सामंजस्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए ।
सामंजस्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— सामंजस्य को प्रभावित करने वाले कारक–सामंजस्य या सद्भाव एक अमूर्त सम्बन्ध है जो दो व्यक्तियों, समूहों, परिवारों एवं समाज को जोड़ते हैं। यदि ये सामंजस्य या सद्भाव न हो तो समाज एक संघर्षशील समाज में बदल जाएगा। इस सद्भाव के निर्माण में बहुत से कारक सकारात्मक भूमिका निभाते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित है—
(1) परिवार – सामंजस्य या सद्भाव का प्रत्यक्ष सम्बन्ध परिवार में दिखाई पड़ता है। परिवार सामंजस्य या सद्भाव स्थापित करने का प्रमुख कारक है। प्रत्येक बालक सामंजस्य एवं सद्भावना का गुण अपने परिवार से ही सीखता है। परिवार का आकार, परिवेश तथा जन्मक्रम भी बालक को सद्भाव एवं सामंजस्य स्थापित करने जैसा गुण सिखाता है। परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने पर संसाधनों की कमी अवश्यम्भावी है। ऐसी स्थिति में बालक परिवार में रहकर सामंजस्य करना सीखता है। इस प्रकार परिवार द्वारा बालक को प्रेम, सेवा, सद्भाव, एवं सामंजस्य की शिक्षा दी जाती है जो कि सामाजिक रूप से मानवीय सम्बन्धों को निभाने में सहायक होती है।
(2) विद्यालय – परिवार के बाद सामंजस्य का दूसरा प्रमुख निर्धारक कारक विद्यालय है। जब बालक विद्यालयी परिवेश में प्रविष्ट होता है तो उसका सामाजिक परिवेश विस्तृत हो जाता है। परिवार के अलावा अब वह विद्यालय में शिक्षक एवं मित्रों के साथ सामंजस्य बनाता है एवं उनके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि जो बच्चे स्वयं को शैक्षिक दृष्टि से अच्छा समझते हैं, उन बच्चों में सामंजस्य बनाने की क्षमता भी अधिक होती है। इस प्रकार बच्चे में सद्भाव विकसित करने में विद्यालय एवं साथी समूह का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है ।
(3) पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम–पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम भी सामंजस्य को प्रभावित करने का प्रमुख कारक है। शिक्षक पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम में ऐसा सामंजस्य बनाए कि छात्र को समझने में कोई समस्या न हो । पाठ्यचर्या में क्या पढ़ाना है यह निहित होना चाहिए तथा पाठ्यक्रम में कैसे पढ़ानां है आधार होना चाहिए इस प्रकार पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या का सामंजस्य भी बालक के विकास में सहायक होता है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना होता है इसलिए पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम का भी मुख्य उद्देश्य सर्वांगीण विकास होना चाहिए। यदि पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम एवं विषयों की विषयवस्तु में सामंजस्य रहता है तो बालकों में भी सद्भाव एवं सामंजस्य का विकास अनौपचारिक रूप से होता है। .
(4) शिक्षक का व्यवहार—छात्रों में सामंजस्यपूर्ण व्यवहार विकसित करने के लिये शिक्षकों का स्वयं का व्यवहार भी सामंजस्य पूर्ण होना चाहिए। यदि शिक्षक छात्र के साथ सद्भाव एवं सामंजस्यपूर्ण व्यवहार का समन्वय करता है तो छात्र में स्वयं ही इन गुणों का विकास हो जाता है। शिक्षक का व्यवहार हमेशा सद्भावनायुक्त होना चाहिए क्योंकि छात्रों में अनुकरण की प्रवृत्ति अधिक होती है और वे शिक्षक के व्यवहार एवं रहन-सहन का अनुकरण करते हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि शिक्षक का व्यवहार भी सामंजस्य या सद्भाव को प्रभावित करने का प्रमुख कारक है।
(5) सामाजिक ढाँचा – व्यक्ति तथा समाज का परस्पर गहन सम्बन्ध है। समाज एक से अधिक व्यक्तियों के समुदाय को कहते हैं। स्वभाव से मनुष्य स्वतंत्र रहना चाहता है लेकिन अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। समाज ऐसे व्यक्तियों का समूह है जहाँ परस्पर सहानुभूति, सद्भाव, सहयोग एवं प्रेम जैसे सामाजिक मूल्यों में सामंजस्य रहता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी समाज का भविष्य तभी उज्ज्वल हो सकता है जब उस समाज में प्रेम, सहयोग एवं सद्भाव का सामंजस्य हो । इस प्रकार सामाजिक ढाँचा भी सामंजस्य या सद्भाव को प्रभावित करता है।
(6) विभिन्न प्रकार की सामाजिक संस्थाएँ– विभिन्न प्रकार की संस्थाएँ जैसे—परिवार, विद्यालय, समुदाय एवं समाज आदि भी सामंजस्य को प्रभावित करने का प्रमुख कारक हैं। उपर्युक्त संस्थाओं में आपसी सामंजस्य होना चाहिए। प्रत्येक विद्यालय को छात्र के माता-पिता व उनके अभिभावक के साथ सामंजस्यपूर्ण व्यवहार करना चाहिए इससे छात्रों में अच्छे सामंजस्यपूर्ण गुणों का विकास होता है। इसी प्रकार विद्यालय का समाज एवं समुदाय के साथ भी सामंजस्य होना चाहिए। समाज एवं समुदाय के द्वारा भी विद्यालय का सहयोग किया जाना चाहिए। विभिन्न संस्थाएँ जब आपस में सामंजस्यपूर्ण व्यवहार करती है तो वे विकास एवं सफलता की तरफ अग्रसर होती हैं। उनमें एक दूसरे के प्रति सहयोग एवं सामंजस्य का सद्भाव विकसित होता है। इस प्रकार विभिन्न प्रकार की संस्थाएँ भी सामंजस्य को प्रभावित करने का प्रमुख कारक हैं।
(7) सामाजिक मूल्य एवं आदर्श – सामाजिक मूल्य वे मानवीय आदर्श हैं जिनके आधार पर विभिन्न मानवीय परिस्थितियों तथा विषयों के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाता है। प्रत्येक समाज के मूल्यों में भिन्नता होती है। भारतीय समाज में मूल्य व्यक्ति के लिए कुछ अर्थ रखते हैं तथा व्यक्ति उन्हें अपने सामाजिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण समझते हैं। सामाजिक मूल्य शब्द उन नियमों को परिभाषित करता है जिन्हें मनुष्य जीवन के हित में रखा जाता है। सामाजिक उन्नति एवं कल्याण कारक तत्वों को ही सामाजिक मूल्य की संज्ञा दी जाती है। मानव का परस्पर सामंजस्य एवं सद्भावपूर्ण व्यवहार में सामंजस्य ही आदर्श सामाजिक मूल्यों का विकास होता है। इस प्रकार सामाजिक मूल्य एवं मानव आदर्श भी सामंजस्य एवं सद्भाव को प्रभावित करते हैं ।
(8) सरकार की नीतियाँ – सरकार द्वारा संचालित की जाने वाली विभिन्न नीतियों में भी सामंजस्य होना चाहिए। देश में युवाओं के विकास के लिए सरकार ने पीएमकेवीवाई को लागू करके सम्पूर्ण देश में सभी तरह के कौशल प्रशिक्षण में निरन्तरता, सामंजस्य एवं समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। इसी प्रकार शैक्षिक विकास के लिए भी सरकार द्वारा जो नीतियाँ बनाई जाएँ उनमें सामंजस्य होना चाहिए जिससे सम्पूर्ण देश में वर्ग जाति, समुदाय सभी का सर्वांगीण रूप से शैक्षिक विकास हो सके।
(9) आपसी समझ – आपसी सामंजस्य बनाने के लिए आपसी समझ का होना आवश्यक है। वर्तमान समय में बदलते परिवेश के साथ सभी के विचारों में भी परिवर्तन आ गया है। इसलिए मित्रता, व्यापार, आस-पड़ोस के रिश्ते आदि बनाए रखने के लिए आपसी समझ का . विकसित होना आवश्यक है। आपसी समझ को सहयोग एवं समझदारी से विकसित किया जा सकता है। सामंजस्य को प्रभावित करने में आपसी समझ की भी अहम् भूमिका होती है।
(10) न्याय व्यवस्था – न्याय व्यवस्था भी वैयक्तिक सामंजस्य को प्रभावित करती है। मनुष्य के लिए न्याय व्यवस्था एक समस्या के समान है जिसका उचित प्रयोग एवं अर्थ निकालना कठिन हो गया है।
इसी सम्बन्ध में डी.डी. रैफल ने कहा है कि “भारतीय समाज में न्याय व्यवस्था द्विमुखी है जो एक साथ अलग-अलग चेहरे दिखलाती है। वह वैधानिक भी है तथा नैतिक भी। इसका सम्बन्ध सामाजिक व्यवस्था से है। इसका जितना सम्बन्ध व्यक्तिगत अधिकारों से है उतना ही सामाजिक अधिकारों से भी है। न्याय व्यवस्था रूढ़िवादी होने के साथ-साथ सुधारवादी भी है।” इस प्रकार न्यायिक रूप से भी वैयक्तिक एवं सामाजिक सामंजस्य होना चाहिए। न्याय व्यवस्था एक सद्गुण के रूप में होना चाहिए जो व्यक्ति एवं समाज के बीच सामंजस्य स्थापित करने में सहायक है।
उपर्युक्त तथ्यों से ये स्पष्ट होता है कि ये वह कारक है जो किसी समाज में सद्भावना एवं सामंजस्य के लिए बहुत आवश्यक है। यदि इन कारकों का पालन समाज के लोग करते हैं तो उन्हें आपसी सम्बन्ध विकसित करने में कोई विशेष कठिनाई या समस्या नहीं उत्पन्न होती है।
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