‘लय एवं ताल’ के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
‘लय एवं ताल’ के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
टिप्पणी लिखिये–लय।
उत्तर— लय—गायन, वादन और नृत्य में समय की गति को लय कहा जाता है। लय शब्द का साधारण अर्थ गति है। संगीत के क्षेत्र में ‘लय’ के अर्थ के सम्बन्ध में दो मत मिलते हैं— प्रथम मत के अनुसार समय की समान चाल ‘लय’ है इस मत में लय के अर्थ में ‘समानता’ को सम्मिलित नहीं किया जाता, क्योंकि ठीक और गलत लय दोनों व्यवहृत हैं। जब लय ठीक और गलत दोनों हो सकती है तो लय की परिभाषा में समानता का भाव जोड़ना उचित नहीं है। इस मत को मानने वाले लय को केवल समय की गति मानते हैं। दूसरे मत के अनुसार कभी-कभी लय से मात्रा की तालियों के बीच के समयान्तर को भी अर्थ में सम्मिलित करना चाहिए। मुख्य लय तीन प्रकार की होती हैं— विलम्बित, मध्य तथा द्रुत ।
(1) विलम्बित लय—गायन, वादन, नृत्य में जब लय निश्चित करके कभी-कभी बहुत धीमी चाल से होता है और दो मात्राओं का समयान्तर काफी होता है उसे ‘ठाह’ या ‘विलम्बित’ लय कहते हैं। गायन में बड़े ख्याल, ध्रुपद, धमार आदि में, सितार – सरोद की मसीतखानी गतों में विलम्बित लय दिखाई देती है ।
(2) मध्य लय—जिस लय की चाल विलम्बित से तेज और द्रुत से कम हो, उसे मध्य लय कहते हैं । इस गति में छोटे ख्याल व रजाखानी गतें आदि आरम्भ किए जाते हैं ।
(3) दुत लय—जिस लय की चाल विलम्बित लय से चौगुनी या मध्य लय से दुगुनी हो, वह द्रुत लय होती है। छोटे ख्याल, तराने, रजाखानी इसी में समाप्त किए जाते हैं । इस लय में दो मात्राओं के बीच का समयान्तर अत्यन्त कम हो जाता है।
ताल—संगीत में समय नापने के साधन को ताल कहते हैं। ताल अनेक विभाग और मात्राओं से बनता है। ताल शब्द ‘तल’ धातु से बना है। ‘संगीत रत्नाकर’ के अनुसार जिसमें गीत, वाद्य और नृत्य प्रतिष्ठित होते हैं, वह ‘ताल’ है। प्रतिष्ठा का अर्थ है व्यवस्थित करना, आधार देना या स्थिरता प्रदान करना। तबला, पखावज आदि वाद्यों से जब गाने के समय को नापा जाता है, तो एक विशेष प्रकार की आनन्दानुभूति होती है। वास्तव में ‘ताल’ संगीत का प्राण है।
ताल के पूर्ण ठेके को अनेक छोटे-छोटे खण्डों में बाँट दिया जाता है, जिन्हें ‘विभाग’ कहते हैं। ये विभाग अधिकतर 2, 3, 4, 5, मात्राओं के होते हैं।
ताल से अनुशासित होकर ही संगीत विभिन्न भाव और रसों को उत्पन्न कर पाता है। ताल की गतियाँ स्वरों की सहायता के बिना भी रस-निष्पत्ति में सक्षम होती हैं। संगीत में व्यवस्था का संपादन ताल द्वारा ही होता है। ताल के लिए ढोल, मृदंग, तबला, झाँझ, मजीरा, करताल आदि कई वस्तुएँ प्रयुक्त होती हैं। ताल दो कार्य करता है— आघात देता है और भिन्नता प्रदर्शित करता है।
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