स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए ।
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए ।
अथवा
शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तारपूर्वक समझाइये ।
उत्तर— स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक— यह एक प्राकृतिक और मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि सभी व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। उनमें शारीरिक, मानसिक, रंग और स्वास्थ्य की दृष्टि से विभिन्नता दिखाई देती है। परन्तु सभी व्यक्तियों का स्वास्थ्य से पूर्ण रूप से जन्म से लेकर मृत्यु तक सम्बन्ध होता है। यदि हम स्वास्थ्य की देखभाल एवं सुरक्षा के विषय में थोड़ा-सा सामान्य ज्ञान भी प्राप्त कर लें तो जीवन बेहतर हो सकता है। स्वास्थ्य मनुष्य की प्राकृतिक स्थिति है। यह उसका जन्म सिद्ध अधिकार है। अच्छा स्वास्थ्य शैशव काल से ही आरम्भ होता है और यह सत्य है कि एक स्वस्थ शिशु एक ही स्वस्थ बालक के रूप में विकसित होता है प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि वह स्वस्थ और आनन्दपूर्ण जीवन व्यतीत करें। स्वास्थ्य जहाँ प्राकृतिक देन है, वहाँ कुछ सीमा तक वह स्वयं के हाथ में भी है। आजकल के वातावरण में व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए भी स्वस्थ नहीं रह सकता। व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनेक कारक प्रभावित करते हैं ये कारक व्यक्तिगत और परिवेश से सम्बन्ध रखते हैं। अतः स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
(अ) स्वयं के कारक – अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने में व्यक्तिगत प्रयास सबसे अधिक प्रभावशाली रहते हैं। व्यक्ति द्वारा अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जिन सावधानियों का पालन नहीं किया जाता और उसका स्वास्थ्य उन कारणों से प्रभावित होता है, उसे हम व्यक्तिगत कारक कहते हैं; जैसे—
(1) खान-पान सम्बन्धी सावधानियाँ ।
(2) सोने-जागने सम्बन्धी नियम ।
(3) समयानुकूल कपड़े पहनने के नियम ।
(4) बीमार होने पर लापरवाही ।
(5) शारीरिक सफाई ।
(6) शारीरिक सामर्थ्य अनुसार कार्य न करना ।
(7) अधिक व्यायाम करना ।
(8) समय पर विश्राम न करना ।
(9) आवेशात्मक भावपूर्ण व्यवहार करना आदि ।
उपर्युक्त सभी ऐसे कारक हैं जो व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यदि व्यक्ति कुछ सावधानियाँ बरतें तो उपर्युक्त कारकों के प्रभावों से बचा जा सकता है। यह सब-कुछ स्वयं के प्रयासों और आदतों पर निर्भर करता है ।
(ब) परिवेश या वातावरणीय कारक – वातावरण या परिवेश सम्बन्धी कारक एक प्रकार से प्राकृतिक कारक है। वातावरणीय या परिवेश सम्बन्धी कारकों से भी स्वास्थ्य को बचाया जा सकता है। वातावरणीय परिवेश सम्बन्धी कारक निम्नलिखित हो सकते हैं
(1) सूर्य या धूप – यह वैज्ञानिक सत्य है कि पौधे सूर्य के प्रकाश से अपना भोजन बनाते हैं। यह बात केवल पौधों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य प्राणियों पर भी लागू होती है। सूर्य के प्रकाश से हमारा शरीर कई प्रकार के उपयोगी तत्त्वों जैसे विटामिन डी आदि ग्रहण करता है । सूर्य का प्रकाश या गर्मी अनेक प्रकार के विषाणुओं का नाश करता है। अनावश्यक नमी को खत्म करके वायु को साँस लेने के उपयुक्त बनाता वहीं है। सूर्य के प्रकाश का स्वास्थ्य पर जहाँ अनुकूल प्रभाव पड़ता है, दूसरी ओर सूर्य का प्रकाश या धूप स्वास्थ्य को प्रभावित करती है अर्थात् प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है; जैसे—
(i) अत्यधिक गर्म हवाओं (लू) का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है।
(ii) सूर्य की तेज धूपं त्वचा के रोगों का कारण बन सकती है।
(iii) अत्यधिक तेज धूप से (Sun) हो सकता है ।
(iv) अत्यधिक धूप से कई बीमारियाँ हो सकती हैं।
इस प्रकार सूर्य व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कारक है जो अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव छोड़ता है ।
(2) वायु – स्वास्थ्य के लिए सूर्य के प्रकाश की तरह वायु भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। वायु के बिना व्यक्ति एक भी पल जीवित नहीं रह सकता क्योंकि वायु से ही हम ऑक्सीजन शरीर में ग्रहण करते हैं, जो शरीर के लिए एक अत्यन्त आवश्यक तत्त्व है। ऑक्सीजन रक्त को शुद्ध करती है। पूरी ऑक्सीजन की सप्लाई के अभाव में बहुत सी बीमारियाँ होने का खतरा बना रहता है लेकिन यदि वायु अशुद्ध है और दूषित है तो इसका प्रभाव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल भी पड़ता है। जैसे—
(i) अशुद्ध वायु से अनेक प्रकार के हानिकारक अवयव हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं ।
(ii) वायु द्वारा बीमारी के कीटाणु एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलते हैं ।
(iii) वायु द्वारा अनेक कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं ।
एक प्रकार से शुद्ध वायु स्वास्थ्य के लिए लाभदायक कारक है तो दूसरी तरफ अशुद्ध वायु का प्रभाव स्वास्थ्य पर उलटा पड़ता है।
(3) जल – जल की आवश्यकता शरीर को सबसे ज्यादा होती है। जल भोजन का आवश्यक अंग है। जल के अभाव में जीवन कठिन बन जाता है। जल का स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जहाँ शुद्ध जल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, वहीं दूषित जल अस्वस्थता और अनेक बीमारियों का जनक है। इसलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुद्ध जल का होना अत्यन्त आवश्यक है लेकिन दूसरी तरफ जल स्वास्थ्य पर उलटा प्रभाव भी डालता है। जैसे—
(i) अशुद्ध जल से अनेक बीमारियाँ फैलती हैं।
(ii) अशुद्ध जल से अनावश्यक तत्त्व शरीर में जमा हो सकते
(iii) अशुद्ध जल द्वारा ही अनेक रोगाणु या कीटाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
( 4 ) भोजन – स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों में से अधिक प्रभावकारी कारक भोजन है। भोजन शरीर को कार्य करने की शक्ति देता है। शरीर का विकास करता है। भोजन द्वारा ही हम उन सभी तत्त्वों, लवणों, खनिजों आदि को ग्रहण करते हैं जो शारीरिक विकास के लिए आवश्यक होते हैं । अतः स्वास्थ्य के लिए भोजन का सन्तुलित और पौष्टिक होना अति आवश्यक है। दूसरी ओर भोजन भी स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता हैं। भोजन के सम्बन्ध में भी महत्त्वपूर्ण सावधानियाँ रखनी आवश्यक हैं—
(i) भोजन पौष्टिक और सन्तुलित होना चाहिए ।
(ii) भोजन शुद्ध और ताजा होना चाहिए ।
(iii) अत्यधिक भोजन नहीं करना चाहिए ।
(iv) भोजन समय पर करना चाहिए ।
(v) भोजन बार – बार नहीं करना चाहिए।
(5) अशुद्ध पदार्थों का निष्कासन – मानव शरीर एक सूक्ष्म रचना है। भोजन द्वारा, वायु द्वारा, जल द्वारा कुछ अनावश्यक तत्त्व भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। पाचन क्रिया द्वारा आवश्यक तत्त्व शरीर के विकास में काम आते रहते हैं और अनावश्यक तत्त्व निष्कासन द्वारा बाहर आते हैं। निष्कासन क्रिया बिगड़ने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः स्वास्थ्य के लिए यह भी जरूरी है कि अशुद्ध पदार्थों का निष्कासन अवश्य होना चाहिए ।
(6) व्यायाम – व्यायाम द्वारा शरीर चुस्त तथा दुरूस्त रहता है। व्यायाम स्वास्थ्य के प्रभावी कारकों में से जाना जाता है लेकिन व्यायाम कब, कितना और किस समय किया जाना चाहिए, यह सावधानी रखना आवश्यक है। जहाँ व्यायाम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है वहीं अनावश्यक या अधिक व्यायाम स्वास्थ्य पर उल्टा प्रभाव भी डाल सकता है। अतः व्यायाम के बारे में सावधानी आवश्यक है ।
(7) विश्राम – क्रियाशीलता स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति काम-काम ही करता रहे । विश्राम शरीर के लिए आवश्यक है। नींद के निश्चित घंटे और दिन में निश्चित विश्राम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। विश्राम शरीर को तरो-ताजा बना देते अधिक मेहनत का कार्यक्रम शरीर या स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।
(8) सफाई – परिवेश किस प्रकार का है ? व्यक्ति जहाँ काम करता है, स्थान कैसा है ? विद्यालय का प्रांगण किस प्रकार का है ? ये सब तत्व स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यदि आस-पास, घर, विद्यालय आदि साफ-सुथरा नहीं है, गंदगी है तो विषाणु, कीटाणु आदि पनपने की सम्भावना रहती है। अतः सफाई रखना, वातावरण का साफ होना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। वातावरण या परिवेश की सफाई के साथ शरीर की सफाई, शरीर के विभिन्न अंगों की सफाई आदि भी स्वास्थ्य के लिए प्रभावी कारक कहे जा सकते हैं।
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