संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये—

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(i) आवृत्ति बहुभुज
(ii) समूह चर्चा
(iii) सहकारी अधिगम

उत्तर–(i) आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygon)—आवृत्ति रूप में व्यवस्थित आँकड़ों को यदि स्तम्भ आरेख में दर्शाया जाता है तो इस रचना को आवृत्ति स्तम्भाकृति कहा जाता है परन्तु यदि आवृत्ति वितरण को स्तम्भों द्वारा न दर्शाकर उन स्तम्भों की शीर्ष रेखाओं के मध्य बिन्दुओं को मिलाकर प्रदर्शित किया जाए तो यह आरेख आवृत्तिबहुभुज कहलाता है। आवृत्ति बहुभुज को दर्शाने का एक तरीका यह भी होता है कि यदि वर्गान्तरों की संख्या बहुत अधिक हो तो स्तम्भों की जगह स्तम्भों के बीच के बिन्दुओं को मिलाकर रेखा खींच दी जाती है ।
यदि हमें आवृत्ति बहुभुज बनाना हो तो सबसे पहले आवृत्ति वितरण में सबसे ऊपर तथा सबसे नीचे एक-एक वर्ग और जोड़ लिया जाता है तथा इन जोड़े गए आभासी वर्ग की आवृत्ति शून्य मान ली जाती है एवं जब ठीक आवृत्ति स्तम्भाकृति आरेख खींचा जाता है फिर इसमें प्रत्येक स्तम्भ की शीर्ष रेखा के मध्य बिन्दुओं को आपस में मिलाकर एक रेखा खींच दी जाती है। इस प्रकार प्राप्त आकृति आवृत्ति बहुभुज कहलाती है। नीचे दिए गए उदाहरण की सहायता से आवृत्ति – बहुभुज सरलता से समझा जा सकता है :
उदाहरण – 50 अंकों की मनोवैज्ञानिक परीक्षा में 50 छात्रों के प्राप्तांकों की आवृत्ति वितरण तालिका निम्न प्रकार से दी गई है। इन आँकड़ों की आवृत्ति बहुभुज के रूप में दर्शाओ—
        वर्ग                                     आवृत्ति
50-55 (बढ़ा हुआ वर्गान्तर)                 0
       45-50                                       5
       40-45                                       9
       35-40                                       7
       30-35                                       8
       25-30                                       4
       20-25                                       6
       15-20.                                       5

       10-15.                                        6
5-10      (बढ़ा हुआ वर्गान्तर)              0
हल— सबसे पहले ज्ञात वर्गान्तरों को X-अक्ष पर प्रदर्शित करते हैं तथा आवृत्तियों को Y-अक्ष पर निरूपित करते हैं चूँकि दिए गए उदाहरण में वर्गान्तर 10-15 ( सबसे नीचे) तथा वर्गान्तर 45-50 (सबसे ऊपर) दिया गया है परन्तु नियमानुसार आवृत्ति बहुभुज आरेख बनाने के लिए एक आभासी वर्गान्तर मानते हैं सबसे ऊपर 50-55 तथा सबसे नीचे वर्गान्तर (5-10) मानेंगे जिसकी आवृत्ति शून्य होगी। OX – अक्ष रेखा खींचने के लिए 1 वर्ग 1 सेमी. का पैमाना माना जाता है तथा OYअक्ष रेखा के लिए भी यही माप रखी जाती है।
सबसे पहले हमने वर्गान्तर (5-10) की आवृत्ति 0 को बिन्दु A से निरूपित किया तथा फिर वर्गान्तर (10-15) की आवृत्ति 6 को बिन्दु B से तथा वर्गान्तर (15-20) की आवृत्ति 5 को बिन्दु C तथा यही प्रक्रिया सबसे ऊपर तक के वर्गान्तर के साथ की तथा फिर इन सभी बिन्दुओं को पैमाने की सहायता से मिलाकर आवृत्ति बहुभुज को तैयार किया । जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
आवृत्ति बहुभुज के गुण (Merits of Frequency Polygon) — आवृत्ति बहुभुज के निम्नलिखित गुण हैं—
(1) यदि आँकड़े आवृत्तियों के रूप में दिए हुए हों और में वर्गान्तरों की संख्या बहुत ज्यादा हो तो ऐसी स्थिति में हम इन आँकड़ों को आवृत्ति बहुभुज के रूप में प्रदर्शित कर सकते हैं।
(2) आवृत्ति बहुभुज का उपयोग आँकड़ों की वितरण प्रकृति को समझने के लिए भी किया जाता है।
(3) आवृत्ति बहुभुज का उपयोग दो या दो से ज्यादा समूहों की तुलना के लिए भी किया जाता है।
आवृत्ति बहुभुज के दोष (Demerits of Frequency Polygon) — आवृत्ति – बहुभुज के दोष निम्नलिखित हैं—
(1) केवल सतत् आँकड़ों के लिए ही आवृत्ति-बहुभुज को प्रदर्शित किया जा सकता है।
(2) आवृत्ति बहुभुज की सहायता से कोई संख्यात्मक तुलना आदि नहीं की जा सकती है।
(3) आवृत्ति बहुभुज द्वारा किसी भी प्रकार का उच्च सांख्यिकीय विश्लेषण नहीं किया जा सकता है।
(ii) समूह चर्चा (Group Discussion)— सामूहिक चर्चा में बौद्धिक मनोरंजन किया जाता है। इसका आधुनिक अर्थ यह है कि वह सभा जिसमें एक प्रकरण पर वक्तागण अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। इसके अन्तर्गत एक क्रम में प्रकरण सम्बन्धी विचारों को प्रस्तुत करने का आयोजन किया जाता है। किसी विशिष्ट प्रकरण पर कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को प्रस्तुत कर सकता है।
‘सामूहिक चर्चा समिति का एक ऐसा समूह है जिसमें श्रोताओं को उत्तर के प्रकार के विचारों से अवगत कराया जाता है। श्रोतागण प्रकरण सम्बन्धी सामान्य तैयारी में अपने कुशल हुए विचारों को सम्मिलित करते हैं और नीति, मूल्यों एवं बोधगम्यता के सम्बन्ध में निर्णय लेते हैं।” सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया में समस्या के विभिन्न पक्षों को समझना होता है। सामूहिक चर्चा किसी निर्णय पर नहीं पहुँचती है। श्रोतागण अपने निर्णय लेने में स्वतंत्र होते हैं। सामूहिक चर्चा के अन्त में भी प्रकरण सम्बन्धी वाद-विवाद खुला रहता है। वक्ताओं एवं श्रोताओं में अन्तःप्रक्रिया नहीं होती है। इसमें अप्रत्यक्ष रूप में अन्तः प्रक्रिया होती है।
सामूहिक चर्चा की विशेषताएँ (Characteristics of Group Discussion)–सामूहिक चर्चा की विशेषताएँ निम्न हैं—
(1) किसी प्रकरण एवं समस्या के विभिन्न पक्षों का व्यापक रूप में बोध होता है।
(2) श्रोतागणों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है तथा वक्ताओं को प्रकरण सम्बन्धी अपने विचारों को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी जाती है।
(3) उच्च कक्षाओं में विशिष्ट प्रकरणों तथा समस्याओं के सम्बन्ध में व्यापक जानकारी दी जाती है ।
(4) समायोजन तथा सहयोग की भावनाओं का विकास किया जाता है।
(5) मूल्यांकन तथा संश्लेषण की क्षमताओं का विकास किया जाता है।
सामूहिक चर्चा के समय ध्यान देने योग्य बातें (Precautions to be Taken at the Time of Group Discussion)– सामूहिक चर्चा की व्यवस्था में तीन प्रकार की बातों को ध्यान में रखना चाहिए—
(1) प्रथम सावधानी अनुदेशक/व्यवस्थापक को यह रखनी चाहिए कि वक्ताओं ने अपने प्रवचनों को अच्छी प्रकार तैयार कर लिया है। वे सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया के प्रस्तुतीकरण के नियमों से भी भली-भाँति परिचित हैं। अन्य वक्ताओं के विचारों की उन्हें पुनरावृत्ति नहीं करनी चाहिए।
(2) द्वितीय सावधानी यह रखनी चाहिए कि अध्यक्ष या अनुदेशक कार्य की एक रूपरेखा तैयार कर लें । वक्ताओं के प्रवचनों को एक क्रम में व्यवस्थित करना होता है। प्रकरण सम्बन्धी किसी महत्त्वपूर्ण विरोधी विचार को छोड़ना नहीं चाहिए।
(3) तृतीय सावधानी प्रश्नों की परिस्थितियों की अवस्था का सावधानी से आयोजन करना चाहिए। साधारणत: सभी वक्ताओं को अन्त में प्रश्नों एवं स्पष्टीकरण के लिए अवसर देना चाहिए। कभी-कभी वातावरण में परिवर्तन लाने के लिए प्रश्नों के लिए अध्यक्ष अवसर देता है।
सामूहिक चर्चा के उपयोग (Uses of Group Discussion) — सामूहिक चर्चा का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में उच्च कक्षाओं के शिक्षण तथा अनुदेशन के लिए किया जा सकता है। कुछ प्रमुख उपयोग इस प्रकार हैं—
(1) परीक्षा में वस्तुनिष्ठ एवं निबन्धात्मक प्रश्नों का उपयोग,
(2) शिक्षा में सत्र प्रणाली एवं वार्षिक प्रणाली,
(3) विद्यार्थियों में अनुदेशनहीनता के कारण,
(4) शोध कार्यों में गुणवत्ता के विकास हेतु ।
(5) कक्षा-शिक्षण में क्रियात्मक अनुसंधान का उपयोग
(6) सूक्ष्म-शिक्षण का प्रशिक्षण संस्थानों में प्रयोग
(7) टोली- शिक्षण का विद्यालयों में प्रयोग
(8) अध्यापक-शिक्षा में विद्यार्थियों की शिक्षण की उपादेयता,
(9) कक्षा-शिक्षण एवं अनुदेशन में शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग तथा
(10) विद्यार्थियों के लिए दूरदर्शन की उपादेयता ।
(iii) सहकारी अधिगम (Cooperative Learning ) – लघूत्तरात्मक प्रश्न संख्या 16 का उत्तर देखें ।
सहकारी अधिगम के अंग (Components Cooperative Learing)—सहकारी अधिगम के विभिन्न अंगों का वर्णन निम्न प्रकार है—
(1) खेल द्वारा अधिगम (Learning by Play )—सामान्य रूप से बालक घर पर विविध प्रकार की मिट्टी की मूर्ति एवं खिलौनों का निर्माण करते हैं जिससे एक ओर तो उनमें विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास होता है वहीं दूसरी ओर कला सम्बन्धी अधिगम भी होता है। खेल खेलने से बलक एक दूसरे के प्रति प्रेम व सहयोग का प्रदर्शन करते हैं जिससे उनमें सामाजिक गुणों का विकस होता है। खेल द्वारा अधिगम से छात्रों में सीखने की प्रक्रिया तीव्र एवं स्थायी रूप में देखी ज सकती है।
(2) सामूहिक प्रतियोगिता द्वारा अधिगम (Learning by Group Competition)— बालक के समक्ष जब प्रतियोगिता रखी जाती है तो बालक पूर्ण मनोयोग से कार्य करता है क्योंकि उसके समक्ष जीवन का लक्ष्य होता है। इसी क्रम में जब बालकों को समूह में रखकर अधिगम कार्य प्रदान किए जाते हैं तो उनमें सीखने की भावना तीव्र हो जाती है। जैसे छात्रों के समूह बनाकर उनकी गिनती लेखन की प्रतियोगिता करायी जाए तो प्रतियोगिता में प्रत्येक छात्र स्वयं गिनती सीखेगा तथा अपने समूह के कमजोर छात्र को भी सीखने के लिए प्रेरित करेगा साथ ही अपने स्तर पर लाने में उसका सहयोग भी करेगा। इस प्रकार अधिगम स्थायी एवं तीव्र गति से होगा।
( 3 ) समूह द्वारा सीखना (Learning by Group ) -समूह द्वारा अधिगम की प्रक्रिया को सरल, रोचक एवं उपयोगी बनाया जा सकता है। इसमें छात्रों के समूह बनाकर उनको कार्य दिए जाते हैं। कुछ प्रतिभाशाली छात्रों को प्रत्येक समूह में रख दिया जाता है तथा उन्हें समूह का प्रमुख बना दिया जाता है। समूह को जो शैक्षिक कार्य दिए जाते हैं वे पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार के समूह में छात्र एक दूसरे से सहायता करते हुए सीखते हैं। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षक द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
(4) शैक्षिक प्रदर्शन द्वारा सीखना (Learning by Educational Exhibition) –विद्यालय में समय-समय पर शैक्षिक प्रदर्शनी का आयोजन किया जाना चाहिए। इस आयोजन के अन्तर्गत उन विषयों पर प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए जो बालकों की आयु व मानसिक स्तर के अनुकूल हो अर्थात् परिवहन के साधन, सजीव व निर्जीव वस्तुएँ, कम्प्यूटर आदि। इससे छात्रों में सामूहिक भावना का विकास होगा। प्रदर्शनी में सम्बन्धित तथ्यों के बारे में छात्र एक-दूसरे से तथा शिक्षकों से सीखने का प्रयास करेंगे।
(5) सांस्कृतिक कार्यक्रम (Cultural Programme)–©′ विद्यालय में सम्पन्न होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी सहकारी रूप से छात्रों का सहयोग लिया जाता है। बालकों को समय-समय पर इस प्रकार के कार्यक्रमों में (विद्यालय तथा विद्यालय से बाहर ) भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इससे छात्र एक ओर स्वयं कार्य करके अधिगम करता है तथा दूसरी ओर साथियों से भी सीखने का प्रयास करता है । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अभिभावकों की भी रुचि बनी रहती है। सांस्कृतिक । कार्यक्रमों में अभिभावकों को भी आमन्त्रित करना चाहिए। बालक अपने माता-पिता के द्वारा कार्य की प्रशंसा सुनकर सीखने के लिए अधिक प्रोत्साहित होते हैं ।
(6) शैक्षिक भ्रमण द्वारा सीखना (Learning by Educational Tour)—छात्रों को शैक्षिक भ्रमण द्वारा सीखने का अवसर प्रदान करना चाहिए। सामान्य रूप से शैक्षिक भ्रमण पर जाना छात्रों को अच्छा लगता है। शहर के प्रसिद्ध कम्प्यूटर प्रयोगशालाओं उद्योग स्थलों, समाचार पत्र स्थलों, ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कराया जाना चाहिए । इससे छात्रों को सम्बन्धित चीजों की जानकारी सरलता से हो जायेगी तथा सहयोग की प्रवृत्ति का भी इससे विकास होता है।
(7) शैक्षिक मेलों द्वारा सीखना (Learning by Education Fairs)– विद्यालय में छात्रों के लिए शैक्षिक मेलों का आयोजन करना चाहिए। इन मेलों के माध्यम से छात्रों को अधिक से अधिक सीखने के अवसर मिलते है। जैसे कम्प्यूटर मेलों के आयोजन से छात्रों को कम्प्यूटर सम्बन्धी उपकरणों के बारे में तथा उनके प्रयोग के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है तथा छात्रों को कम्प्यूटर के ज्ञान सम्बन्धी तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इसी प्रकार अन्य विषयों पर भी मेलों का आयोजन किया जा सकता है।
सह-अधिगम के दोष (Demerits of Cooperative Learning) सहकारी अधिगम के निम्नलिखित दोष हैं–
(1) इस प्रणाली के द्वारा कक्षा तथा विद्यालय में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप गम्भीर अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
(2) सहकारी अधिगम के बहाने अध्यापक अपने शिक्षण दायित्वों का निर्वाह सही ढंग से न करके मौज-मस्ती करते हैं इसलिए यह प्रणाली मान्य नहीं है ।
( 3 ) होशियार और प्रतिभाशाली बालकों को ट्यूटर बनाया जाता है जिससे उनका समय और शक्ति बर्बाद होती है तथा अधिगम विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
(4) इस प्रणाली को लागू करने से विस्तृत पाठ्यक्रम के समय पर समाप्त न होने की संभावना बनी रहती है ।
(5) इस उपागम में प्रतिभावान तथा मन्दबुद्धि बालकों के मध्य समायोजन नहीं हो पाता जिससे छात्र किसी भी कार्य को कुशलता से सम्पन्न नहीं कर पाते ।
(6) इस उपागम द्वारा कार्य करने से छात्रों के मध्य उत्तरदायित्व की भावना का अभाव देखा जाता है, जिससे छात्र एक दूसरे पर दायित्व सौंपकर अपने दायित्व से बचने का प्रयास करता है।
(7) समूह में कार्य करने की अपेक्षा छात्र बातें करते हैं जो कार्य उनको दिया जाता है, उस पर यह कोई ध्यान नहीं देते । अतः सामूहिक कार्यों के परिणाम अच्छे नहीं होते।
(8) पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने के कारण शिक्षकों को इस प्रणाली पर विश्वास नहीं है कि छात्र स्व-अधिगम से ज्ञानार्जन कर सकेंगे।
(9) विद्यार्थियों को न तो कोई पूर्व अनुभव होता है और न उन्हें कोई ऐसा प्रशिक्षण दिया गया है जिससे वे स्वयं के प्रयत्नों से मिल-जुलकर अधिगम अनुभव कर सकें।
(10) समूह में सम्पन्न की जाने वाली गतिविधियों में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जैसे—संसाधन का अभाव ।
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