व्यक्तिगत स्वच्छता के बारे में आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख तत्त्वों के बारे में लिखिए।
व्यक्तिगत स्वच्छता के बारे में आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख तत्त्वों के बारे में लिखिए।
उत्तर— व्यक्तिगत स्वच्छता – व्यक्तिगत स्वच्छता का अर्थ है शारीरिक स्वास्थ्य तथा स्वच्छता। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्यक्ति उचित ढंग से रहकर, साफ-सफाई, व्यायाम, आराम, नींद आदि पर ध्यान देकर अपने स्वास्थ्य को उन्नत कर सकता है। व्यक्तिगत स्वच्छता में पौष्टिक आहार, निद्रा, शरीर के अंगों की स्वच्छता व्यायाम, ताजी हवा, शुद्ध पानी, रहने के स्थान की स्वच्छता आदि सम्मिलित होते हैं। व्यक्ति के स्वास्थ्य का प्रभाव समाज पर भी पड़ता है क्योंकि व्यक्ति से ही समाज बनता है। यदि व्यक्ति स्वस्थ है तभी समाज भी स्वस्थ होगा तथा उन्नति की राह पर अग्रसर हो सकता है। अतः एक उन्नत समाज के निर्माण के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता अनिवार्य है।
व्यक्तिगत स्वास्थ्य की शिक्षा बच्चों को अपने घर तथा विद्यालय से प्राप्त होती है। अतः यह आवश्यक है कि बच्चों में स्वच्छता संबंधी अच्छी आदतें विकसित की जानी चाहिए। व्यक्तिगत स्वच्छता पर बच्चों को सही समय पर पर्याप्त जानकारी दी जानी चाहिए।
निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि “वह विज्ञान जो व्यक्तियों को स्वास्थ्य के नियमों से अवगत करवाता है व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान कहलाता है। “
इसके अन्तर्गत वह सभी क्रियाएँ तथा गतिविधियाँ सम्मिलित हो जाती है जो मानव विकास को हर प्रकार से प्रभावित करती है इस तथ्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है— सार्वजनिक पक्ष तथा व्यक्तिगत पक्ष।
(1) सार्वजनिक पक्ष—इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तथ्य सम्मिलित होते हैं—
(i) आवास की सामग्री व प्रबंधन।
(ii) जलवायु ।
(iii) प्रकाश, ताप तथा वायु आवागमन की व्यवस्था।
(iv) मिट्टी।
(2) व्यक्तिगत पक्ष—इसमें निम्न तयों का समावेश होता है—
(i) व्यक्तिगत स्वच्छता/ साफ-सफाई
(ii) नींद ।
(iii) भोजन।
(iv) विशेष आदतें ।
(v) जल एवं अन्य पेय पदार्थ ।
(vi) व्यायाम ।
(vii) व्यवसाय/कार्य ।
(viii) वस्त्र |
व्यक्तिगत साफ-सफाई—अच्छी साफ-सफाई स्वास्थ्य की उन्नति के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह बीमारियों से बचाव का एक प्रभावशाली उपाय है। बच्चों में व्यक्तिगत साफ-सफाई की आदतों का विकास करना चाहिए ताकि वे स्वस्थ रह सकें। व्यक्तिगत साफ-सफाई में निम्नलिखित शामिल हैं—
(1) त्वचा की देखभाल – मानव शरीर विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं, तन्तुओं तथा माँसपेशियों द्वारा निर्मित होता है। इसके आंतरिक अंगों की रक्षा करने के लिए उस पर त्वचा की एक परत जमी होती है जो इनकी बाहरी चोटों तथा क्षतियों से रक्षा करती है। एक व्यक्ति के स्वास्थ्य के स्तर का पता उसकी त्वचा या चमड़ी की स्थिति से लगाया जा सकता है।
व्यक्तिगत स्वच्छता का प्रथम नियम होता है अपने शरीर के विभिन्न अंगों को साफ रखना क्योंकि यदि शरीर ही साफ नहीं होगा, तो व्यक्ति की लाख कोशिशे उसे स्वस्थ नहीं बना सकती । त्वचा की सफाई प्रतिदिन करनी चाहिए। यदि हम अपनी त्वचा की सफाई प्रतिदिन नहीं करेंगे तो रोम कूप बन्द हो जायेंगे जिससे हमारे शरीर की गन्दगी बाहर नहीं निकल पाएगी। अतः अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए त्वचा की सफाई आवश्यक है। त्वचा की सफाई का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है प्रतिदिन स्नान ।
(2) मुँह की सफाई – खाना खाने के पश्चात् मुँह को अच्छी प्रकार साफ करना चाहिए। इसके लिए खाना खाने के बाद कुल्ला करना चाहिए।
(3) नाक की देखभाल – नाक द्वारा हम श्वास अन्दर लेते हैं जब श्वास अन्दर जाता है तो उसके साथ कई धूल के कण तथा रोग के कीटाणु भी अन्दर जा सकते हैं। नाक में बाल होते हैं जो एक प्रकार से छलनी का कार्य करते हैं। बाल इन धूल के कणों तथा कीटाणुओं को वही रोक लेते हैं और शुद्ध श्वास को अन्दर जाने देते हैं। अपने शरीर को रोगों से बचाए रखने के लिए नाक की सफाई अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अगर नाक की सफाई प्रतिदिन न की जाए तो हमारे शरीर में अशुद्ध वायु जायेगी जिससे अनेक प्रकार के रोग हो सकते हैं।
(4) दाँतों की देखभाल-दाँत व्यक्ति को सुन्दरता प्रदान करने के साथ-साथ भोजन को चबाने और पचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दाँतों की उपेक्षा से हमारी पूरी सेहत बिगड़ सकती है। पायेरिया तथा पाचन तंत्र में कई रोग हो सकते हैं। दाँतों की सफाई के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—
(i) खाना खाने के पश्चात् दाँतों को साफ करना चाहिए। रात को सोने से पहले दाँतों को साफ करना (ब्रुश करना) ज्यादा अच्छा है।
(ii) दाँतों को ऊपर से नीचे की ओर ब्रुश करना चाहिए। बहुत ज्यादा सख्त या कोमल ब्रुश का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
(iii) दाँतों से सख्त चीजों को नहीं तोड़ना चाहिए। दाँतों के सुई या अन्य सख्त वस्तु नहीं डालनी चाहिए।
(iv) बच्चों को टॉफी, चॉकलेट, कैंडी आदि कम खानी चाहिए।
(5) नाखूनों की देखभाल – हमारे शरीर में पैरों तथा हाथों के सिरों की रक्षा के लिए नाखून होते हैं। हाथों के नाखूनों का प्रयोग अधिक होता है इसलिए इनमें मैल भी इकट्ठी हो जाती है जो भोजन बनाते समय या भोजन करते समय हमारे भोजन के साथ मिलकर हमारे शरीर में प्रवेश करती है तथा कई प्रकार के रोग उत्पन्न करती है। अतः यह आवश्यक है कि नाखूनों की सफाई की तरफ ध्यान दिया जाए।
(6) बालों की देखभाल – सिर के बालों को सप्ताह में 2 या 3 बार एंटीसेप्टिक साबुन, दही या शैम्पू से ठीक प्रकार धोकर सुखाना चाहिए। सिर पर अत्यधिक रासायनिक पदार्थों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। किसी अच्छे तेल जैसे जैतून, नारियल या सरसों से सिर की मालिश करनी चाहिए। सिर धोने के पश्चात् तेल का प्रयोग अवश्य करें। बालों में मैल न जमने देना चाहिए।
(7) कानों की देखभाल – कानों द्वारा हम सुनने का काम करते हैं। कान अन्दर से बहुत नाजुक होता है। अतः कान में पिन या अन्य नुकीली वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कान को चोट लगने से बचाना चाहिए। तेज शोर भी कानों के लिए नुकसानदायक होता है। कानों की सफाई के लिए रूई का प्रयोग सही रहता है।
(8) आँखों की देखभाल – आँखें बहुत अनमोल अंग है इसलिए आँखों को स्वस्थ रखने की हर संभव कोशिश की जानी चाहिए। आँखों की देखभाल के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—
(i) आँखों को प्रतिदिन ताजे पानी से साफ करना चाहिए।
(ii) आँखों को धूल, मिट्टी, धुएँ, तेज रोशनी आदि से बचाना चाहिए।
(iii) पढ़ते समय किताब को आँखों से उचित दूरी पर रखना चाहिए।
(iv) आँखों की सफाई के लिए साफ कपड़े या रूमाल का प्रयोग करना चाहिए।
(v) टी. वी. देखते समय या कम्प्यूटर पर काम करते समय उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए।
(vi) यदि आँखों में थकावट महसूस हो तो उसे अनदेखा नहीं करना चाहिए। उस समय आँखों को आराम देना चाहिए।
(vii) आँखों को ज्यादा मसलना नहीं चाहिए।
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