लिंग समतुल्यता विकसित करने में शिक्षा, परिवार व मीडिया की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

लिंग समतुल्यता विकसित करने में शिक्षा, परिवार व मीडिया की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर — लिंग समतुल्यता के विकास में शिक्षा, परिवार, म और संस्थाओं की भूमिक— वर्तमान आधुनिक युग में लैंगिक समानता की अत्यन्त आवश्यकता है। वर्तमान युग नवीन विचारों एवं सीच का कृत है। आत: आज के आधुनिक विश्व में सभी स्त्रियों एवं बालिका पुरुषों एवं बालकों के समान समझा जाना चाहिए। लिंगभेद के पर महिलाओं से असमान व्यवहार करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी के विकास ने मानव को आधुनिक सोच से युक्त बना दिया है जिससे पुरानी परम्पराएँ एवं रूढ़िवादिताई धीरे-धीरे समाप्त हो चली हैं। इसी विकास के फलस्वरूप जेण्डर के प्रति परिवार एवं समाज की सोच में परिवर्तन आया है और बालिकाओं एवं महिलाओं के प्रति जागरूकता बढ़ी है। लैंगिक भेदभाव को मानव समाज से समाप्त करने के लिए मिल-जुलकर प्रयास किया जाना चाहिए। अभिभावकों, सरकार, विद्यालयों एवं जनसंचार माध्यमों को इसमें अपनी सहभागिता का प्रदर्शन करना चाहिए जिससे जनसाधारण को लैंगिक समानता के प्रति प्रोत्साहित किया जा सके। लैंगिक समानता के विकास में शिक्षा, परिवार एवं मीडिया की भूमिका को निम्नलिखित रूप में देख जा सकता है—
( 1 ) लिंग समतुल्यता के विकास में शिक्षा की भूमिका — किसी भी समाज की उन्नति शिक्षक के बिना असम्भव है। हमारे समाव में नारियों का शिक्षित होना अत्यन्त जरुरी है। यदि नारी शिक्षित नहीं होगी तो वह परिवार उन्नति नहीं कर सकता। समाज की कुरीतियों, अन्धविश्वासों एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के वातावरण में अशिक्षित नारी हीनता का पात्र बनी रहेगी। नारी शिक्षा की सार्थकता इसमें हैं कि वह स्वयं रुचि लेकर विद्याध्ययन करें, घर पर अपने बच्चों को भी पार एवं गृहस्थी के कार्यों को भी सुचारु रूप से संचालित करें।
अतः बालिका शिक्षा की अनिवार्यता परिवार, समाज, राष्ट्र की उन्नति एवं गृहस्थी के जीवन को आनन्ददायक बनाने में है। प्रत्येक परिवार में नारी, यदि सुशिक्षित होगी तो वह परिवार सफल परिवार कहलाएगा।
विश्व के प्रत्येक राष्ट्र तथा मानव जाति के लिए बालिका शिक्षा का प्रश्न सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक राष्ट्र की प्रगति एवं विश्व का उत्कर्ष बहुत अंशों में इस महत्त्वपूर्ण समस्या को सफलतापूर्वक हल करने में ही अवलम्बित है। बालिका शिक्षा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग उनकी स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा है। शरीर से सबल होने पर भी बालिकाएँ उच्च शिक्षा एवं उत्कृष्ट भावनाओं को अधिक योग्यता के साथ ग्रहण कर सकेंगी, जिसके द्वारा न्याय की ओर उनकी प्राकृतिक प्रवृत्ति दृढ़ होगी, अपने आचरण को अधिक प्रबल बनाएँगी।
(II) लिंग समतुल्यता के विकास में परिवार की भूमिका — परिवार ही वह प्रथम इकाई है जहाँ से समाज, राष्ट्र और विश्व को नए स्वरूप में ढालने के लिए नागरिकों को निर्माण होता है। अत: लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है
(1) परिवार के सदस्यों द्वारा घर की बालिकाओं का समुचित ध्यान रखना चाहिए। बालिकाओं के साथ इस प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए कि वे अपने को कमजोर समझकर हीनभावना से ग्रस्त हो जाएँ। माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों को सदैव बालिकाओं को यह समझना चाहिए, कि किसी भी क्षेत्र में वह बालकों से कम नहीं है। इससे • बालिकाएँ जागरूक बनेंगी और स्वयं अपने विकास के प्रयास करेंगी।
(2) अभिभावकों को लैंगिक समानता को हतोत्साहित करने वाली गतिविधियाँ, प्रवृत्तियों या कुरीतियों से दूर रहना चाहिए और समाज में भी इन्हें हतोत्साहित करने के प्रयत्न करने चाहिए। दहेज प्रथा एक ऐसी ही कुरीति है। इसका अभिभावकों को विरोध करना चाहिए जिससे समाज में लैंगिक समानता की स्थिति को विकसित किया जा सके।
(3) परिवार की बालिकाओं के साथ अभिभावकों का व्यवहार मित्रवत होना चाहिए जिससे बालिकाएँ अपनी समस्याओं को उनके समक्ष प्रस्तुत कर सकें, विशेष रूप से माता को बालिका के साथ सखी रूप में व्यवहार करते हुए उनकी समस्याओं का समुचित समाधान करना चाहिए।
(4) अभिभावकों को अपनी बहन-बेटियों को अनिवार्य रूप से शिक्षा दिलवानी चाहिए। जिस प्रकार बालकों की शिक्षा के लिए प्रत्येक सम्भव प्रयास किया जाता है उसी प्रकार बालिकाओं की शिक्षा के लिए भी प्रयासरत रहना चाहिए और उनकी शिक्षा के लिए उचित प्रबन्ध होने चाहिए। जब बालिका शिक्षित होगी तो निश्चित रूप से लैंगिक समानता के विकास में सहायता मिलेगी।
(5) अभिभावकों को केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही बालिका विकास सम्बन्धी विभिन्न योजनाओं की जानकारी करते रहना चाहिए ।
(6) लैंगिक समानता के विकास के लिए अभिभावकों को अपनी रूढ़िवादी परम्पराओं एवं मान्यताओं को परिवर्तित कर लेना चाहिए और बालिकाओं के शैक्षिक एवं सामाजिक विकास के लिए विभिन्न उपाय करने चाहिए।
उपर्युक्त बिन्दुओं को यदि अभिभावक अपने व्यवहार में समावेशित करें तो समाज में लैंगिक विषमता को पर्याप्त सीमा तक कम किया जा सकता है जिससे लैंगिक समानता के विकास की स्थिति दृष्टिगोचर होने लेगी।
(III) लिंग समतुल्यता के विकास में मीडिया की भूमिका — मीडिया को जनसंचार के रूप में माना जाता है अर्थात् जनसंचार के लिए जो साधन प्रयुक्त किए जाते हैं, वह मीडिया कहलाते हैं। मीडिया से हमें देश-दुनिया से जुड़ी जानकारियाँ तो मिलती ही हैं साथ ही इसके माध्यम से हमें सामाजिक कुरीतियों और इन कुरीतियों को दूर करने के उपायों के बारे में भी ज्ञान होता है। टी.वी., रेडियो, समाचार पत्र पत्रिकाएँ और इण्टरनेट एवं कम्प्यूटर प्रमुख मीडिया साधन हैं जो लैंगिक समानता के विकास में भी अपना योगदान प्रस्तुत करते हैं। अतः लैंगिक समानता के विकास में मीडिया की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत देखा जा सकता है–
(1) मीडिया द्वारा समाज में व्याप्त विसंगतियों की ओर जनसाधारण का ध्यान आकृष्ट किया जाता है। लैंगिक असमानता भी समाज की एक विसंगति है जिस पर मीडिया में व्यापक रूप से चर्चा की जाती है। रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्रों आदि माध्यमों के द्वारा जनता को लैंगिक विषमता के कुप्रभावों और लैंगिक समानता के लाभों से अवगत कराया जाता है जिससे लोग जागरूक बनते हैं और लैंगिक समानता के विकास के प्रयास करने लगते हैं।
(2) टी.वी., रेडियो पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रम भी लैंगिक समानता को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं।
(3) मीडिया द्वारा भ्रूण लिंग जाँच और कन्या भ्रूण हत्या का भी कड़ा विरोध किया जाता है और लैंगिक समानता के विकास के लिए विभिन्न प्रकार के जागरूकता सम्बन्धी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
(4) मीडिया के माध्यम से सरकार द्वारा चलाई गई उन योजनाओं के बारे में जानकारी मिलती हैं जो लैंगिक समानता के विकास से सम्बन्धित है।
(5) समाचार पत्रों में आए दिन महिला उत्पीड़न और लिंग विभेद जैसी खबरें छपती हैं, उनकी आलोचना छपती है और भविष्य में ऐसी कुप्रवृत्तियाँ रूक सकें, ऐसे उपाय बताए जाते हैं।
(6) आधुनिक युग में इण्टरनेट एक सशक्त मीडिया साधन के रूप में उभरकर सामने आया है। इसके माध्यम से भी प्रभावी रूप में लैंगिक समानता के विकास के लिए सार्थक सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। इण्टरनेट के माध्यम से एक व्यक्ति के विचारों को समस्त विश्व में सम्प्रेषित किया जा सकता है। अतः लैंगिक समानता से जुड़े विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए और इस संदर्भ में किए गए प्रयासों की जानकारी के लिए इण्टरनेट एक सशक्त साधन हैं।
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