सहयोगी अनुशिक्षण में अनुशिक्षक द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

सहयोगी अनुशिक्षण में अनुशिक्षक द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर— अनुशिक्षण की प्रक्रियाएँ – अनुशिक्षक को अपनी अनुशिक्षण सम्बन्धी गतिविधियों को आरम्भ करने से पहले अनुशिक्षण की विभिन्न प्रक्रियाओं के बारे में जान लेना चाहिए। मुख्य रूप से इस विषय में तीन प्रक्रियाओं को अपनाया जा सकता है —
(1) देखकर करने की प्रक्रिया
(2) परीक्षण शिक्षण परीक्षण प्रक्रिया
(3) युग्म – शिक्षण प्रक्रिया।
(1) देखकर करने की गतिविधि – यह एक नियमित प्रक्रिया है जो कार्य के प्रदर्शन से जुड़ी है जिसके बाद बालक को वह कार्य स्वयं करना होता है। यह पूर्णतया स्पष्ट मॉडलिंग प्रक्रिया है जिसके द्वारा लगभग सभी विद्यार्थियों को सीखने में कोई परेशानी नहीं होती। अनुशिक्षक को पहला सिद्धान्त जो लागू करना चाहिए वह है कि उन्हें छोटे चरण में पढ़ाना चाहिए और प्रदर्शन कुछ इस प्रकार से करना चाहिए, जिससे कि बालक सभी चरणों को आपस में जोड़ सके। दूसरा अहम् कार्य अनुशिक्षक द्वारा यह सुनिश्चित करना है कि बालक हर चरण के सम्पूर्ण होते ही कार्य करे।
(2) परीक्षण शिक्षण परीक्षण प्रक्रिया – इसमें तीन चरण शामिल हैं। सबसे पहले अनुशिक्षक यह परीक्षण करता है कि क्या विद्यार्थी आवश्यक कार्य को कर सकता है या नहीं। अगर विद्यार्थी असफल होता है तब कार्य का विश्लेषण कर यह जानने का प्रयत्न किया जाता है कि उस कार्य का कौनसा पहलू विद्यार्थी के लिए कठिनाई का कारण है। दूसरा कदम निर्देशनात्मक चरण होता है। यह ठीक वैसा ही चरण होता है जो देखकर करने वाली क्रिया में होता है। तृतीय चरण के दौरान अनुशिक्षित का परीक्षण किया जाता है कि क्या समस्या का निदान हो गया है। अगर नहीं तो विद्यार्थियों की समस्या को फिर आँका जाता है और उसे परीक्षण से गुजरना पड़ता है और उसे फिर से निर्देशनात्मक चरण से होना पड़ता है।
(3) युग्म शिक्षण प्रक्रिया – इसमें अनुशिक्षक एवं विद्यार्थी सम्मिलित होते हैं। अनुशिक्षक सर्वप्रथम दिये गए कार्य को करता है और फिर अनुशिक्षित उस कार्य को करता है। इसके बाद अनुशिक्षक तीसरे कार्य को और फिर यही क्रम आगे भी तब तक चलता रहता है जब तक कि कार्य पूर्ण नहीं हो जाता।
अनुशिक्षक विद्यार्थी को चार प्रकार से कार्य कर निर्देशित कर पाता है—
1. निरीक्षण – सहयोगी अनुशिक्षक बालक के व्यवहार एवं ज्ञान का निरीक्षण करता है।
2. पुनर्बलन – सहयोगी अनुशिक्षक बालक की खामियों की ओर संकेत कर ध्यान करता है।
3. नमूना विधि – वह विशिष्ट त्रुटि को ध्यान में रखते हुए उसे दूर करने का ढंग बताता है।
4. व्याख्या – सम्पूर्ण मद का खुलासा कर उदाहरणों सहित उनकी व्याख्या करता है।
सहयोगी अनुशिक्षण में, हालाँकि अनुशिक्षक निर्देशात्मक कार्यवाही में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह स्पष्ट है कि एक अध्यापक जो आवश्यक रूप से सम्पूर्ण उत्तरदायित्व को वहन करता है, वह विषय एवं
विद्यार्थी का चयन कर उसके लिए सामग्री को एकत्रित, निर्देशित एवं व्याख्या करता है ।
सहयोगी अनुशिक्षण योजना के लिए दिशा-निर्देश—
(1) विद्यार्थी की चिन्हित क्षेत्र में कमियाँ ढूँढ़ना ।
(2) अनुशिक्षक को विद्यार्थी की समस्या के प्रति सुझाव प्रदान
(3) अनुशिक्षक एवं अनुशिक्षित का आपस में मिलान ।
(4) समुचित शिक्षण सामग्री एवं कार्य पुस्तिका तैयार करना ।
(5) अनुशिक्षकों के लिए एक अल्पावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करना ।
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