सहकारी अधिगम क्या है ? सहकारी अधिगम के विभिन्न तत्त्वों की विवेचना कीजिए। वर्तमान शैक्षिक परिस्थितियों में सहकारी अधिगम की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
सहकारी अधिगम क्या है ? सहकारी अधिगम के विभिन्न तत्त्वों की विवेचना कीजिए। वर्तमान शैक्षिक परिस्थितियों में सहकारी अधिगम की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर— सहकारी अधिगम (Co-operative Learning)– सहकारी अधिगम कक्षा की क्रियाओं के संचालन या संगठन का एक उपागम है। ये क्रियाएँ शैक्षणिक और सामाजिक अधिगम अनुभवों के रूप में हो सकती है। विद्यार्थियों को दो समूहों में संयुक्त रूप से कार्य करना चाहिए। इसमें हर समूह की सफलता के साथ ही हर व्यक्ति की सफलता होती है। सहकारिता संयुक्त लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इकट्ठे कार्य करना है। सहकारी क्रियाओं में व्यक्ति ऐसे उत्पादन की अपेक्षा करता है जिससे उसे स्वयं को भी तथा समूह के सभी लक्ष्यों को लाभ पहुँचाता है। “
सहकारी अधिगम छोटे समूहों का अनुदेशात्मक उपयोग है ताकि वे विद्यार्थी अपने स्वयं का और दूसरों की अधिगम अधिकतम हो जाए। इसके अन्तर्गत कक्षा के सदस्यों को छोटे समूहों में संगठित कर दिया जाता है। यह सब अध्यापक से निर्देश मिलने के बाद किया जाता है। इसके पश्चात् वे सभी उस कार्य को तब तक करते हैं जब तक समूह के सभी सदस्य उस कार्य को सफलतापूर्वक समझ नहीं लेते और उसे पूरा नहीं कर लेते । सहकारी प्रयासों के अन्तर्गत सभी समूह सदस्यों की इसमें भागीदारी होती है तथा समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे के प्रयासों से लाभ उठाते हैं। सभी समूह सदस्यों का साझा भाग्य होता है ।
सहकारी अधिगम परिस्थिति में लक्ष्य प्राप्ति के लिए विद्यार्थियों में सकारात्मक, अन्तर्निभरता होती है तथा विद्यार्थी यह धारणा बनाते हैं कि वे अपने अधिगम लक्ष्य तक तभी पहुँच सकते हैं यदि अन्य विद्यार्थी भी अपने अधिगम समूह में अपने अधिगम लक्ष्यों तक पहुँचे । अनुसंधान से यह स्पष्ट हुआ है कि सहकारी अधिगम से (1) उच्च उपलब्धि और अधिक उत्पादकता होती है। (2) अधिक ध्यान रखने वाले और सहायक सम्बन्ध स्थापित होते हैं। (3) अधिक मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य, सामाजिक दक्षता तथा आत्म-सम्मान उत्पन्न होता है। इस प्रकार सहकारिता के सकारात्मक प्रभावों से सकारात्मक अधिगम शिक्षकों का सबसे मूल्यवान उपकरण बन चुका है।
सहकारिता के आवश्यक तत्त्व या घटक – विद्यार्थियों को एक समूह में रखकर इकट्ठे काम करने के लिए कहना सहकारी अधिगम के लिए पर्याप्त नहीं होगा। समूह में बैठने से प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। पाठों की रचना तथा विद्यार्थियों का सहकारी रूप से कार्य करने के लिए उन घटकों की समझ होनी चाहिए जो कार्य को सहकारी बनाते हैं । सहकारिता या सहयोग के आवश्यक घटक आवश्यक को निम्न कार्यों में सहायता प्रदान करते हैं—
(1) वर्तमान पाठों, पाठ्यक्रमों और कोर्स आदि की सहकारी रूप से संरचना करना।
(2) सहकारी अधिगम पाठों को तैयार करना ताकि पाठ्यक्रम के अनुदेशनात्मक परिस्थितियों का विषयों की ओर विद्यार्थियों को पूरा किया जा सके।
(3) उन विद्यार्थियों की समस्याओं का निदान करना जिन्हें इकट्ठे जो कार्य करने में उन्हें महसूस होती है तथा विद्यार्थियों के अधिगम समूहों की प्रभावशीलता को बढ़ाने में हस्तक्षेप करना ।
इन आवश्यक घटकों का सामूहिक अधिगम परिस्थितियों में उचित प्रयोग करने से सहकारी अधिगम के प्रयास दीर्घकालीन सफलता के लिए सहायक होते हैं। सहकारिता के आवश्यक घटक निम्नलिखित हैं—
(1) सकारात्मक अन्तः निर्भरता – सकारात्मक अन्त: निर्भरता से अभिप्राय उस सोच से है जब समूह के सदस्य यह सोचने लगते हैं कि वे सभी एक-दूसरे से इस प्रकार जुड़े हुए हैं कि कोई भी व्यक्ति हर किसी की सफलता के बिना सफल नहीं होगा। अतः समूह के लक्ष्य और कार्य इस प्रकार के डिजाइन किए जाने चाहिए और विद्यार्थियों को सूचित करना चाहिए कि वे इकट्ठे ही डूबेंगे और इकट्ठे ही तैरेगे। सकारात्मक अन्तः निर्भरता के अन्तर्गत — (1) समूह के हर सदस्य के प्रयास समूह की सफलता के लिए वांछित है। (2) समूह के हर सदस्य का अपने उत्तरदायित्वों और भूमिका के कारण विशेष योगदान होता है। इन भूमिकाओं और उत्तरदायित्वों का निभाना सहकारी-अधिगम के हृदय के समान है। यदि सकारात्मक अन्तः निर्भरता नहीं है तो सहकारिता भी नहीं है ।
(2) प्रोत्साहन अन्तः क्रिया – विद्यार्थी वास्तविक कार्य इकट्ठे करना चाहते हैं जिसमें वे साधनों को आपस में बांटकर और सहायता करके, समर्थन प्रोत्साहित करके तथा हर किसी के प्रयास की प्रशंसा करके उनकी सफलता को प्रोत्साहित करते हैं। जब विद्यार्थी हर किसी के अधिगम को प्रोत्साहित करेंगे तभी महत्त्वपूर्ण संज्ञानात्मक क्रियाएँ और अन्वैयक्तिक गतिशीलता उत्पन्न होती है। इसमें सम्मिलित हैमौलिक रूप से समझना कि समस्या समाधान कैसे हो, किसी का ज्ञान दूसरों का ढ़ाना, बोध जाँच, वर्तमान और पूर्व अधिगम को जोड़ना । इन क्रियाओं को समूह कार्य-निर्देशों और प्रक्रियाओं में संरचित किया जा सकता है। ऐसा करने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि सहकारी अधिगम शैक्षिक प्रणाली और व्यक्तिगत सहायक प्रणाली होते हैं ।
(3) वैयक्तिक और सामूहिक जवाबदेही – सहकारी पाठों में दो प्रकार की जवाबदेही अवश्यक हो । समूह की लक्ष्य अर्जित करने के प्रति जवाबदेही अवश्य हो तथा हर सदस्य को कार्य में अपने हिस्से के योगदान के प्रति जवाबदेही अवश्य हो । व्यक्तिगत जवाबदेही तब होती है जब हर व्यक्ति के निष्पादन का मूल्यांकन किया जाता है, ताकि यह तय किया जा सके कि किसे अधिगम में और सहायता, समर्थन और प्रोत्साहन की आवश्यकता है। सहकारी अधिगम समूह का उद्देश्य प्रत्येक सदस्य को अधिक मजबूत बनाना है। विद्यार्थी एक साथ सीखते हैं। ताकि वे अधिक वैयक्तिक क्षमता अर्जित कर सकें। इस प्रकार वैयक्तिक जवाबदेही का अर्थ हुआ- प्रत्येक समूह सदस्य सीखे हुए शैक्षिक अपेक्षाओं और सामाजिक लक्ष्यों के प्रदर्शन के योग्य बनाने के लिए उत्तरदायी है।
(4) वांछित अन्तः वैयक्तिक और लघू समूहों कौशलों का शिक्षण – सहकारी अधिगम प्रतिस्पर्धातमक या वैयक्तिक अधिगम की अपेक्षा अधिक जटिल है क्योंकि विद्यार्थियों को एक साथ शैक्षिक तथा विषय-वस्तु के अधिगम और टीम कार्य अर्थात् समूह के रूप में प्रभावशाली ढंग से कार्य करने में व्यस्त करना पड़ता है। जब सहकारी पाठों का प्रयोग किया जाता है तब सामाजिक कौशल किसी जादू के सामने नहीं आते। बल्कि विद्यार्थी को सामाजिक कौशल सीखने पड़ते हैं। नेतृत्व, निर्णय लेना, विश्वास पैदा करना, सम्प्रेषण, द्वन्द्व प्रबन्धन कौशल विद्यार्थी को शैक्षिक कार्य और टीम कार्य सफलतापूर्वक करने के योग्य बनाते हैं।
(5) सामूहिक प्रोसेसिंग – सामूहिक प्रोसेसिंग तब होती है जब समूह सदस्य इस बात पर बहस करते हैं कि वे अपने लक्ष्य किस प्रकार अर्जित कर रहे हैं और अपने प्रभावी कार्यकारी सम्बन्ध किस प्रकार बनाए रखते हैं। समूहों का यह बहस करना आवश्यक होता है कि सदस्यों को कौन-सी क्रियाएँ सहायक और असहायक हैं तथा इस पर निर्णय लिया जाता है कि किस व्यवहार को जारी रखा जाए और किसे बदला जाए। अधिगम प्रक्रियाओं में निरन्तर सुधार तभी होता है। जब इस बात का ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया जाता है कि वे सदस्य इकट्ठे कार्य कैसे कर रहे हैं तथा यह निर्धारित किया जाता है कि समूह प्रभावशीलता · को कैसे बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार प्रोसेसिंग वह है वह विद्यार्थी समूह के रूप में अपने प्रयासों का मूल्यांकन करते हैं और अपने सामाजिक कौशलों में सुधार के क्षेत्रों को निश्चित करते हैं ।
सहकारी अधिगम के लाभ-सहकारी अधिगम के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं—
(1) सहकारी अधिगम में चिन्तन एवं तर्क के माध्यम से छात्रों द्वारा अनेक प्रकार की शैक्षिक समस्याओं का समाधान होता है। परिणामस्वरूप स्वाभाविक रूप से छात्रों में तर्क एवं चिन्तन का विकास होता है ।
(2) इसके माध्यम से छात्रों द्वारा एक ही विषय पर अधिक से अधिक सूचनाओं का संकलन किया जाता है तथा सार रूप में एक-दूसरे से अनेक प्रकार की महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त की जाती है ।
(3) इस प्रक्रिया में छात्रों को एक-दूसरे के साथ बैठकर एक ही विषय पर विचार विश्लेषण किया जाता है, जिससे सभी छात्र एक निश्चित, सही एवं सारगर्भित तथ्य पर पहुँच जाते हैं। इससे अधिगम स्तर में व्यापक वृद्धि होती है ।
(4) सहकारी अधिगम में छात्रों के द्वारा ही एक-दूसरे की शैक्षिक एवं अशैक्षिक क्षेत्रों में सहायता प्रदान की जाती है ।
(5) छात्रों में सहकारी अधिगम के माध्यम से आत्मगौरव एवं आत्मसम्मान की भावना विकसित होती है क्योंकि इसमें अनेक अवसरों पर छात्रों द्वारा स्वयं एक-दूसरे को ज्ञान प्रदान किया जाता है।
(6) इस प्रकार के अधिगम में छात्रों द्वारा एक-दूसरे पर कार्य अन्तर्निर्भरता तथा पुरस्कार अन्तः निर्भरता का प्रभाव देखा जाता है, जिससे छात्र प्रत्येक स्थिति में अपने समूह को अभिवृद्धि को विकसित करना चाहता है। जिससे सकारात्मक वातावरण का निर्माण सम्भव होता है ।
(7) सहकारी अधिगम के माध्यम से शैक्षिक वातावरण का निर्माण सम्भव होता है क्योंकि इसमें प्रत्येक छात्र को एक-दूसरे के कार्य से पृथक् रूप में कार्य करने के लिये दिया जाता है।
(8) इसमें छात्रों को सामूहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से कार्य करने के अवसर प्राप्त होते हैं।
(9) सहकारी अधिगम के अन्तर्गत विद्यालयी व्यवस्था में छात्रों की रुचि विकसित होती है क्योंकि इसमें छात्रों को कार्यों की पूर्ण एवं लोकतांत्रिक वातावरण मिलता है।
(10) इसमें छात्रों में संवेगात्मक स्थिरता का विकास होता है क्योंकि इसमें छात्र एक-दूसरे की भावना को समझते हैं तथा एक-दूसरे के अनुरूप कार्य करते हैं।
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