रक्त क्या है? इसके संघटन का वर्णन कार्य के साथ करें।

रक्त क्या है? इसके संघटन का वर्णन कार्य के साथ करें।

उत्तर ⇒ रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है जो उच्च बहकोशिकीय जन्तओं में एक तरल परिवहन माध्यम है, जिसके द्वारा शरीर के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थानों में पदार्थों का परिवहन होता है।

मानव रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं –

(a) द्रव घटक, जिस प्लाज्मा कहते हैं एवं
(b) प्लाज्मा : यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है, जो आयतन के हिसाब सेपो रक्त का 55 प्रतिशत होता है। इसमें करीब 90% जल, 7% प्रोटीन,0.09% अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लूकोज, 0.5% वसा तथा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ विद्यमान होते हैं।
इनमें उपस्थित प्रोटीन को प्लाज्मा प्रोटीन कहते हैं, जिनमें प्रमुख हैं-फाइब्रिनोजन, प्रोओबिन तथा हिपैरिन। फाइब्रिनोजनरहित प्लाज्मा को सीरम कहते हैं।

(b) रक्त कोशिकाएँ : आयतन के हिसाब से रक्त कोशिकाएँ कुल रक्त का 45 प्रतिशत भाग हैं।

ये तीन प्रकार की होती हैं

(i) लाल रक्त कोशिका
(ii) श्वेत रक्त कोशिका तथा
(iii) रक्त पटिटकाण ।

(i) लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell/RBC) : इन्हें एरीथ्रोसाइट्स (erythrocytes) भी कहते हैं, जो उभयनतोदर डिस्क की तरह रचना होती हैं। इनमें केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया एवं अंतर्द्रव्यजालिका जैसे कोशिकांगों का अभाव होता है। इनमें एक प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है, जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। इसके एक अणु की क्षमता ऑक्सीजन के चार अणुओं से संयोजन की होती है। इसके इस विलक्षण गुण के कारण इसे ऑक्सीजन का वाहक कहते हैं। मनुष्य में इनकी जीवन अवधि 120 दिनों की होती है, और इनका निर्माण अस्थि-मज्जा में होता है। मानव के प्रति मिलीलीटर रक्त में इनकी संख्या 5-5.5 मिलियन तक होती है।

(ii) श्वेत रक्त कोशिका (White Blood Cell/WBC) : ये अनियमित आकार की न्यूक्लियसयुक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन जैसे वर्णक नहीं पाये जाते हैं, जिसके कारण ये रंगहीन होती हैं। इन्हें ल्यूकोसाइट्स (leucocytes) भी कहते हैं। मानव के प्रति मिलीलीटर में इनकी संख्या 5000-6000 होती है। संक्रमण की स्थिति में इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है।

ये दो प्रकार की होती है –

(a) ग्रैनुलोसाइट्स एवं  (b) एग्रैनुलोसाइट्स।

(a) ग्रैनुलोसाइट्स अपने अभिरंजन गुण के कारण तीन प्रकार की होती हैं –

(i) इयोसिनोफिल (ii) बसोफिल एवं (iii) न्यूट्रोफिल।

इनकी कोशिकाद्रव्य कणिकामय होती है। इयोसिनोफिल एवं न्यूट्रोफिल्स
फैगोसाइटोसिस द्वारा हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण करते हैं।

(b) एग्रैनुलोसाइट्स दो प्रकार के होते हैं –

(i) मोनोसाइट्स एवं (ii) लिम्फोसाइट्स।

इनमें उपस्थित केन्द्रक में अनेक धुंडियाँ पाई जाती हैं। इनमें मोनोसाइट्स का कार्य भक्षण करना एवं लिम्फोसाइट्स का काम एंटिबॉडी का निर्माण करना होता है।

(iii) रक्त पट्टिकाणु (Blood Platlets) : ये बिम्बाणु या ओम्बोसाइट्स भी कहलाते हैं। ये रक्त का थक्का बनने (blood clotting) में सहायक होते हैं।

रक्त के कार्य – रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, क्योंकि वह अपने प्रवाह के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है।

वैसे रक्त के तीन प्रमुख कार्य हैं –

(a) पदार्थों का परिवहन, (b) संक्रमण से शरीर की सुरक्षा एवं (c) शरीर के तापमान का नियंत्रण करना।

रक्त के निम्नलिखित अन्य कार्य हैं –

(a) यह फेफड़े से ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।

(b) यह शरीर की कोशिकाओं से CO,को फेफड़े तक लाता है, जो श्वासोच्छ्वास के द्वारा बाहर निकल जाता है।

Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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