सीखने की कठिनाइयों के समाधान में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।

सीखने की कठिनाइयों के समाधान में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर— अध्यापक की भूमिका – शिक्षा के अतिरिक्त शिक्षक असक्षम व विकलांग विद्यार्थियों की योग्यता का विकास करके उनको अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक कर सकते हैं। एक अध्यापक अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करके विकलांग या अयोग्य छात्रों के जीवन में परिवर्तन ला सकता है। अध्यापक ज्ञान, प्रशिक्षण व उपयुक्त शिक्षण विधियों को अपनाकर अपने उद्देश्य को पूरा / प्राप्त कर सकता है। उसे आम बालकों व विशिष्ट बालकों में समन्वय की भावना विकसित करने के लिए कड़ी का कार्य करना पड़ता है।
एक समावेशिक कक्षा में अध्यापकों से उम्मीद की जाती है कि वे विशिष्ट बच्चों के लिए विद्यालय में ऐसी व्यवस्था करें जिससे सामान्य बच्चों के साथ समायोजन में उन्हें कोई कठिनाई न हो। चाहे कोई बच्चा वाणी बाधित, दृष्टि बाधित, श्रवण बाधित, बाल अपराधी हो, प्रत्येक बच्चे को अधिगम के समान अवसर मिलने चाहिए। जिस बच्चे को विशिष्ट घोषित कर दिया गया हो, उसे विशिष्ट अनुदेशन देना अध्यापक का उत्तरदायित्व है। विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं वाले बच्चे प्रत्येक अध्यापक की जिम्मेदारी हैं क्योंकि समावेशिक परिवेश में शिक्षण एक जटिल कार्य है, इसलिए प्रत्येक अध्यापक को अतिरिक्त समय, प्रशिक्षण, संसाधन एवं समुदाय, अभिभावक का सहयोग मिलना चाहिए। समावेशिक प्रणाली में एक अध्यापक की भूमिका एवं उत्तरदायित्वों को निम्न रूप में लिखा जा सकता है—
(1) बच्चों के कक्षा-कक्ष व्यवहार का निरीक्षण करना ।
(2) बच्चों की शैक्षिक प्रगति हेतु प्रक्रिया में अभिभावकों की सहभागिता ।
(3) बाधित बच्चों के कल्याण के लिए काम कर रहे व्यावसायिकों से सम्पर्क बनाए रखना ।
(4) सभी बच्चों की सहभागिता हेतु कक्षा में अधिकतम
गतिविधियों का आयोजन करना ।
(5) वैकल्पिक शैक्षिक तकनीकों का निर्माण करना ।
(6) बच्चों की शक्तियों एवं कमजोरियों को पहचानना ।
(7) सामान्य बच्चों को बाधित बच्चों को सहयोग देने के लिए तैयार करना ।
(8) समुदाय द्वारा आयोजित किये गये कार्यक्रमों में भाग लेना ।
(9) बच्चों में आत्मप्रत्यय का विकास करना ।
(10) बाधित बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना ।
(11) कक्षा-कक्ष गतिविधियों में प्रत्येक बच्चे को प्रतिभागिता के अवसर प्रदान करना ।
(12) बच्चों में सकारात्मक सोच का विकास करना ।.
(13) बाधित बच्चों की समस्याओं को समझने में अभिभावकों, शिक्षाकर्मियों की सहायता करना ।
(14) प्रत्येक बच्चे के लिए आवश्यकतानुसार एवं योग्यतानुसार पाठ्यक्रम में गृहकार्य आदि का निर्माण करना ।
(15) बच्चों को उचित परामर्श देना।
(16) बच्चों को आधुनिक उपकरणों के प्रयोग के लिए प्रशिक्षित
(17) बच्चे को उसकी योग्यताओं को विकसित करने हेतु सहायता प्रदान करना ।
(18) बच्चों को मानवीय विभिन्नताओं को समझना एवं स्वीकार करना सिखाना।
(19) बच्चे के शारीरिक, संज्ञानात्मक भावनात्मक एवं सर्वांगीण विकास के लिए उचित अवसर प्रदान करना।
(20) ‘शून्य अस्वीकृति नीति’ के सिद्धान्त के तहत, प्रत्येक बच्चे का कक्षा-कक्ष में स्वागत करना ।
(21) बच्चों में आत्मविश्वास जगाना एवं उन्हें जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करना।
(22) बाधित बच्चों को भावनात्मक, शारीरिक, मानसिक एवं शैक्षिक रूप से सशक्त बनाना ।
(23) अभिभावकों को गृह-अधिगम को बढ़ावा देने की तकनीकें बताना ।
(24) बाधित बच्चों के प्रभावशाली अधिगम हेतु पाठ्यक्रम का निर्माण करना ।
(25) इष्टतम उपलब्धि के लिए बाधित बच्चों को अभिप्रेरित करना।
(26) बाधित बच्चों हेतु उपयुक्त उद्देश्य निर्माण |
(27) बाधित बच्चों की निरन्तर मूल्यांकन द्वारा प्रगति सुनिश्चित करना ।
(28) सामान्य एवं बाधित दोनों प्रकार के बच्चों को समान पाठ्यक्रम उपयोग करने के लिए प्रेरित करना ।
(29) सामान्य एवं बाधित बच्चों के बीच मधुर सम्बन्ध बनाना ।
(30) वैयक्तिक अनुदेशन के लिए उपयुक्त व्यवस्था करना ।
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