विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों के प्रतिमानों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों के प्रतिमानों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
समावेशी शिक्षा के किसी एक प्रतिमान को संक्षेप में समझाइये ।
अथवा
असमर्थता के परिपेक्ष्य में प्रतिमान क्या है ? दान प्रतिमान, जैव केन्द्रित प्रतिमान और कार्यात्मक प्रतिमान को समझाइये।
अथवा
(a) जैव केन्द्रित मॉडल को परिभाषित कीजिए।
अथवा
(b) क्रियात्मक मॉडल को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कार्यात्मक प्रतिमान के विभिन्न सोपानों को लिखिए। असमर्थी बालकों हेतु कार्यात्मक प्रतिमान का क्या शैक्षिक महत्त्व है ?
अथवा
(c) मानवाधिकार प्रतिमान के सिद्धान्त कौन-कौनसे हैं ?
अथवा
मानवाधिकार प्रतिमान की विशेषताएँ लिखिये ।
अथवा
मानवाधिकार प्रतिमान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये |
अथवा
मानवाधिकार प्रतिमान को स्पष्ट कीजिये ।
अथवा
दान, प्रतिमान, जैव केन्द्रित प्रतिमान, कार्यात्मक प्रतिमान एवं मानवाधिकार प्रतिमानों को समझाइये ।
उत्तर – असमर्थता के परिप्रेक्ष्य में प्रतिमान–असमर्थता के परिप्रेक्ष्य में अनेक दृष्टिकोणों का विकसित होना विशिष्ट विकलांगता उपागम के अन्तर्गत आता है जिसके लिए कुछ प्रतिमानों का निर्धारण किया जाता है तथा उन प्रतिमानों के द्वारा विशिष्ट बालकों के विकास का प्रयास किया जाता है। प्रतिमान एक ऐसा आधार है जो वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सही मार्ग दिखाता है। ये प्रतिमान शैक्षिक क्रियाओं को रूपरेखा प्रदान करते हैं ।
पॉल इगन एवं अन्य के अनुसार—“शिक्षण प्रतिमान रीति अनुसार बनाई गई शिक्षक शिक्षण व्यूह रचना है जो विशिष्ट शिक्षण लक्ष्यों की पूर्ति के लिए तैयार की जाती है । “
प्रतिमान की उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि प्रतिमान शिक्षण का एक प्रारूप है जिसका अनुसरण करके विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों का सहयोग एवं उन्हें शिक्षित किया जाता है। अतः समावेशी शिक्षा के कुछ प्रतिमान इस प्रकार हैं—
(1) दान प्रतिमान
(2) जैव-केन्द्रित मॉडल
(3) कार्यात्मक मॉडल
(4) मानवाधिकार प्रतिमान
( 1 ) दान प्रतिमान – इस प्रतिमान में परोपकारी व्यक्तियों द्वारा उन असमर्थी व्यक्तियों की सहायता की जाती है, जो शारीरिक रूप से विकलांग होते हैं। ये बालक अपना दैनिक कार्य स्वयं नहीं कर पाते हैं। उन्हें अपने कार्यों को पूरा करने के लिए सहयोग की आवश्यकता होती है। दान मॉडल के अन्तर्गत उन विकलांग लोगों का वर्णन किया गया है जिनकी देख-रेख के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की विकलांगता लोगों के लिए समस्या उत्पन्न करती है। ऐसे असमर्थी व्यक्ति स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने में सक्षम नहीं होते हैं। इन्हें घरपरिवार की तरह विशेष स्कूल, विशेष सेवा एवं विशेष संस्थान की आवश्यकता होती है क्योंकि वे सामान्य लोगों से अलग होते हैं। इस प्रकार के बालकों को देखने के बाद दया, परोपकार, सहयोग तथा सहानुभूति का भाव उत्पन्न होता है।
दान प्राप्त करने का विचार असमर्थी बालकों के आत्म-सम्मान को कम न करे इसलिए असमर्थी बालकों को रोजगार की प्राप्ति के लिए उनकी क्षमता अनुसार शिक्षित किया जाता है। उनकी असमर्थता को ध्यान में रखते हुए उनके लिए व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्ध किया जाता है जिससे वे रोजगार प्राप्त करके अपना जीविकोपार्जन कर सकें।
वर्तमान समय में अनेक सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाएँ इन असमर्थी बालकों के लिए सहयोग एवं परोपकार का कार्य कर रही हैं । इनके संरक्षण एवं विकास के लिए अनेक विद्यालय एवं संस्थाएँ खोली जा रही हैं ।
इन बालकों के विकास के लिए निम्नलिखित योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है—
( 1 ) दानवृत्ति के परिप्रेक्ष्य में बालकों के लिए संयुक्त राष्ट्र की विश्वव्यापी कार्यवाही योजना ।
(2) संयुक्त राष्ट्र के मानक नियम ।
(3) विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं पर विशेष सुलभता एवं समता ।
(4) उच्च कोटि की मुक्त एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा ।
(5) शिशु के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की संविदा ।
(6) सभी के लिए शिक्षा पर विश्वव्यापी घोषणा ।
(2) जैव-केन्द्रित प्रतिमान – असमर्थी बालकों के लिए जैव केन्द्रित प्रतिमान असमर्थता की स्थिति की जैविक उत्पत्ति पर बल देता है साथ ही इन बालकों से सम्बन्धित बीमारियों, विकारों, शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं पर भी प्रकाश डालता है। असमर्थी बालकों की ये विशेषताएँ अस्वीकृत या असाधारण होती हैं परन्तु इन्हें चिकित्सकीय हस्तक्षेप द्वारा रोका या इनमें सुधार किया जा सकता है।
जैव-केन्द्रित मॉडल के अनुसार व्यक्तियों का वर्गीकरण शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक स्तर पर होना चाहिए जिनके लिए एक मानक की गणना होनी चाहिए तथा उसके अनुसार ही श्रेणियों में विभाजित किया जाना चाहिए। असामान्य व्यक्ति सामान्य व्यक्ति से किस प्रकार भिन्न है इसका भी आंकलन करने के लिए मानक स्थापित होने चाहिए। जैवकेन्द्रित मॉडल इन मानकों की पूर्ति करता है।
इस प्रतिमान के उद्देश्यों को दो प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता -प्रथम यह मॉडल विकलांगता के कारणों पर रोक लगाने पर बल देता है तथा दूसरा यदि किसी व्यक्ति में विकलांगता है तो उस व्यक्ति को समानता के मानकों वाले व्यक्ति के साथ सम्मिलित करने को कहता है।
जैव-केन्द्रित मॉडल के लाभ के साथ-साथ कुछ हानियाँ भी हैं। अधिकतर मानसिक रोग संस्थान अथवा विकलांगता संरक्षण संस्थान में विकलांगों के साथ अत्यन्त कठोर व्यवहार किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप विकलांग को मानसिक तथा शारीरिक प्रताड़ना को झेलना पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 1997-99 में संरक्षण अभिरक्षा मॉडल को आधार बनाया जो विकलांगों के अधिकारों के हनन पर रोक लगाती है तथा संरक्षण संस्थाओं तथा निजी क्षेत्रों पर न्यायिक प्रतिबन्ध व नियंत्रण रखती है।
यद्यपि विकलांगता को मापने का जैविक विज्ञान ही एक मात्र साधन नहीं है, अपितु यह व्यक्ति की पात्रता, प्रभावशीलता तथा सामाजिक भागीदारी को भी निर्धारित करता है जो नीति व नियमों के अनुसार भी मान्य है। मापन व मूल्यांकन द्वारा व्यक्ति के विकलांगता की सीमा को निर्धारित किया जा सकता है किन्तु इसके लिए सामाजिक परिवर्तनों की आवश्यकता को समझाने में यह मॉडल विफल रहा है ।
(3) कार्यात्मक प्रतिमान – कार्यात्मक मॉडल के अनुसार विकलांगता से तात्पर्य विकलांगता या विकारों द्वारा उत्पन्न परेशानियाँ जिनका मूल कारण है व्यक्ति के जैविक परिस्थिति तथा कार्यात्मक क्षमता का बेमेल होना अथवा पर्यावरणीय कारकों तथा स्थितिजन्य कारकों का बेमेल होना है। कार्यात्मक मॉडल विकलांगों द्वारा अनुभवित अक्षमताओं का उपचार सहयोग तथा सेवाओं द्वारा करते हैं जिसका उद्देश्य विकलांग व्यक्ति को कार्यात्मक रूप से सुदृढ़ करना है। यह मॉडल विकारों की क्षतिपूर्ति करता है जिसके द्वारा विकलांग व्यक्ति अपना जीवन सामान्य रूप से व्यतीत कर सकें।
कार्यात्मक मॉडल में बालक के अधिकारों को उसकी अक्षमता अथवा अनुभवित अक्षमता के अनुसार विभेदित किए गए हैं। इस मॉडल का सकारात्मक योगदान सहायक तकनीकों और विशेष सेवाओं के विकास के रूप में देखा जा सकता है।
इस मॉडल का दायित्व व्यक्ति को प्रणाली में सम्मिलित करना है न कि प्रणाली को व्यक्ति सम्मिलित करना। कार्यात्मक मॉडल में पेशेवर लोगों को केन्द्र में रखा गया है जिससे वह अपनी आवश्यकताओं और पद को परिभाषित कर सके।
इस मॉडल के द्वारा दुनिया भर में विकलांग बालकों के लिए पुनर्वास सेवाएँ स्थापित करने की समझ विकसित हुई है। यह मॉडल विद्युतीय चिकित्सा पूर्व-व्यावसायिक कौशलों, कार्यात्मक आंकलन, दैनिक जीवन कौशल, परामर्श और नौकरी के प्रशिक्षण के प्रचलित पुनर्वास कार्यक्रमों की सेवाएँ प्रदान करता है।
कार्यात्मक प्रतिमान के सोपान – यह प्रतिमान असमर्थी छात्रों के लिए सहयोग प्रणाली की तरह कार्य करता है। इसके अन्तर्गत असमर्थ छात्रों को सामान्य कक्षा को समायोजन का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रतिमान के अन्तर्गत मुख्यतः तीन सोपान आते हैं—
(1) प्रथम सोपान में पाठ्यचर्या का निर्माण असमर्थी छात्रों को भी ध्यान में रखकर किया गया। इस प्रतिमान में सामान्य एवं विशिष्ट आवश्यकताओं के बीच सहभागिता आवश्यक समझी जाती है। असमर्थी बालकों की शिक्षा के लिए उनकी पाठ्यचर्या को लेकर शिक्षक से जो अपेक्षाएँ होती हैं उन्हें पहले ही बता दिया जाता है; ये असमर्थी बालकों के लिए नक्शे की तरह काम करते हैं तथा उनकी शैक्षिक आवश्यकता को पूरा करने का प्रयास करते हैं।
(2) दूसरे सोपान में सामान्य कक्षाओं में इनके शिक्षण के लिए जोर दिया गया। असमर्थी बालकों के पूर्वज्ञान का परीक्षण पहले कर लिया जाता है फिर उसी के आधार पर उनके लिए पाठ योजना का निर्माण किया जाता है।
( 3 ) तीसरे सोपान में बालकों को अभिप्रेरणा, तकनीकी एवं सामाजिक कौशल सिखाने का प्रयास किया गया है एवं समावेशी कक्षा में सभी बच्चों को सामूहिक कार्य करने के लिए प्रेरणात्मक कार्य किया जाता है।
असमर्थी बालकों हेतु कार्यात्मक प्रतिमान का शैक्षिक महत्त्वअसमर्थी बालकों की शैक्षिक उपलब्धि में यह प्रतिमान निम्नलिखित रूप से सहायक होता है—
(1) सामान्य विकलांगों को सामान्य विद्यालय में प्रवेश तथा विशिष्ट विकलांगों के लिए विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना तथा सुधार के लिए प्रयास किया जाता है।
(2) छात्रों के निष्पत्ति स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है।
(3) असमर्थी बालकों के शैक्षिक कार्यप्रणाली को प्रभावशाली बनाने के लिए समावेशी विशिष्ट विद्यालयों के कार्य प्रणाली में परिवर्तन एवं सुधार करने का सुझाव दिया जाता है।
(4) विद्यालय के कार्यकर्त्ताओं में कार्य -कौशलों का विकास में सहायक होता है।
(5) समावेशी विद्यालयों की परम्परागत रूढ़िवादिता तथा यांत्रिक वातावरण में सुधार करने में सहायक होता है।
(6) समावेशी छात्रों तथा शिक्षकों में प्रजातान्त्रिक गुणों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।
(4) मानवाधिकार प्रतिमान – मानवाधिकार मॉडल व्यक्ति एवं ‘उसमें निहित मर्यादाओं पर केन्द्रित है। इस प्रतिमान के द्वारा असमर्थता की समस्याओं तथा उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए राज्य द्वारा जवाबदेही की कमी को एक सभ्य समाज द्वारा दूर करने का प्रयास किया गया है। इस प्रकार यह राज्य के आदेशानुसार सबके लिए समान अधिकार, मर्यादाओं एवं पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक रूप से असमर्थियों के मार्ग में आने वाली समस्याओं के समाधान एवं उनके उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
असमर्थी बालकों के विकास के लिए मानवाधिकार एक प्रतिमान के रूप में कार्य करता है। विकलांगता के शिकार बच्चे अधिक संवेदनशील समूह के होते हैं, उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यता होती है। विकलांग बच्चों की गरिमा तथा समानता के लिए ऐसे वातावरण का निर्माण करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे वे अपने अधिकारों की पूर्ति कर सकें तथा विभिन्न कानूनों के अनुरूप समान अवसरों का लाभ उठाकर समाज में सक्रिय भागीदारी प्रदर्शित कर सकें।
इनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ-साथ पुनर्वास सेवाओं में भी सम्मिलित करने की व्यवस्था की जा रही है। गम्भीर विकलांगता के शिकार बच्चों को भी मुख्य धारा से जोड़ा गया है। अतः कहा जा सकता है कि मानवाधिकार मॉडल मानव संस्कृति के एक महत्त्वपूर्ण आयाम के रूप में यह विकलांगता की स्थिति, उनके कुछ अधिकारों की अपरिहार्य रूप से पुष्टि करता है। यह मानवाधिकार मॉडल 1948 की सार्वभौम घोषणा की भावना पर बनता है जिसके अनुसार “सभी मनुष्य स्वतन्त्र एवं अधिकार गरिमा में बराबर होते हैं।”
मानवाधिकार मॉडल को 1980 के दशक में विकलांगों की देखभाल के लिए एक अपरिवर्तनीय प्रतिमान के रूप में चिन्हित किया गया। वर्ष 1981 के नारे “पूर्ण सहभागिता एवं समानता” के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विकलांगों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दशक घोषित किया गया। इस प्रकार 1983 से 1992 का दशक विकलांगों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दशक घोषित किया गया। इसी सन्दर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय विकलांगता अधिकार संवर्धन तथा अन्य मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, “रोजगार प्राप्त करने का अधिकार मतदान का अधिकार, न्यायालयों तक पहुँच, राजनीतिक अधिकार के लिए शिक्षा, पितृसत्तात्मक अधिकार, सम्पत्ति के स्वामित्व के अधिकार का उपयोग करने के लिए विकलांग व्यक्ति भी सामान्य नागरिक के समान हकदार है। “
मानवाधिकार प्रतिमान के सिद्धान्त—
(1) अवसर की समानता – असमर्थी व्यक्तियों को भी सामान्य लोगों की तरह समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। असमर्थी लोगों को रोजगार, चिकित्सा, यात्रा आदि सभी कार्यों की पूर्ति के लिए आरक्षण प्रदान करके अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है।
(2) उत्तरदायित्व – मानवाधिकार द्वारा विकलांग बालकों की देख-रेख के लिए अनेक उत्तरदायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है। सभी प्रकार के असमर्थी बालकों की प्रगति के लिए अनेक कार्यक्रम किए जाते हैं तथा इनकी प्रगति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने का उत्तरदायित्व भी मानवाधिकार के अन्तर्गत हैं।
(3) गैर-भेदभाव – मानवाधिकार प्रतिमान एक विकलांग व्यक्ति की राष्ट्रीयता, उसके निवास, लिंग, जाति, रंग, धर्म या उसकी असमर्थता पर ध्यान दिए बिना गैर भेदभाव के सभी लोगों को एक समान अधिकार प्रदान करता है। अतः कहा जा सकता है कि सभी भेदभाव के बिना समान रूप से मानव अधिकारों के हकदार हैं।
(4) अधिकारिता– असमर्थी बालकों को उनका अधिकार प्रदान करने के लिए मानवाधिकार के द्वारा अनेक प्रयास किए गए, जैसेशिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने का अधिकार, विकलांगों के लिए पेंशन योजना, सरकारी नौकरियों में आरक्षण आदि अधिकार प्रदान किया गया है ।
(5) सहभागिता – इस प्रतिमान के अन्तर्गत असमर्थी बालकों को सभी कार्यों में पूर्ण सहभागिता का अवसर प्रदान किया जाता है। वह अपनी स्वेच्छा से किसी भी कार्य में भागीदारी ले सकता है।
मानवाधिकार की विशेषताएँ– मानवाधिकार प्रतिमान के अन्तर्गत विकलांग बालकों के लिए निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं—
(1) सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों से सम्बन्धित विशेषताएँ—
(i) शिक्षा का अधिकार ।
(ii) स्वास्थ्य के लिए उत्तम व्यवस्था ।
(iii) सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने का अधिकार ।
(iv) अवकाश के सदुपयोग के लिए या मनोरंजन के लिए खेलों में, सहभागिता का अधिकार
(v) पुनर्वास का अधिकार ।
(vi) कार्य करने एवं रोजगार प्राप्त करने का अधिकार ।
(vii) संवैधानिक एवं सामाजिक सुरक्षा का अधिकार ।
(2) नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार से सम्बन्धित विशेषताएँ—
(i) भेदभाव रहित समानता का अधिकार ।
(ii) स्वतन्त्रतापूर्वक जीवन यापन का अधिकार ।
(iii) हिंसा एवं शोषण से मुक्ति का अधिकार ।
(iv) विचाराभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार ।
(v) राजनीतिक एवं सार्वजनिक जीवन में भागीदारी का अधिकार ।
(vi) सामान्य लोगों के समान न्यायिक अधिकार का उपयोग।
(vii) यातना या क्रूर व्यवहार या अमानवीय अपमानजनक व्यवहार का विरोध करने का अधिकार ।
(viii) न्यायालय एवं कानूनी क्षमता के समक्ष समान मान्यताएँ।
(ix) वैयक्तिक सुरक्षा एवं स्वाधीनता ।
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