मृदा अपरदन क्या है ? इसके कारण एवं प्रभाव क्या हैं ? उन विधियों का वर्णन करें जिनसे इसे रोका जा सके।

मृदा अपरदन क्या है ? इसके कारण एवं प्रभाव क्या हैं ? उन विधियों का वर्णन करें जिनसे इसे रोका जा सके।

उत्तर⇒जल की तीव्रता तथा वायु की तीव्रता के कारण भूमि की ऊपर की परत के विनाश को मृदा अपरदन कहते हैं। – मृदा क्षरण के कारण—इसके मुख्य कारक वायु, जल तथा पेड़-पौधों द्वारा निरन्तर पृथ्वी से पोषक तत्वों का अवशोषण है। इस प्रक्रिया के कारण मृदा में निम्नलिखित हानियाँ दिखाई देती हैं –
1. मदा का अपरदन
2. मृदा की उर्वरा शक्ति का ह्रास।
उपक्त दोनों हानियाँ मानव के स्वार्थ द्वारा अधिक वनोन्मूलन तथा अल्पतम वृक्षारोपण के कारण हैं।

मृदा अपरदन पर निम्न प्रकार से नियंत्रण किया जा सकता है ।
1. भिन्न-भिन्न प्रकार की मृदा पर अनुकूलित फसलों का प्रबन्धन करना।
2. क्षरित मृदा के पुनःस्थापन हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करना ।
3. मृदा की ऊपरी परत के स्थानान्तरण की सुरक्षा हेतु उचित व्यवस्था करना जो निम्न प्रकार से की जा सकती है-
फसल चक्रण – इस प्रक्रिया में एक ही खेत में बदल-बदलकर फसलों दन करना। खाद्यान्न फसलों के उत्पादन के पश्चात भिन्न-भिन्न कल का फसला का उत्पादन एकान्तर क्रम में करना हो का द्वास न होने पाए। नाइट्रोजन तत्व की मात्रा को ही मृदा की उर्वरता कहते हैं।
एक फसल के उत्पादन के पश्चात् लम्बी अवधि के पश्चात् दूसरी फसल को उगाना जिससे मृदा को उर्वरता संचित करने हेतु पर्याप्त समय मिल जाता है। प्रत्येक फसल में भिन्न-भिन्न प्रकार के खरपतवार होते हैं । फसल चक्रण से खरपतवारों का प्रकोप कम हो जाता है। फसल चक्रण से जटिल पीड़कों तथा रोगों का भय कम होता है।
मिश्रित खेती में दो या दो से अधिक भिन्न प्रकार की विशेषताओं वाली फसलों को एक ही भूमि पर बारी-बारी से उगाना ।
रैखिक खेती से भी भमि की उर्वरा शक्ति कम नहीं होती। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेती से भी मृदा अपरदन में ह्रास होता है।

Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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