योजना के प्रमुख लक्ष्य एवं उद्देश्य निम्नानुसार हैं—
(1) ऐसे निःशक्त बच्चे जिन्होंने आठ वर्ष की प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की है उन्हें समावेशित तथा उपयुक्त वातावरण में माध्यमिक शिक्षा (कक्षा नवमी से बारहवीं) पूरी करने के अवसर प्रदान करना ।
(2) नि:शक्त बच्चों को सामान्य स्कूली व्यवस्था में माध्यमिक स्तर (कक्षा नवमी से बारहवीं) की शिक्षा के अवसर और सुविधाएँ प्रदान करना ।
(3) माध्यमिक स्तर पर निःशक्त बच्चों की आवश्यकताओं से सामान्य स्कूलों के अध्यापकों को अवगत कराने के लिए सामान्य स्कूल के शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना ।
(4) प्रत्येक नि:शक्त बच्चे की माध्यमिक स्तर पर उसकी पहचान की जाएगी तथा उनकी शैक्षणिक आवश्यकताओं का आंकलन किया जाएगा।
(5) प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर संसाधन कक्ष की स्थापना की जाएगी जहाँ पर विशेष अध्यापक नियुक्त किए जाएँगे। इस संसाधन कक्ष में निःशक्त बच्चे को सहायक सेवाएँ उपलब्ध होंगी।
(6) स्कूल की सभी संरचनात्मक बाधाओं को दूर किया जाएगा जिससे नि:शक्त बालक उस स्कूल की कक्षा, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, शौचालय आदि का उपयोग कर पाए।
(7) सामान्य स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने वाले सामान्य शिक्षकों को तीन से पाँच वर्ष की अवधि के अन्दर निःशक्त बच्चों को पढ़ाने का आधारभूत प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा
(8) प्रत्येक निःशक्त बच्चे को उसकी निःशक्तता के आधार पर आवश्यक सहायक उपकरण प्रदान किए जाएँगे।
(9) प्रत्येक निःशक्त छात्र को उसकी आवश्यकता के अनुसार अधिगम सामग्री की आपूर्ति की जाएगी।
(10) समावेशित शिक्षा को प्रयोग में लाने के लिए प्रत्येक राज्य में मॉडल स्कूल की स्थापना की जाएगी।
IEDSS के अवयव—
I. छात्र उन्मुख घटक–छात्र उन्मुख घटक के अन्तर्गत यह प्रस्तावित किया गया है कि प्रत्येक राज्य, केन्द्र शासित प्रदेश या स्वायत्त संस्थाओं को सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत प्रति वर्ष 3000/- (तीन हजार रुपये) प्रत्येक निःशक्त बच्चे के हिसाब से प्रदान किए जाएँगे। इसके अतिरिक्त प्रत्येक निःशक्त बच्चे को 1200/- (एक हजार दो सौ रुपये) माध्यमिक स्तर पर सहायता के रूप में प्रदान किए जाएँगे। राज्य सरकार प्रत्येक निःशक्त बच्चे को प्रतिवर्ष 600/- (छ: सौ रुपये) छात्रवृत्ति के रूप में प्रदान करेगी ।
उपर्युक्त उल्लेखित राशि 3000/- (तीन हजार रुपये) प्रत्येक निःशक्त बच्चे के लिए अग्रलिखितानुसार खर्च की जाएगी—
(a) यन्त्र तथा उपकरण –  इसके अन्तर्गत ऐसे निःशक्त बच्चे जिन्हें यन्त्र तथा सहायक उपकरणों की आवश्यकता है और उन्हें अन्य कोई योजना जैसे ADIP योजना, राज्य योजना, रोटरी क्लब आदि से सहायता न प्राप्त हुई हो उन्हें उनकी निःशक्तता तथा आवश्यकता के अनुसार यन्त्र तथा उपकरण उपलब्ध कराया जाता है।
(b) निःशक्त बच्चों की पहचान तथा मूल्यांकन – इसके अन्तर्गत निःशक्त बच्चे की पहचान तथा उनका मूल्यांकन करने के लिए कुछ विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जाएगी। इस मूल्यांकन तथा पहचान टीम में निःशक्त बच्चों की आवश्यकतानुसार विशेष टीचर, मनोवैज्ञानिक, डॉक्टर, थेरेपिस्ट तथा बच्चे की आवश्यकतानुसार अन्य कार्यकर्ता शामिल होते हैं ।
(c) अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने का प्रावधान – इसके अन्तर्गत निःशक्तजनों को अन्य सहायक सुविधाएँ जैसे—यातायात सुविधा, छात्रावास सुविधा, छात्रवृत्तियाँ, किताबें, यूनीफार्म, सहायक उपकरण, सहायक कार्यकर्त्ता आदि उस निःशक्त बच्चे की आवश्यकता के अनुसार प्रदान किया जाएगा।
(d) अधिगम सामग्री उपलब्ध कराना – इसके अन्तर्गत प्रत्येक नि:शक्त बच्चे को उसकी निःशक्तता तथा आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उन्हें सीखने की सामग्रियाँ प्रदान की जाएँगी। इन अधिगम सामग्रियों में ब्रेल पुस्तक, सुनने वाले टेप, बोलने वाली किताबें, बड़े अक्षरों से मुद्रित किताबें तथा अन्य सामग्रियाँ बच्चे की आवश्यकतानुसार जाएँगी।
(e) निःशक्त बालिकाओं को वृत्ति – चूँकि निःशक्तता से ग्रसित बालिकाओं को बालकों की अपेक्षा अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इसके अन्तर्गत अन्य सभी उपर्युक्त सुविधाओं के साथ माध्यमिक स्तर पर प्रत्येक निःशक्त बालिका को 200/- (दो सौ रुपये) प्रतिमाह प्रदान किए जाएँगे जिससे उन्हें हायर सेकेण्डरी शिक्षा के लिए प्रेरित किया जा सके।
(f) सूचना एवं संचार तकनीक का उपयोग–आधुनिक तकनीकी तक निःशक्त बच्चों की पहुँच आवश्यक है जिसके माध्यम से वे अपनी जानकारियों को बढ़ा सकते हैं। इसके तहत माध्यमिक स्कूलों के बच्चों को विशेष सॉफ्टवेयर युक्त जैसे JAWS, SAFA आदि दृष्टि निःशक्त बच्चों के लिए प्रदान किए जाएँगे। भाषा तथा वाणी की पहचान कराने वाले सॉफ्टवेयर से युक्त कम्प्यूटर श्रवण निःशक्त बच्चों को उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
II. अन्य घटक— इसके अन्तर्गत शिक्षक प्रशिक्षण संसाधन कक्ष (रिसोर्स रूम) को तैयार करना तथा उसे सुसज्जित करना, आदर्श विद्यालय की स्थापना, अनुसंधान एवं निगरानी आदि आते हैं। इन सभी घटकों की व्याख्या निम्नानुसार हैं—
(a) मौजूदा कुछ स्कूलों को समावेशित शिक्षा प्रदान करने वाले आदर्श स्कूलों के रूप में स्थापित करना चाहिए जिससे अभिभावकों, विद्यालयों, समुदायों तथा सरकार को निःशक्त बच्चों की शिक्षा प्रक्रिया से अवगत कराया जा सके ।
(b) विशेष अध्यापकों की नियुक्ति – माध्यमिक स्तर पर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए सामान्य शिक्षण की अपेक्षा विशेष टीचर की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। प्रत्येक 8 विशेष बच्चों के लिए एक विशेष टीचर की नियुक्ति होनी चाहिए।
(c) निःशक्तता के क्षेत्र में कार्यरत स्वायत्त संस्थानों, शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं को निःशक्तता विशेष में शैक्षणिक हस्तक्षेपण करने हेतु समावेशित शिक्षा के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विकास करना ।
(d) सामान्य/विशेष विद्यालय के शिक्षकों का प्रशिक्षण – विशेष अध्यापक को भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान से मान्यता प्राप्त विशेष पाठ्यक्रम में प्रशिक्षित होना चाहिए यह प्रशिक्षण नियमित पाठ्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षित होने पर ज्यादा प्रभावी होता है। सेवा या कार्यरत सामान्य शिक्षकों को भी अल्प अवधि पाठ्यक्रम में प्रवेश दिलाकर निःशक्तता से संबंधित आधारभूत जानकारी प्रदान की जा सकती है ।
(e) संरचनात्मक बाधा को दूर करना – प्रत्येक निःशक्त बच्चे को अपने स्कूल में अनुकूलित कक्षा, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, प्रसाधन कक्ष आदि की आवश्यकता होती है। निःशक्त बच्चों के क्षेत्र में कमिश्नर तथा भारतीय पुनर्वास परिषद ने विद्यालय में इन सभी व्यवस्थाओं को विकलांगों के अनुकूल बनाने के नियम तथा सुझाव बनाए हैं। इन नियमों तथा सुझावों को लागू कर स्कूल भवन को अनुकूलित कर निःशक्तों के अनुरूप बनाया जा सकता है।
(f) शैक्षिक प्रबंधकों तथा प्रधानाचार्यों का उन्मुखीकरण –  उन्मुखीकरण के इस कार्यक्रम के अन्तर्गत समावेशित शिक्षा का प्रबंधन तथा समावेशित शिक्षा की रणनीतियों का विकास करना है।
(g) प्रत्येक ब्लॉक या ग्रामीण क्षेत्र में संसाधन कक्ष तथा संसाधन कक्ष की सामग्रियों, यन्त्रों को उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
(h) प्रबंधन, अनुसंधान तथा विकास एवं निगरानी तथा मूल्यांकन – ये सभी IEDSS योजना के आन्तरिक अंग हैं। राज्य सरकार, अशासकीय संस्थानों, स्वायत्त संस्थानों को नए सहायक उपकरणों का निर्माण करना तथा उनका विकास करना चाहिए।
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