सर्व शिक्षा अभियान क्या है ? इसके उद्देश्यों एवं घटकों का वर्णन कीजिए ।

सर्व शिक्षा अभियान क्या है ? इसके उद्देश्यों एवं घटकों का वर्णन कीजिए ।

अथवा
सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य स्पष्ट कीजिये ।
                              अथवा
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक का महत्त्व बताइये।
                               अथवा
विशेष फोकस समूहों की शिक्षा के संदर्भ में सर्व शिक्षा अभियान की मुख्य कार्य नीतियों का उल्लेख कीजिए ।
                               अथवा
2000 एस. एस. ए. क्या है ? वर्णन कीजिए।
                               अथवा
SSA ( सर्व शिक्षा अभियान ) में समावेशी शिक्षा की भूमिका लिखिये ।
उत्तर— सर्व शिक्षा अभियान – सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत 2001 में की गई। इसे राष्ट्रीय योजना के रूप में सभी जिलों में लागू किया गया। इस अभियान का उद्देश्य 2010 तक 6 से 14 आयु वर्ग के सभी छात्रों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराना था।
इस प्रकार सर्व शिक्षा अभियान एक समयबद्ध कार्यक्रम है जो 6-14 वर्ष तक के सभी बालकों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबन्ध करता है—
(1) समयबद्ध कार्यक्रम – सर्व शिक्षा अभियान समयबद्ध चलने वाला एक कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य 2010 तक देश के सभी बालकों को आठ वर्ष की प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध कराना था।
(2) केन्द्र एवं राज्य स्तर पर सहयोग – इस कार्यक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु राज्य एवं स्थानीय सरकारों के बीच सहयोग की भावना को विकसित करना ।
(3) राज्यों के अपने दृष्टिकोण का विकास एवं राष्ट्रीय एकता – यह कार्यक्रम राज्यों को यह अधिकार देता है कि वह प्रारम्भिक स्तर पर शिक्षा का अपना दृष्टिकोण विकसित करें एवं राष्ट्रीय एकता स्थापित करें |
(4) प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण – प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लिए यह एक दृढ़ संकल्प है।
(5) गुणात्मक शिक्षा – पूरे देश में शिक्षा की माँग को देखते हुए प्रारम्भिक स्तर पर गुणात्मक शिक्षा प्रदान करना ताकि बालकों का बौद्धिक स्तर ऊँचा हो सके ।
(6) सामाजिक न्याय – प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण करते हुए जन साधारण को सामाजिक स्तर पर समानता प्रदान करना सर्व शिक्षा अभियान का प्रमुख उद्देश्य है जिससे सभी लोगों को बिना किसी जाति, धर्म या अन्य भेदभाव के सामाजिक न्याय प्राप्त हो सके ।
(7) स्थानीय संस्थाओं की प्रभावशाली सहभागिता – स्थानीय संस्थाओं को सुदृढ़ता तथा प्रभावशाली ढंग से सहभागिता के लिए यह अभियान प्रोत्साहित करता है। पंचायती राज संस्थाओं, ग्रामीण एवं शहरी स्तर पर विकास समितियाँ विद्यालय प्रबन्धकों, अभिभावक-शिक्षक संस्था, जनजातीय स्वायत्त परिषदें एवं अन्य स्थानीय स्तर की समितियों की सहभागिता को यह अभियान प्राथमिकता देता है ।
सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य – एक निश्चित समयावधि के अन्तर्गत प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है। सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य निम्नलिखित हैं—
(1) प्रारम्भिक शिक्षा – सर्व शिक्षा अभियान का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य देश के 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध करवाना है। 86वें संशोधन के द्वारा भी 6-14 वर्ष वाले बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य बना दिया गया है ।
(2) मूल्य आधारित शिक्षा – सच्चाई, मित्रता, भ्रातृत्व, अनुशासन एवं आध्यात्मिक चिन्तन आदि के विकास में शिक्षा की प्रभावशाली भूमिका होती है इसलिए सर्व शिक्षा अभियान में मूल्य आधारित शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। बच्चों के जीवन पर इन नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे के चारित्रिक निर्माण में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(3) प्राकृतिक वातावरण – सर्व शिक्षा अभियान का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बच्चों को प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा प्रदान करना है। बालक प्राकृतिक वातावरण में सबसे प्रभावी ढंग से सीखता है और उसका सर्वांगीण विकास प्राकृतिक वातावरण में ही उचित ढंग से हो पाता है।
(4) सामाजिक क्षेत्रीय एवं लैंगिक असमानता के बीच कड़ी – सर्व शिक्षा अभियान का एक प्रमुख लक्ष्य बच्चों में सामाजिक, क्षेत्रीय एवं लैंगिक असमानता के आधार पर उत्पन्न भेद-भाव को समाप्त करना है।
(5) विद्यालयों में सामुदायिक सहभागिता – संवैधानिक संशोधनों (73वाँ एवं 74वाँ) को लागू करना सर्व शिक्षा का लक्ष्य है जिसके अन्तर्गत सरकार विद्यालयों में सामुदायिक सहभागिता सुनिचित करेगी।
(6) शैश्विक देखभाल को महत्त्व – इस योजना के अन्तर्गत 0-4 वर्ष के बच्चों को शामिल किया गया है क्योंकि सर्व शिक्षा अभियान के तहत यह आवश्यकता महसूस की गई की बालक की प्रारम्भिक शिक्षा से पूर्व उसकी शिशु शिक्षा प्रारम्भ हो जानी चाहिए जिससे बच्चा प्रारम्भिक शिक्षा हेतु तैयार हो सके। इसके लिए अनेक प्रयत्न किए गए हैं, जैसे—बच्चों के विकास एवं देखभाल के लिए स्त्री एवं बाल विकास विभाग का प्रबन्ध किया गया है।
सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य – सर्व शिक्षा अभियान समुदाय द्वारा एक मिशन के रूप में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के प्रावधान द्वारा सभी बच्चों में मानवीय क्षमताओं के उन्नयन के लिए अवसर प्रदान करने का एक प्रयत्न है। सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
(1) सन् 2003 तक प्राथमिक शिक्षा को सर्व-सुलभ बनाना ।
(2) सभी बच्चों (6-14 वर्ष तक) हेतु वर्ष 2005 तक प्रारम्भिक विद्यालय शिक्षा, गारण्टी केन्द्र, वैकल्पिक विद्यालय, “बैंक टू स्कूल” शिविर उपलब्ध कराए गए।
(3) 2007 तक सभी बच्चे 5 वर्ष तक की प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लें।
(4) 2010 तक सभी बच्चे 8 वर्ष की स्कूली शिक्षा पूर्ण कर लें ।
(5) वर्ष 2010 तक सार्वभौमीकरण प्रतिधारण ।
(6) स्त्री पुरुष असमानता तथा सामाजिक वर्ग भेद को 2007 तक प्राथमिक स्तर तथा 2010 तक प्रारम्भिक स्तर पर समाप्त करना ।
(7) जीवन स्तर पर गुणात्मक शिक्षा पर बल दिया जाएगा।
(8) शिक्षा को जीवन के साथ जोड़े जाने के उपाय किए जाएँगे।
(9) वर्ष 2010 तक सभी बच्चों को विद्यालय में बनाए रखना।
(10) प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना ।
सर्व शिक्षा अभियान के घटक निम्न हैं—
(1) शिक्षक – विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति सम्बन्धी शैक्षिक सुविधाएँ निश्चित करने का कार्य सर्व शिक्षा अभियान करता है। इस अभियान के अनुसार प्रत्येक प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय को 40 छात्रों पर एक शिक्षक की नियुक्ति की जाएगी। प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक जबकि उच्च प्राथमिक की प्रत्येक कक्षा के लिए एक शिक्षक होगा।
(2) शिक्षण-अधिगम सामग्री – प्राथमिक स्तर पर शिक्षणअधिगम को प्रभावशाली बनाने हेतु प्रत्येक विद्यालय को शिक्षण एवं अधिगम सामग्री खरीदने के लिए ₹10,000 प्रति विद्यालय व उच्च • प्राथमिक स्तर के लिए ₹50,000 का अनुदान दिया जाएगा। इस अनुदान को व्यय करने का उत्तरदायित्व ग्रामीण शिक्षा समिति तथा विद्यालयों की प्रबन्धन समिति पर होगा। इस सामग्री में छात्रों के प्रयोग में आने वाली सामग्री सम्मिलित है क्योंकि इससे उनका अधिगम और भी प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
(3) विद्यालयी सुविधाएँ – आवासीय क्षेत्रों में एक किलोमीटर के क्षेत्र में विद्यालय होंगे। नए विद्यालयों की स्थापना राज्य सरकार के नियमानुसार होगी जबकि पिछड़े क्षेत्रों अथवा जहाँ शिक्षा नहीं पहुँच रही वहाँ ई.जी.एस. (Education Guarantee Scheme) केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए। बालकों की संख्या को ध्यान में रखते हुए दो प्राथमिक विद्यालयों के लिए एक उच्च प्राथमिक विद्यालय (Middle School) की स्थापना की जा सकती है।
(4) निःशुल्क पुस्तकें – सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के बालकों, विकलांग तथा अयोग्य बालकों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें प्रदान की जाएगी। इस अच्छे कार्य में राज्य सरकार भी अपना पूर्ण सहयोग दे रही है। सर्व शिक्षा अभियान इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न कर रहा है।
(5) कक्षा-कक्ष की स्थापना – सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत सभी प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम दो हवादार कमरे होने चाहिए. साथ ही एक बरामदा भी होना चाहिए। इस अभियान के अनुसार प्रत्येक विद्यालय में ऐसे अच्छे कमरों की व्यवस्था आवश्यक रूप से हो जिससे बालकों को किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े साथ ही साथ विकलांग एवं अयोग्य बालकों की आवश्यकताओं के आधार पर कक्षाकक्ष में साधन उपलब्ध हों ।
सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत किए जा रहे कार्य – सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत निम्न कार्य किए जा रहे हैं—
(1) पिछड़े बालकों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
(2) अनुसूचित जाति, जनजाति तथा दुर्गम स्थानों पर रहने वाले बालकों की प्राथमिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
(3) विद्यालयों की अधिसंरचना में सुधार किया जा रहा है।
(4) प्राथमिक विद्यालयों तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों की उचित संख्या में स्थापना की जा रही है ।
(5) प्रवेश बढ़ाने के लिए निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें, निःशुल्क यूनीफार्म तथा निःशुल्क आहार की व्यवस्था की जा रही है । है
(6) बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था पर विशेष बल दिया रहा है।
(7) विकलांग छात्रों की शिक्षा व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है।
(8) योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है ।
(9) छात्रों को विद्यालयों में रोकने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है।
(10) स्कूलों के निरीक्षण की व्यवस्था की जा रही है ।
(11) विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा की भी व्यवस्था की जा रही है।
सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम की मुख्य कार्य नीतियाँ इस प्रकार हैं—
(1) संस्थागत सुधार – सर्व शिक्षा अभियान के भाग के रूप में केन्द्र व राज्य सरकार प्राथमिक शिक्षा प्रदान की क्षमता को सुधारने के लिए प्रयास करेंगी। राज्यों को अपनी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का विभिन्न दृष्टियों से वस्तुनिष्ठ ढंग से मूल्यांकन करना होगा, ताकि आवश्यक सुधार लाए जा सके। अनेक राज्यों ने इस दिशा में आवश्यक कदम उठाए हैं।
(2) अध्यापकों की भूमिका – सर्व शिक्षा अभियान अध्यापकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए इस बात पर बल देता है कि उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाए |
(3) जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजनाएँ – इस अभियान की कार्य संरचना के अनुसार प्रत्येक जिला एक जिला प्रारम्भिक शिक्षा योजना तैयार करेगा जो संकेन्द्रित व समग्र दृष्टिकोण से युक्त प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में किए गए सभी निवेशों के दर्शाएगा।
(4) विशिष्ट समूहों पर ध्यान – विशेष समूहों जैसे अनुसूचित जाति, जनजाति, धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों, विकलांगों व अन्य वंचित वर्ग के बच्चों की शैक्षिक सहभागिता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
(5) शैक्षिक प्रशासन की मुख्य धारा में सुधार – प्रभावशाली विधियाँ अपनाकर शैक्षिक प्रशासन की मुख्य धारा में सुधार पर ध्यान देने की बात कही गई है ।
(6) निरन्तर वित्तीय पोषण – सर्व शिक्षा अभियान के लिए इसका निरंतर वित्तीय पोषण आवश्यक है। इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहभागिता अपेक्षित है।
(7) सामुदायिक स्वामित्व – इस कार्यक्रम के लिए विकेन्द्रीकरण के माध्यम से सामुदायिक स्वामित्व आवश्यक है। यह कहा गया है कि महिला समूह, ग्राम शिक्षा समिति के सदस्यों व पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों को शामिल करके इस कार्यक्रम को बढ़ाया जाएगा।
(8) परियोजना पूर्व चरण – सर्व शिक्षा अभियान द्वारा देशभर में योजनाबद्ध तरीके से परियोजना पूर्व चरण आरम्भ किया जाएगा।
(9) गुणवत्ता पर बल – यह अभियान पाठ्यक्रम में सुधार लाकर तथा बाल केन्द्रित विधियों को अपनाकर प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा को प्रासंगिक व उपयोगी बनाने पर बल देता है।
(10) बालिका शिक्षा – लड़कियाँ विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति की लड़कियों की शिक्षा इस अभियान का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होगा ।
(11) संस्थागत क्षमता निर्माण – इस अभियान द्वारा नीपा, राष्ट्र शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद्, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् जैसी राष्ट्रीय व राज्य स्तर की संस्थाओं के लिए क्षमता निर्माण की अहम् भूमिका की कल्पना की गई है। यह कहा गया है कि गुणवत्ता में सुधार के लिए विशेषज्ञों के स्थाई सहयोग वाली प्रणाली की आवश्यकता है।
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