‘ध्वनि’ से आप क्या समझते हैं ?

‘ध्वनि’ से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर— ध्वनि का शाब्दिक अर्थ ‘आवाज’ होता है। भाषा शिक्षण में मुख में स्वर – तंत्रियों के बीच से निःसृत प्रश्वास जब मुख विवर से होकर बाहर निकलता है तब वह जीभ, दाँत, ओष्ठ आदि की भिन्न-भिन्न मुद्राओं से होकर भिन्न-भिन्न प्रकार की आवाज करता है, उसे ध्वनि कहते हैं। संक्षेप में भाषायी ध्वनि वक्ता को वाक्यंत्र से उत्पन्न होकर श्रोता के श्रवणेन्द्रिय का विषय होती है। इस प्रकार उत्पन्न ध्वनि, भाषा ध्वनि तभी होगी जबकि वह सार्थक होगी। जब कोई व्यक्ति अपने भावों को दूसरे तक पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो वह ध्वनि यंत्र से सार्थक ध्वनियों के समूह को उत्पन्न करता है। ध्वनियों का यही मौखिक उच्चरित रूप भाषा प्रमुख रूप होता है।
ध्वनि के मूल तत्त्व – सार्थक ध्वनि के लिए ध्वनि के मूल तत्त्वों का निर्वाह होना आवश्यक है, ये निम्नलिखित हैं—
(1) शुद्धता – ध्वनि का शुद्ध उच्चारण समाज द्वारा मान्य एवं परिष्कृत हो।
(2) स्पष्टता – बोलने में स्पष्टता हो – सुनने वाला सुनकर अर्थ ग्रहण कर सके। यह अति आवश्यक है।
(3) सुश्रव्यता – उपस्थित समुदाय तक आवाज- स्वर पहुँच सकें अर्थात् वाणी न बहुत तेज हो न बहुत धीमी
(4) तरंगता – ध्वनि में आरोहावरोह होना चाहिए। एक ही प्रकार से निरन्तर बोलने पर श्रोता ऊब जाते हैं तथा अर्थग्रहण की दृष्टि से स्वराघात, बलाघात की आवश्यकता होती है। यही तरंगता कही जाती है।
(5) सार्थकता – वाणी सार्थक हो, अनावश्यक ध्वनि विस्तार न हो, शब्दों की अनावश्यक आवृत्ति न हो इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *