सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के सिद्धान्त एवं उद्देश्य बताइए |
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के सिद्धान्त एवं उद्देश्य बताइए |
उत्तर – सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के सिद्धान्त (Principles of CCE) –
(1) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन तथा सीखने की प्रक्रिया साथसाथ चलती है, जिसमें बच्चे को सीखने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने के बाद ही मूल्यांकन किया जाता है।
(2) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में बच्चे की प्रगति की तुलना उसके स्वयं की पिछली प्रगति से की जाती है न कि अन्य बच्चों की प्रगति से ।
(3) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में बच्चे के सीखने की गति एवं क्षमता के अनुसार अलग-अलग गतिविधियों का उपयोग किया जाता है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of CCE) – मूल्यांकन एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों की शैक्षिक तथा सहशैक्षिक क्रियाओं की प्रगति को जाना जाता है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों की सफलता-असफलता की जानकारी प्राप्त होती है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं—
(1) व्यवहारगत परिवर्तनों को जानना – सी. सी.ई. के द्वारा अध्यापक विद्यार्थियों में होने वाले वांछित व्यवहारगत परिवर्तन को जान सकता है। विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषयों के फलस्वरूप छात्रों ने कितना सीखा है ? कितना आत्मसात् किया है? उनके व्यवहार में सापेक्ष परिवर्तन हुआ है, या नहीं ? इनका ज्ञान अध्यापक को सतत् व व्यापक मूल्यांकन द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।
(2) विद्यार्थियों की प्रगति जानना – सी.सी.ई. का प्रमुख उद्देश्य निश्चित समय उपरान्त विद्यार्थियों की प्रगति को जानना है। विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में विद्यार्थियों की सम्प्राप्ति ज्ञात करने हेतु वर्ष भर में सतत् रूप से मूल्यांकन करना, इसका उद्देश्य है, जिससे छात्रों के सभी पक्षों का ज्ञान प्राप्त किया जा सके । सत्र के बीचबीच में विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं, सामयिक परीक्षण, संरचनात्मक परीक्षण, समेकित परीक्षण आदि का आयोजन कर छात्रों की शैक्षिक प्रगति को ज्ञात किया जाता है।
(3) छात्रों की रुचि एवं योग्यता का अध्ययन– सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के आधार पर न केवल छात्रों की शैक्षिक सम्प्राप्ति का अध्ययन किया जा सकता है, अपितु इसके आधार पर छात्रों की रुचि, अभिवृत्ति, योग्यता, बुद्धि आदि का भी अध्ययन किया जा सकता है। विभिन्न प्रमापीकृत तथा अध्यापक निर्मित परीक्षणों के माध्यम से छात्रों के सम्बन्ध में इन बातों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है । सी.सी. ई. के माध्यम से छात्रों की सहशैक्षिक गतिविधियों का भी परीक्षण किया जाता है, जिससे उनकी विशेष क्षेत्र में रुचि व योग्यता को प्रोन्नत किया जा सकता है।
(4) उद्देश्यों की प्राप्ति की जानकारी – शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक सर्वप्रथम अपने शिक्षण के लिए उद्देश्य निर्धारित करता है, इन्हीं उद्देश्यों के आधार पर छात्रों को कक्षा में ज्ञानानुभव प्रदान करता है तथा अन्त में मूल्यांकन के आधार पर देखता है कि छात्रों में वांछित दिशा में व्यवहार परिवर्तन हुआ है अथवा नहीं। अर्थात् शिक्षण के लिए उसने जिन उद्देश्यों का निर्धारण किया था, उन उद्देश्यों की शिक्षण के माध्यम से प्राप्ति हुई अथवा नहीं। सी.सी.ई. के माध्यम से शिक्षक उपयुक्त विधियों के आधार पर अध्यापन और सीखने की स्थितियों की उचित योजना निर्माण भी करता है, क्योंकि सी.सी.ई. के माध्यम से अध्यापक को समय-समय पर छात्रों की शैक्षिक प्रगति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है जिससे वह अध्यापन में सुधार कर सकता है।
(5) भयमुक्त परीक्षण–आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है क्योंकि पहले जहाँ छात्र परीक्षा के नाम से ही भय व दबाव से ग्रस्त हो जाते थे, वे विद्यालय जाना भी पसन्द नहीं करते थे, वहीं आज परीक्षा प्रणाली की भयमुक्त व दबावरहित बनाना सी.सी.ई. का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। इसके माध्यम से वर्ष पर्यन्त समय-समय पर मूल्यांकन किया जाता है जिससे छात्रों में एक ही समय में अधिक पाठ्य सामग्री के अध्ययन का भय नहीं रहता है।
(6) छात्रों को उचित निर्देशन – मूल्यांकन के आधार पर छात्रों की शैक्षिक सम्प्राप्ति का अध्ययन करने के साथ-साथ, उनकी बुद्धि, रुचि, योग्यता, क्षमता, अभिवृत्ति का भी अध्ययन किया जा सकता है। इन सभी के अध्ययन के आधार पर छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित उचित रूप से निर्देशन प्रदान किया जा सकता है। छात्र कक्षा 11 में कौनसा विषय चुने, उसे किस प्रकार के व्यवसाय की तरफ उन्मुख होना है, ये सभी बातें उसकी रुचि, योग्यता, क्षमता आदि पर निर्भर करती हैं, इसके लिए उसे उचित रूप में निर्देशन देने के लिए उसका सतत् मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है।
(7) अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना–मूल्यांकन का शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की सफलता का अध्ययन करने के साथ-साथ उसमें सुधार करने का भी महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। सी.सी.ई. के माध्यम से विषय वस्तु, उसे प्रस्तुत करने के लिए प्रयुक्त विधियाँ एवं सरल शिक्षण सामग्री की उपयुक्तता का अध्ययन करने में महत्त्वपूर्ण सहायता प्राप्त होती है। अध्यापक समय-समय पर छात्रों की शैक्षिक प्रगति जानकर तथा उनके अनुरूप अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली व रुचिकर बना सकता है। छात्रों के प्राप्त अंकों के आधार पर शिक्षण विधियों में भी परिवर्तन कर अधिगम प्रक्रिया में उन्नति की जा सकती है।
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