स्थिर वैद्युतिकी (Electrostatics)

स्थिर वैद्युतिकी (Electrostatics)

स्थिर वैद्युतिकी (Electrostatics)

विद्युतिकी की वह शाखा जिसमें विरामावस्था में आवेशों का अध्ययन किया जाता है, स्थिर विद्युतिकी (electrostatics) कहलाती है तथा गतिक अवस्था में आवेशों का अध्ययन गतिक विद्युतिकी (electrodynamics) या घर्षण विद्युतिकी (frictional electricity) कहलाती है।
वैद्युत आवेश (Electric Charge)
आवेश द्रव्य का एक मूल गुण है इसे द्रव्य से अलग करना असम्भव है। यदि किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु से रगड़ने पर उसमें अन्य पदार्थों को आकर्षित करने का गुण आ जाता है, तो हम कहते हैं कि वह वस्तु आवेशित हो गई है। यह एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक कूलॉम होता है।
आवेशों के प्रकार (Types of Charges)
आवेश निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं
किसी पिण्ड अथवा कण पर पदार्थ में इलेक्ट्रॉन की कमी को धनावेश (positive charge) कहते हैं तथा किसी पिण्ड अथवा कण पर पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता को ऋणावेश (negative charge) कहते हैं। आवेश सदैव आवेशित वस्तु की सतह पर रहता है। एक वस्तु भिन्न-भिन्न प्रकार (जैसे घर्षण तथा प्रेरण द्वारा) से आवेशित हो सकती है। प्रोटॉन पर धनात्मक आवेश (+ e) तथा न्यूट्रॉन पर ऋणात्मक आवेश (- e) होता है जहाँ e = ± 1.6 × 10-19 कूलॉम होता है।
वैद्युत आवेशों के गुण (Properties of Electric Charges)
(i) सजातीय आवेशों के बीच प्रतिकर्षण बल तथा विजातीय आवेशों के बीच आकर्षण बल कार्य करता है।
(ii) किसी वस्तु पर कुल आवेश उसे दिए गए अलग-अलग आवेशों के बीजगणितीय योग के बराबर होता है। उदाहरण यदि एक वस्तु पर विभिन्न आवेश जैसे + 2q, + 4q, – 3q, – q हैं, तब उस वस्तु पर कुल आवेश + 2q होता है। –
(iii) आवेश सदैव द्रव्यमान से सम्बद्ध रहता है, अर्थात् आवेश द्रव्यमानरहित नहीं हो सकता है, जबकि द्रव्यमान आवेश रहित हो सकता है।
(iv) किसी वस्तु को घर्षण, प्रेरण अथवा चालन (friction, induction or conduction) द्वारा आवेशित किया जा सकता है।
(v) आवेश हल्की उदासीन वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करता है।
(vi) वेग में परिवर्तन के साथ आवेश को नहीं बदला जा सकता।
(vii) वैद्युतीकरण को घर्षण द्वारा इलेक्ट्रॉनों के हस्तान्तरण के आधार पर समझाया जा सकता है, अतः चालक की सतह पर आवेश सदैव विपरीत होता है ।
प्रेरण द्वारा आवेशन (Charging by Induction)
प्रेरण द्वारा आवेशन में, यदि एक आवेशित वस्तु को किसी अनावेशित वस्तु के समीप लाएँ तो अनावेशित वस्तु के पास वाली सतह पर विपरीत प्रकृति का आवेश एवं दूर वाली सतह पर समान प्रकृति का आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रक्रम में, जब तक आवेशित वस्तुओं को सम्पर्क में नहीं लाया जाता है। तब तक वे अपना आवेश कम नहीं करती हैं। अतः हम कह सकते हैं कि जब एक आवेशित तथा अनावेशित वस्तु (जोकि सम्पर्क में नहीं है) आवेश के प्रभाव के अन्तर्गत एक-दूसरे से पुनः व्यवस्थित किये जाते हैं, तो यह घटना प्रेरण का आवेशन कहलाती है।
वैद्युत आवेश का क्वाण्टम (Quantization of Electric Charge) 
आवेशित वस्तु का कुछ निश्चित मान होता है। वस्तु के इस मान को आवेशों का क्वाण्टम कहते हैं। अतः वस्तु पर आवेश सदैव एक इलेक्ट्रॉन के आवेश का पूर्णांक गुणांक (integral multiple) होता है।
आवेशों का संरक्षण (Conservation of Electric Charge)
इस प्रक्रम में, आवेश न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता है। इसका केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानान्तरण सम्भव है।
खोखले चालक के कारण वैद्युत क्षेत्र (Electric Field due to a Hollow Conductor)
किसी खोखले चालक के भीतर वैद्युत क्षेत्र शून्य होता है। यदि ऐसे चालक को आवेशित किया जाए, तो सम्पूर्ण आवेश उसके बाहरी पृष्ठ पर ही रहता है। अतः खोखला गोला एक वैद्युत परिरक्षक का कार्य करता है। यही कारण है कि कार से यात्रा करते समय यदि तेज वर्षा होने लगे और बिजली गिरने की सम्भावना हो, तो सुरक्षा का उपाय यही है कि कार की खिड़कियाँ पूर्णतः बन्द करके अन्दर ही बैठा जाए, क्योंकि यदि बिजली कार पर गिरती है तो कोई हानि नहीं होगी। क्योंकि वैद्युत आवेश कार के बाहरी सतह पर ही रहेगा।
वैद्युत क्षेत्र के गुण (Properties of Electric Field)
(i) आवेश के विभिन्न स्तरों के लिए, सभी स्थानों में वैद्युत क्षेत्र के विभिन्न मान प्रत्येक स्थान पर त्रिविमीय क्षेत्र में प्राप्त होते हैं।
(ii) धनात्मक आवेश के लिए, वैद्युत सदिश क्षेत्र सीधे त्रिज्यांमक (किरणों के समान फैके हुए) के रूप में धनात्मक आवेश से दूर जाते हैं।
(iii) ऋणात्मक आवेश के लिए, वैद्युत सदिश क्षेत्र सीधे त्रिज्यांमक के रूप में ऋणात्मक आवेश की ओर आते हैं।
वैद्युत बल रेखाएँ (Electric Lines of Force)
वैद्युत बल-रेखा वैद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह काल्पनिक, निष्कोण वक्र है जिस पर एक स्वतन्त्र व पृथक्कृत (isolated) एकांक धन आवेश गति करता है यदि वह गति के लिए स्वतन्त्र है। हम किसी वैद्युत क्षेत्र को वैद्युत बल रेखाओं द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं। वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर इन रेखाओं के लम्बवत् स्थित तल में एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या, उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है। अतः जिस स्थान पर वैद्युत बल रेखाएँ पास-पास होती हैं वहाँ वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है।
वैद्युत बल रेखाओं के गुण (Properties of Electric Lines of Force)
(i) वैद्युत बल रेखाएँ धनात्मक आवेश से प्रारम्भ होती हैं तथा ऋणात्मक आवेश पर समाप्त होती हैं तथा एकल आवेश की स्थिति में, ये अनन्त पर समाप्त हो जाते हैं।
(ii) वैद्युत बल रेखा के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा, उस बिन्दु पर परिणामी वैद्युत क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती है।
(iii) दो वैद्युत बल रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती हैं, क्योंकि यदि वे एक-दूसरे को काटती हैं, तो उनके कटान बिन्दु पर दो स्पर्श रेखाएँ खींची जा सकती हैं। जो उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की दो दिशाएँ प्रदर्शित करेगी, जोकि असम्भव है।
(iv) बल रेखाएँ लम्बाई के अनुदिश सिकुड़ने (contraction) की प्रवृत्ति रखती हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है, कि विपरीत आवेशों के मध्य आकर्षण होता है।
(v) बल रेखाएँ रेखीय प्रसार (lateral expansion) अर्थात् लम्बाई के लम्बवत् दिशा में फैलने की प्रवृत्ति रखती हैं, जिससे यह प्रतीत होता है, कि समान आवेशों के बीच प्रतिकर्षण होता है।
वैद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole)
ऐसा निकाय जिसमें दो बराबर, परन्तु विपरीत प्रकार के बिन्दु आवेश +q तथा -q एक-दूसरे से अल्प दूरी 2l पर स्थित हों वैद्युत द्विध्रुव कहलाता है। आवेशों -q वृतथा +q के मध्य बिन्दु को द्विध्रुव का केन्द्र कहते हैं। उदाहरण HCl, H2O, HBr, KI, NH3, आदि।
वैद्युत विभव (Electric Potential)
किसी बिन्दु पर वैद्युत विभव उस कार्य के बराबर होता है, जो वैद्युत क्षेत्र में, किसी परीक्षण धन आवेश को अनन्त से किसी बिन्दु तक लाने में किया जाता है।
इसका SI मात्रक जूल कूलॉम या वोल्ट होता है।
वैद्युत विभव एक अदिश राशि है, जिसे वोल्टमीटर द्वारा मापा जाता है। वैद्युत विभव एक वस्तु के वैद्युतीकरण के परिमाण को दर्शाता है। यह दो वस्तुओं को ( एक-दूसरे के) सम्पर्क में लाने पर आवेश के प्रवाह की दिशा की गणना करता है। किसी वस्तु पर आवेश सदैव उच्च विभव से निम्न विभव की ओर चलता है तथा आवेश का प्रवाह तब तक नहीं रुकता जब तक दोनों वस्तुओं के विभव समान नहीं हो जाते हैं।
वैद्युत विभवान्तर (Electric Potential Difference)
वैद्युत क्षेत्र में, किसी परीक्षण धन आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किए गए कार्य तथा परीक्षण आवेश के अनुपात को उन बिन्दुओं के बीच वैद्युत विभवान्तर केहते हैं। अतः बिन्दु A व B के बीच वैद्युत विभवान्तर
इसका SI मात्रक जूल/कूलॉम होता है।
वैद्युत विभव के गुण (Properties of Electric Potential)
(i) किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच एक कूलॉम आवेश को अनन्त से एक बिन्दु तक लाने में 1 जूल कार्य किया जाता है, तो उन बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट होता है। जोकि वैद्युत क्षेत्र में वैद्युत बल द्वारा बिना किसी त्वरण के लगा है।
(ii) वैद्युत विभव, स्थिर वैद्युत बल पर निर्भर करता है, जोकि अपरिवर्तित बल होते हैं।
(iii) वैद्युत क्षेत्र के बन्द पथ में एक धनात्मक परीक्षण को गति प्रदान करने में कोई कार्य नहीं होता है।
(iv) एक वैद्युत विभवान्तर धनात्मक, ऋणात्मक या शून्य हो सकता है। यह आवेश तथा कार्य के चिह्न तथा परिमाण पर निर्भर करता है।
खोखले चालक के भीतर विभव (Potential Inside a Hollow Conductor)
जब किसी खोखले चालक को आवेशित किया जाता है, तो सम्पूर्ण आवेश चालक के बाहरी पृष्ठ पर चला जाता है, जिससे भीतरी पृष्ठ पर आवेश नहीं रहता, यदि चालक के खोखले भाग का विभव शून्य हो, तो खोखले चालक के भीतर विभव नियत होगा। अर्थात् चालक के भीतर आवेश द्वारा कोई कार्य नहीं किया जाता है, जिससे चालक की सतह पर इसका मान बराबर होता है।
समविभव पृष्ठ (Equipotential Surface )
समविभव पृष्ठ किसी वैद्युत क्षेत्र में स्थित वह पृष्ठ है, जिसके प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत विभव का मान समान होता है। दूसरे शब्दों में, किसी दिए समविभव पृष्ठ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर शून्य होता है। अतः किसी आवेश को समविभव पृष्ठ पर एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य शून्य होता है।
समविभव पृष्ठ के गुण (Properties of Equipotential Surface )
(i) वैद्युत बल रेखाएँ समविभव पृष्ठ पर लम्बवत् होती हैं।
(ii) समविभव पृष्ठ पर वैद्युत आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक लाने में कोई कार्य नहीं करना पड़ता है।
(iii) समविभव पृष्ठ एक-दूसरे को कभी नहीं काटते हैं, क्योंकि यदि वे एक-दूसरे को काटेंगे तो कटान बिन्दु पर खींचे गए दो अभिलम्ब वैद्युत क्षेत्र की दो दिशाओं को प्रदर्शित करेंगे, जोकि असम्भव है।
(iv) सम्विभव पृष्ठ जितने समीप होते हैं, वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता उतनी अधिक होती है। समविभव पृष्ठ पृथक बिन्दु आवेश के कारण गोलाकार होता है, एकसमान वैद्युत क्षेत्र में समविभव पृष्ठ समतलीय होता है तथा रेखीय आवेश के कारण समविभव पृष्ठ बेलनाकार होता है।
आवेशों के निकाय की स्थिर- वैद्युत स्थितिज ऊर्जा (Electrostatic Potential Energy of a System of Charges)
किन्हीं दो अथवा दो से अधिक आवेशों को अनन्त से एक-दूसरे के समीप लाकर निकाय की रचना करने में कृत कार्य उन आवेशों से बने निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। इस ऊर्जा को ही निकाय की स्थिर वैद्युत स्थितिज ऊर्जा कहते हैं ।
माना एक निकाय दो आवेशों q1 तथा q2 से मिलकर बना है जो एक-दूसरे से r दूरी पर निर्वात् अथवा वायु में स्थित है। तब निकाय की स्थितिज ऊर्जा,
                                             
यह एक अदिश राशि है तथा इसका मात्रक जूल होता है।
◆ यदि q1, q2 > 0 तब स्थितिज ऊर्जा धनात्मक होती है इसका अर्थ है कि दोनों आवेशों के चिह्न समान हैं, अर्थात् दोनों आवेश सजातीय हैं। जो एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं, इस दशा में एक-दूसरे के समीप लाने में निकाय को प्रतिकर्षण के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है जिससे निकाय की स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है। यदि इन्हें एक-दूसरे से दूर लेकर जाते हैं तो निकाय से कार्य स्वयं प्राप्त होता है, जिससे निकाय की स्थितिज ऊर्जा घटती है।
◆ यदि q1 > 0, q2 < 0 अथवा q1 < 0, q2 > 0 दोनों ही स्थिति में स्थितिज ऊर्जा ऋणात्मक होती है इसका अर्थ है, दोनों आवेशों के चिह्न विपरीत हैं, अर्थात् आवेश विपरीत प्रकार के (विजातीय) हैं, जो एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं, इस दशा में उन्हें परस्पर समीप लाने में निकाय स्वयं कार्य करता है, अतः स्थितिज ऊर्जा घटती है। यदि इन्हें एक-दूसरे से दूर ले जाएँ तो निकाय पर कार्य करना पड़ता है, जिससे निकाय की स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है।
चालक (Conductors)
जिन धातुओं में वैद्युत आवेश का प्रवाह सुगमतापूर्वक होता है, उन्हें चालक कहते हैं। अधिकतर धातुएँ वैद्युत आवेश की चालक होती हैं। चाँदी, वैद्युत आवेश की सबसे अच्छी चालक होती है चालकों के गुण निम्न प्रकार हैं
(i) चालक के अन्दर स्थिर वैद्युत क्षेत्र शून्य होता है।
(ii) चालकों में परमाणुओं की बाह्य कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन क्षीण वैद्युत बल के कारण मुक्त होकर पूरे पदार्थ में गति करते हैं।
(iii) स्थिर वैद्युत क्षेत्र आवेशित चालक के पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर सामान्य (normal) होता है।
(iv) स्थिर वैद्युत विभव का मान चालक के आयतन तथा इसकी सतह (surface) पर नियत होता है।
(v) चालक का पृष्ठीय घनत्व भिन्न बिन्दुओं पर भिन्न होता है।
(vi) स्थैतिक परिस्थिति में चालक के भीतर कोई आवेश नहीं होता है।
स्थिर वैद्युतिकी परिरक्षण (Electrostatic Shielding)
बाहरी वैद्युत क्षेत्र से निश्चित क्षेत्र की सुरक्षा का प्रक्रम स्थिर वैद्युतिकी परिरक्षण कहलाता है। हम जानते हैं कि एक चालक के अन्दर, वैद्युत क्षेत्र शून्य होता है। ऐसा होने पर खोखले चालक, बाहरी वैद्युत क्षेत्र से सुरक्षित रहते हैं।
अचालक या परावैद्युत (Insulators or Dielectrics)
परावैद्युत विद्युतरोधी पदार्थ वे होते हैं, जो अपने में से विद्युत को प्रवाहित नहीं होने देते, किन्तु विद्युत प्रभाव का प्रदर्शन करते हैं, इनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं। ये विद्युत क्षेत्र में रखे जाने पर ध्रुवित हो जाते हैं जैसे काँच, रबर, प्लास्टिक, लकड़ी, आदि अचालक परावैद्युत कहलाते हैं। परावैद्युत की विद्युत चालकता बहुत कम तथा आदर्श परावैद्युत की चालकता शून्य होती है।
परावैद्युत के प्रकार (Types of Dielectrics)
परावैद्युत दो प्रकार के होते हैं
(i) ध्रुवीय परावैद्युत (Polar Dielectric) विद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में भी प्रत्येक ध्रुवीय अणु में स्थाई द्विध्रुव आघूर्ण p होता है, परन्तु परावैद्युत पदार्थ का परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है, क्योंकि विद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में ध्रुवीय अणु इस प्रकार बिखरे होते हैं कि वे एक-दूसरे के द्विध्रुव आघूर्ण को निरस्त कर देते हैं। विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में ध्रुवीय अणु विद्युत क्षेत्र की दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं जिससे पदार्थ में एक नियत द्विध्रुव आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है जैसे जल, ऐल्कोहॉल, CO2, NH3, HCI, इत्यादि ध्रुवीय अणु परमाणुओं से बने होते हैं।
(ii) अध्रुवीय परावैद्युत (Non-polar Dielectric) अध्रुवीय अणुओं में प्रत्येक अणु का सामान्य अवस्था में द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। जब विद्युत क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो अणु प्रेरित वैद्युत द्विध्रुव बन जाते हैं जैसे N2, O2 बेन्जीन, मीथेन, इत्यादि अध्रुवीय परमाणुओं / अणुओं से बने होते हैं।
परावैद्युत नियतांक (Dielectric Constant)
किसी माध्यम से भरे संधारित्र की धारिता व वायु या निर्वात् वाले संधारित्र की धारिताओं के अनुपात को माध्यम का परावैद्युतांक कहते हैं।
                                                 
K का मान सदैव 1 से अधिक होता है लेकिन निर्वात् के लिए, K का मान 1 होता है।
परावैद्युत सामर्थ्य (Dielectric Strength)
किसी परावैद्युत पदार्थ का वह महत्तम वैद्युत क्षेत्र जिसे कोई परावैद्युत बिना वैद्युत भंजन के सहन कर सकता है, परावैद्युत की सामर्थ्य कहलाती है। वायु की परावैद्युत सामर्थ्य 3×106 वोल्ट/मी होती है।
परावैद्युत का ध्रुवण (Dielectric Polarisation)
जब किसी परावैद्युत पट्टी को विपरीत आवेशयुक्त धातु की दो समान्तर प्लेटों के बीच (वैद्युत क्षेत्र के भीतर) रखा जाता है, तो वैद्युत क्षेत्र के कारण परावैद्युत अणुओं के धनावेश तथा ऋणावेश केन्द्रों पर क्रमशः ऋण प्लेट तथा धन प्लेट की दिशाओं में बल कार्य करने लगता है, जिसके कारण ये केन्द्र एक-दूसरे से पृथक् हो जाते हैं। इस प्रकार अणुओं में, वैद्युत क्षेत्र की दिशा में एक वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण प्रेरित हो जाता है। इस प्रकार जंब बाह्य क्षेत्र में स्थित परावैद्युत में वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है, तो परावैद्युत को ध्रुवित परावैद्युत कहा जाता है तथा यह घटना परावैद्युत का ध्रुवण कहलाती है।
तड़ित चालक (Lightning Conductor)
बिजली के गरजने के द्वारा अत्यधिक वैद्युत आवेशन होता है। यह दो आवेशित बादलों के बीच या आवेशित बादलों व पृथ्वी के बीच होता है। तड़ित चालक का प्रयोग बिजली कड़कने के दौरान भवनों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। तड़ित चालक एक मोटी ताँबे की पट्टी होती है जिसके ऊपरी सिरे पर कई नुकीले सिरे बने होते हैं। इस नुकीले सिरे को भवनों के सबसे ऊपर लगा दिया जाता है तथा दूसरे को ताँबे की पट्टी के साथ जमीन में दबा दिया जाता है। जब आवेशित बादल भवन के ऊपर से गुजरते हैं, तो उनका आवेश तड़ित चालक के द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तथा आवेश भवन को बिना किसी नुकसान के जमीन में स्थानान्तरित कर देता है तथा भवनों की सुरक्षा हो जाती है।
वैद्युत धारिता (Capacitance)
किसी चालक को दिये गये आवेश तथा उसके कारण चालक के विभव में होने वाली वृद्धि के अनुपात को चालक की वैद्युत धारिता कहते हैं। यदि q कूलॉम आवेश देने से किसी चालक के विभव में V वोल्ट की वृद्धि होती है, तो चालक की धारिता      [ C = q/V ]    इसका SI मात्रक कूलॉम/वोल्ट अथवा फैरड होता है।
वैद्युत धारिता का बड़ा मात्रक फैरड तथा छोटे मात्रक माइक्रोफैरड (1µF) तथा पिकोफैरड (pF) होते हैं।
                                            1µF= 1 × 10-6 F तथा pF = 10-12 F
संधारित्र (Capacitor)
संधारित्र एक ऐसी युक्ति प्रबन्ध अथवा समायोजन है जिसके द्वारा, किसी चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना, चालक की धारिता बढ़ाई जाती है तथा चालक पर वैद्युत आवेश एवं ऊर्जा की अधिक मात्राएँ संचित की जाती हैं। संधारित्र को प्रतीक —l l— द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। संधारित्रों के उपयोग आवेश का संचय करने में, ऊर्जा का संचय करने में, वैद्युत उपकरणों में, इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में तथा प्रत्यावर्ती धारा नियन्त्रण करने, आदि में किया जाता है।
संधारित्र की धारिता के गुण (Properties of Capacity of Capacitor)
(i) संधारित्र की धारिता प्लेटों के कुल बाहरी क्षेत्रफल पर निर्भर करती है।
(ii) यह संधारित्र के चारों ओर के माध्यम जैसे परावैद्युत नियतांक पर निर्भर करती है।
(iii) यह माध्यम में लगे दो निकटवर्ती संधारित्रों में से दूसरे संधारित्र के दाब पर निर्भर करती है।
(iv) यह आवेश, विभवान्तर, संधारित्र के आकार तथा यह संधारित्र की सामग्री पर निर्भर नहीं करती है।
संधारित्र के आवेश का क्षरण (Leakage of Charge from a Capacitor)
सूत्र C = q/V दर्शाता है, कि आवेश q के लिए C बड़ा है और V छोटा है अर्थात् संधारित्र कम विभव पर बहुत बड़े आवेश को अपने अन्दर समाहित कर लेता है। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है, क्योंकि अधिक विभवान्तर, एक चालक  के चारों ओर वैद्युत क्षेत्र को बताता है। प्रबल वैद्युत क्षेत्र वायु के आस-पास और प्लेटों द्वारा उत्पन्न विपरीत आवेशों में तेजी लाने के लिए आयनित करता है। इस प्रक्रिया में प्लेट आवेशहीन हो जाती है, अर्थात् संधारित्र के आवेशों में क्षरण अचालकता की कमी के माध्यम में हस्तक्षेप करता है।
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