योग क्या है ?
योग क्या है ?
उत्तर— योग शब्द की निष्पत्ति ‘युज्’ धातु से हुई है युक्त करना, जोड़ना अथवा मिलाना अर्थात् संयमपूर्वक साधना करते हुए आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़कर समाधि का आनन्द लेना योग है।
योग के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के समय-समय पर अपने दृष्टिकोण के अनुसार परिभाषाएँ दी हैं जिनसे योग के सम्बन्ध में धारणा और भी स्पष्ट हो जाती है—
(1) महर्षि व्यास योग का अर्थ समाधि बताते हैं ।
(2) योग दर्शन के उपदेष्टा महर्षि पतंजलि के अनुसार’योगश्चित वृत्तिनिरोधः’ मन की वृत्तियों ( रूप, गंध, स्पर्श तथा शब्द के लोभ) को रोकना योग है, अर्थात् चंचलता का दमन ही योग है।
(3) महर्षि याज्ञवल्क्य के अनुसार- “संयोगः योग इत्युक्तः जीवात्मनः परमात्सन: “”जीवात्मा तथा परमात्मा के मिलन का नाम योग है।’
(4) भारतीय वाङ्मय में गीता का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है । भारतीय सन्तों ने गीता के योग का प्रचार विश्व भर में किया है । भगवान् श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा गया है। भंगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा योग का अर्थ समझाते हुए कहा गया है ‘समत्वं योग उच्यते ‘-‘ समत्व योग कहलाता है।’ अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का एकाकार होना ही योग है। छठे अध्याय में कहा गया है ‘योगः कर्मसु कौशलम् ” कर्मों में कुशलता योग है।’ अर्थात् प्रत्येक कार्य को कुशलतापूर्वक सम्पन्न करना ही योग है।
(5) जैनाचार्यों के अनुसार जिन साधनों से आत्मा की शुद्धि तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है, वह योग है।
(6) जैन दर्शन में मन, वाणी तथा शरीर की वृत्तियों को भी कर्मयोग कहा गया है।
(7) आधुनिक युग के योगी श्री अरविन्द के अनुसार ‘परमदेव के साथ एकत्व की प्राप्ति के लिए प्रयास करना तथा इसे प्राप्त करना ही सब योगों का स्वरूप है।’
(8) वेदान्त के अनुसार, “जीव तथा आत्मा के मिलन की संज्ञा ही योग है।”
(9) योग वशिष्ठ के अनुसार, “संसार सागर से पार होने की युक्ति को ही योग कहा जाता है। “
(10) स्वामी शिवानन्द सरस्वती के शब्दों में, “योग उस साधना की प्रणाली का नाम है जिसके अन्तर्गत जीवात्मा तथा परमात्मा के एकत्व का अनुभव होता है एवं जीवात्मा का परमात्मा के साथ ज्ञानपूर्वक संयोग होता है। “
(11) भारत के भूतपूर्व स्वर्गीय डॉ. राधाकृष्णन् के शब्दों में, “योग वह प्राचीन पथ है जो व्यक्ति को अन्धेरे से प्रकाश में लाता है।
योग की ऊपर वर्णित परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि–
(1) योग से आत्मा तथा परमात्मा का मिलन संभव होता है। योग दोनों के मिलन का साधन है।
(2) मन बड़ा चंचल है। परन्तु योग मन की चंचलता पर रोक लगाता है।
(3) मन को शुद्ध करने तथा बुराइयों पर विजय प्राप्त करने में योग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
(4) योग से जीवन क्षेत्र के विभिन्न कार्यों को कुशलतापूर्वक सम्पन्न करने की शक्ति प्राप्त होती है ।
(5) यदि व्यक्ति प्रयास करें तो वह योग के माध्यम से अनंत शक्तियों का स्वामी बन सकता है।
(6) अज्ञानता दूर करके ज्ञान चक्षुओं को खोलने में योग की महत्वपूर्ण भूमिका है।
(7) व्यक्ति योग के माध्यम से अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
(8) किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए एकाग्रता अनिवार्य है। मन की एकाग्रता से ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है। योग व्यक्ति की एकाग्रता में सहायक होता है। इसके द्वारा व्यक्ति समाधि की स्थिति को प्राप्त करता हुआ परमात्मा में लीन होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
योग की ऊपर वर्णित विशेषताओं तथा गुणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि योग का केवल धार्मिक तथा दार्शनिक आधार ही नहीं है वरन् शारीरिक, भौतिक तथा वैज्ञानिक आधार भी है। योग का सम्बन्ध स्थूल तथा सूक्ष्म दोनों शरीरों से है।
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