व्यक्तित्व से आपका क्या अभिप्राय है? अच्छे व्यक्तित्व की पाँच विशेषताएँ लिखिए।
व्यक्तित्व से आपका क्या अभिप्राय है? अच्छे व्यक्तित्व की पाँच विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर— व्यक्तित्व (Personality)–व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी के Personality शब्द का पर्याय है। Personality शब्द लैटिन शब्द परसोना (Persona) से बना है जिसका अर्थ ‘नकाब’ होता है। जिसे ग्रीक नायक नाटक करते समय पहनते थे। प्रारम्भ में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूपरंग से ही लगाया जाता था। लेकिन इस व्याख्या को पूर्णत: अवैज्ञानिक घोषित कर दिया गया क्योंकि कई ऐसे व्यक्तियों के उदाहरण मिलते हैं जिनका बाह्य रूपरंग इतना आकर्षक नहीं होता है लेकिन उनका व्यक्तित्व आकर्षक माना जाता है, जैसे— गाँधी, टैगोर, स्वामी विवेकानंद आदि । इस प्रकार मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के रूप एवं गुणों की समष्टि से है। मनोविज्ञान में व्यक्तित्व, बाह्य आवरण और आन्तरिक तत्त्व दोनों का गतिशील सम्मिश्रण है जो कि पर्यावरण के प्रभाव से बराबर बदलता रहता है।
व्यक्तित्व की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न हैं—
(i) वैलेंटाइन के अनुसार, “व्यक्तित्व जन्मजात और अर्जित प्रवृत्तियों का योग है। “
(ii) ड्रेवर के अनुसार, “व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के एकीकृत तथा गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है जिसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में व्यक्त करता है।”
(iii) गिल्फोर्ड के अनुसार “व्यक्तित्व, गुणों का समन्वित रूप है। “
(iv) बिग व हंट के अनुसार, व्यक्तित्व एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार प्रतिमान और उसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है। “
(v) वाल्टर मिसकेल के अनुसार, “प्रायः व्यक्तित्व से तात्पर्य व्यवहार के उस विशिष्ट स्वरूप (जिसमें चिंतन व संवेग शामिल हैं) से होता है। जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की परिस्थितियों के साथ होने वाले समायोजन को निर्धारित करता है । “
(vi) ऑलपोर्ट (1937 ) के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनो-शारीरिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण से अपूर्व समायोजन को निर्धारित करते हैं । “
व्यक्तित्व की विशेषताएँ (Characteristics of Personality) व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं—
(1) आत्मचेतना (Self-Consciousness)— व्यक्ति की प्रथम एवं प्रमुख विशेषता है-आत्मचेतना। अपनी इसी विशेषता के कारण उसे सर्वोच्च प्राणी का स्थान प्राप्त हुआ तथा उसमें व्यक्तित्व की उपस्थिति को स्वीकार किया गया। बालकों एवं पशुओं में आत्मचेतना का गुण नहीं पाया जाता है। इसलिए उनके गुणों के बारे में कुछ भी कहना सही नहीं होगा।
(2) निरंतर निर्माण की क्रिया (Process of Continuous Creation )— व्यक्तित्व हमेशा निर्माण की प्रक्रिया में संलग्न रहता है अर्थात् उसके विकास में निरंतरता पायी जाती है। उसके विकास में कभी स्थिरता नहीं आती है। जैसे-जैसे व्यक्ति के विचारों, अनुभवों तथा कार्यों में परिवर्तन होता जाता है वैसे-वैसे व्यक्तित्व के स्वरूप में भी परिवर्तन होता जाता है। निर्माण की यह क्रिया शैशवावस्था से लेकर जीवन पर्यन्त चलती रहती है।
(3) निर्देशित लक्ष्य प्राप्ति (Achievement of Directed Goal)– मनुष्य हमेशा एक निश्चित उद्देश्य लेकर कार्य करता है। उसके प्रत्येक व्यवहार के पीछे कोई न कोई लक्ष्य छिपा रहता है। उसके व्यवहार व लक्ष्यों को जानकर ही हम उसके व्यक्तित्व के विषय में सहज अनुमान लगा सकते हैं। भाटिया के अनुसार, “व्यक्ति या व्यक्तित्व को समझने के लिए हमें इस बात पर विचार करना आवश्यक हो जाता है कि उसके लक्ष्य क्या हैं व उसमें कितना ज्ञान है। “
(4) सामाजिकता (Sociality)– मनुष्य को समाज से अलग कर उसके व्यक्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मनुष्य समाज में रहते हुए जब अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर क्रिया व अन्तः क्रिया करता है तो उसमें आत्मचेतना एवं व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए सामाजिकता का होना जरूरी है।
(5) शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health)– मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है। उसके अच्छे व्यक्तित्व के लिए अच्छे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का होना जरूरी है। शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य सही न होने पर उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो सकता है ।
(6) दृढ़ इच्छाशक्ति (Strong Will Power)– यह वह शक्ति है जो व्यक्ति को उसके मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से संघर्ष करके उसके अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने की क्षमता प्रदान करती है। व्यक्ति की यदि यह शक्ति निर्बल हो जाये तो यह उसके व्यक्तित्व को विघटित भी कर देती है।
(7) सामंजस्य (Co-ordination)– व्यक्ति को केवल बाह्य वातावरण से ही नहीं बल्कि अपने व्यक्तिगत (आन्तरिक) जीवन से भी सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। जब व्यक्ति सामंजस्य स्थापित करता है तो उसके व्यवहार में परिवर्तन होता जाता है। यही कारण है कि चोर, डॉक्टर, चपरासी, इन सबके व्यवहार में क्रमश: अंतर पाया जाता है।
(8) एकीकरण (Integration)– एकीकरण का तात्पर्य व्यक्तित्व के एकीकरण से है। जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का कोई अंग अकेले कार्य नहीं करता है। उसी प्रकार व्यक्तित्व का कोई तत्त्व अकेले कार्य नहीं कर सकता है। ये तत्त्व हैं— नैतिक, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक आदि व्यक्तित्व के इन सभी तत्त्वों में एकीकरण का गुण पाया जाता है। भाटिया के अनुसार, “व्यक्तित्व मानव की सभी शक्तियों व गुणों का संगठन व एकीकरण है।”
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