लेखन कौशल में रचना से क्या तात्पर्य है ? रचना के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिए ।

लेखन कौशल में रचना से क्या तात्पर्य है ? रचना के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर—रचना (Compositing)–लेखन-कौशल के संदर्भ रचना से तात्पर्य विचारों की क्रमबद्ध लिखित अभिव्यक्ति से है। वाक्य-संरचना, शब्द – भण्डार, लिपि-रचना तथा वर्तनी का पर्याप्त ज्ञान होने पर छात्रों से अन्य भाषा में लिखित रचना करवाई जाती है। रचना से तात्पर्य विचारों तथा भावों की मौखिक अथवा लिखित क्रमबद्ध अभिव्यक्ति से है। भाषण-कौशल के अन्तर्गत छात्र मौखिक अभिव्यक्ति का अभ्यास करते समय मौखिक रचना की कुखलता विकसित करता है । लेखन-कौशल में छात्र इस कुशलता का लेखन में उपयोग करता है । रचना – शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं—
(i) छात्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अन्य भाषा के शब्दों तथा वाक्य-संरचनाओं का समुचित प्रयोग कर सकें।
(ii) उनमें क्रमबद्ध चिन्तन-शक्ति की कुशलता विकसित हो ।
(iii) वे भावों तथा विचारों को प्रभावशाली ढंग से लिखित रूप में प्रस्तुत कर सकें।
(iv) अन्य भाषा की संस्कृति से वैचारिक संबंध स्थापित करते हुए लेखन-कुशलता को विकसित कर सकें।
(v) भाषा की प्रयोजनमूलक तथा सौन्दर्यपरक लिखित अभिव्यक्ति की कुशलता को संपुष्ट कर सकें।
रचना – शिक्षण के उद्देश्य एवं स्वरूप की पुष्टि से रचना के मुख्यतः दो प्रकार माने जाते हैं— नियंत्रित रचना तथा स्वतंत्र रचना । नियन्त्रित रचना निर्दिष्ट भाषाई कुशलता के विकास का आधार है। विशिष्ट वाक्यसंरचना, शब्द प्रयोग तथा लिखित अभिव्यक्ति का शिक्षण ही इसका मुख्य उद्देश्य होता है। इसके विपरीत स्वतंत्र रचना में वह विचारों तथा भावों की अभिव्यक्ति में अपेक्षाकृत स्वतंत्र होता है। भाषा के प्रयोग में भी शब्द – भण्डार, वाक्य-संरचना आदि के चयन में वह स्वतंत्र होता है।
रचना के प्रकार–मनुष्य अपने भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति दो रूपों में करता है— मौखिक अभिव्यक्ति और लिखित अभिव्यक्ति । इस प्रकार के दो रूप या प्रकार हुए— (1) मौखिक रचना (2) लिखित – रचना ।
(1) मौखिक रचना–जब भावों एवं विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति मौखिक रूप से की जाती है तब उसे मौखिक रचना कहते हैं।
(2) लिखित रचना–जब भावों एवं विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति लिखित रूप में की जाती है तब उसे लिखित रचना कहते हैं।
मौखिक रचना-शिक्षण के उद्देश्य-निम्न हैं—
(i) छात्रों में भाषा-सम्बन्धी उचित स्वराघात, अनुतान, स्वरगति, यति, प्रवाह और हाव-भाव का ध्यान रखते हुए शुद्ध उच्चारण की कुशलता का विकास करना।
(ii) भाषा को सजीव, सरस, मधुर तथा मर्मस्पर्शी बनाने की क्षमताओं का विकास करना।
(iii) करना। छात्रों में सशक्त, धाराप्रवाह, ओजस्वी वाणी से अपने भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास करना ।
(iv) छात्रों में नि:संकोच, स्वाभाविक रूप में अपने भावों एवं विचारों का मौखिक रूप में अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास करना ।
(v) भाषा में व्याकरण की शुद्धता, सरलता एवं स्पष्टता के प्रयोग की योग्यता का विकास करना ।
(vi) मौखिक रचना को विभिन्न रूपों एवं परिस्थितियों वार्तालाप, भाषण, अभिनय, प्रतियोगिता, वाद-विवाद, सेमीनार, सामूहिक वाद-विवाद तथा सम्मेलन आदि में उचित रीतियों एवं शिष्टाचारों के ज्ञान प्रयोग का विकास करना ।
(vii) छात्रों में मातृभाषा का लोकप्रिय भाषा शैली के प्रयोग की कुशलता का विकास करना ।
(viii) भाषा बोलने के शिष्टाचार, प्रसंग के अनुकूल तथा परिस्थिति के अनुरूप उचित शब्दावली के प्रयोग एवं चचन की क्षमताओं का विकास करना ।
मौखिक रचना शिक्षण का महत्त्व—
(1) मानव जीवन में नित्य प्रति व्यवहार की दृष्टि से भाषा के मौखिक रूप का महत्त्व अधिक है। जीवन के अधिकांश कार्य मौखिक रूप से अभिव्यक्त वाणी द्वारा ही सम्पन्न होते हैं । अतः मौखिक रचना का क्षेत्र व्यापक है।
(2) बालक के विकास क्रम में सर्वप्रथम मौखिक भाषा का ही विकास होता है, अतः मौखिक रचना व्यक्तित्व के विकास का एक उत्तम साधन है।
(3) मौखिक अभिव्यक्ति से मनोवैज्ञानिक ग्रन्थियों तथा हीन भावनाओं के निर्माण में सहायता मिलती है अर्थात् निःसंकोच एवं आत्म-विश्वास के साथ व्यक्ति बोलना सीख जाता है।
(4) भाषा शिक्षण का मूलाधार ही मौखिक रचना तथा अभिव्यक्ति है।
(5) बालक को मातृभाषा मौखिक रूप में सीखने का अवसर मिलता है। उसके शब्द ज्ञान भण्डार में वृद्धि होती है।
(6) मौखिक रचना का सार्वजनिक जीवन में महत्त्व अधिक है। अच्छा वक्ता अपने जीवन में, समाज में, साहित्य में, राजनीति में और धार्मिक क्षेत्र में अधिक ख्याति पाता है यथा—समाजसेवक, कवि, राजनेता, साधु आदि ।
(7) व्यक्ति की मौखिक अभिव्यक्ति से उसके भावा एवं विचारों का ही सम्प्रेषण नहीं होता, बल्कि उसके व्यक्तित्व का भी आभास होता है।
(8) मौखिक रचना शिक्षण से ध्वनि, लिपि, शब्द, लय, गति आरोह-अवरोह तथा उतार-चढ़ाव का अवसर मिलता है जिससे भाषा में परिपक्वता आती है ।
लिखित रचना शिक्षण के उद्देश्य निम्न हैं—
(i) छात्रों में लिखकर अपने भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति की कुशलता का विकास करना।
(ii) छात्रों में भाषा तत्त्वों एवं लेखन की विभिन्न शैलियों का ज्ञान प्राप्त करने में रुचि उत्पन्न करना ।
(iii) छात्रों में अपने भाव तथा विचारों को लिखित भाषा में अभिव्यक्त करने की रुचि उत्पन्न करना ।
(iv) छात्रों को उचित गति से सुन्दर, सुडौल और स्पष्ट लेख लिखने में प्रशिक्षित करना ।
(v) छात्रों को संवेदनशील बनाना और उनमें अवलोकन, चिन्तन और मनन की अभिवृत्ति का विकास करना ।
(vi) छात्रों को विचार शक्ति तथा निरीक्षण शक्ति का विकास करना।
(vii) छात्रों को व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करने में प्रशिक्षित करना ।
(viii) छात्रों की अभिव्यक्ति में मौलिकता का विकास करना।
लिखित रचना शिक्षण का महत्त्व—
(1) लिखित रचना सामाजिक व्यवस्था, गठन, सहयोग एवं क्रिया-कलापों का आधार है। लेख तथा पत्र व्यवहार द्वारा समाज, परिवार तथा घर में सम्पर्क बना रहता है । आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास एवं सम्पन्नता के लिए सम्मेलन, समितियाँ, आयोग आदि के निर्णय तथा प्रतिवेदन लिखित रूप में ही होते हैं।
(2) सृजनात्मक तथा ललित साहित्य के विकास का माध्यम तथा आधार है। भाषा के माध्यम से साहित्यिक रचनाएँ– गद्य, पद्य (काव्य), कहानी, नाटक आदि लिखित रूप में ही की जाती है। साहित्य के माध्यम से ज्ञानात्मक तथा भावात्मक पक्षों का विकास होता है और साहित्यिक विधाओं द्वारा आनन्द की प्राप्ति होती है तथा सृजनात्मक क्षमताओं का विकास होता है।
(3) लिखित घटनाओं के अध्ययन तथा अध्यापन से बालकों के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा उसमें सामाजिक क्षमताओं का विकास भी होता है।
(4) ज्ञान-विज्ञान के सतत् विकास एवं संचय का आधार है। मानव अपने अनुभवों तथा क्रिया-कलापों से अपने ज्ञान में वृद्धि और उसका संचय करता है। यह संचित ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को शिक्षा द्वारा (लिखित एवं मौखिक) प्रदान किया जाता है।
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