अनुशासन के प्रकार पर टिप्पणी लिखिए।

अनुशासन के प्रकार पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर— अनुशासन के प्रकार–अनुशासन के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं—
(1) शास्त्रीय अनुशासन–शास्त्रीय अध्ययन जो एक शैक्षिक अनुशासन की परिसीमा में होता है इसके अन्तर्गत एक ही विषय का अध्ययन किया जाता है। इसमें एक ही विषय की प्राकृतिक सीमाओं, विशेषताओं एवं क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है। इसमें अनुसंधान के भी विशिष्ट लक्ष्य, क्षेत्र एवं विधियाँ होती हैं जो विशिष्ट प्रश्नों के उत्तर ढूँढने का प्रयास करता है। इस उपागम में अभ्यास व अनुसंधान का अर्थ केवल एक ही अनुशासन (विषय पर आधारित) के द्वारा किसी सामाजिक समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया जाता है । इसके अन्तर्गत एक ही अनुशासन से सम्बन्धित समस्या का समाधान अनुसंधान के द्वारा खोजा जाता रहा है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि कोई समस्या किसी विशेष अनुशासन के विशिष्ट भाग या पक्ष से सम्बन्धित हो । अनुसंधानकर्त्ता किसी एक ही अनुशासन (विषय) पर कार्य करता है (जैसे—न्याय, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र) जिसमें समान उद्देश्य, दृष्टान्त व नमूना का आदान-प्रदान तथा सामान विधि व भाषा काम में ली जाती है । किन्तु जब एक से अधिक अनुशासन में समस्या समाधान हेतु शोध पर विचार किया जाता है तो यह अनुशासन अपनी सीमाओं में बंध जाता है क्योंकि इसके द्वारा एक समय में केवल एक ही विषय को विस्तृत रूप से स्पष्ट किया जा सकता है। अतः मुख्य जोर समस्या के समाधान करने, कार्य करने, ज्ञान व कौशलों का संचार करने तथा ज्ञान व कौशलों के समन्वय पर दिया जाता है। एक ही विस्तृत अनुशासन के अन्तर्गत कई उप अनुशासन हो सकते हैं जिससे उच्च स्तर की विशेषज्ञता प्राप्त की जा सकती है।
(2) अंतर शास्त्रीय अनुशासन–अंतर शास्त्रीय के अध्ययन में कई असम्बन्धित शैक्षिक अनुशासन इस तरह अनुसंधान क्षेत्र में कार्य करते हैं कि दोनों विषय अपनी सीमाओं को पार कर नवीन ज्ञान व सिद्धान्त का निर्माण करते हैं जो सामान्यतया अनुसंधान का लक्ष्य या उद्देश्य होता है। असम्बन्धित शैक्षिक अनुशासन से तात्पर्य यह है कि कई विभिन्न अनुसंधान के क्षेत्र अर्थात् गुणात्मक तथा संख्यात्मक उपागम और अन्वेषण तथा विश्लेषण उपागम को एक साथ उपयोग में लेना है जो कला व विज्ञान से सम्बन्धित है। यह अनुशासन दो भिन्न अनुशासन की समस्या का अध्ययन करता है जो समग्र रूप से प्रत्येक अनुशासन पर लागू किया जा सके। अंतर शास्त्रीय शिक्षा अनुशासन उपागम का उपयोग कर समस्या कथन का अध्ययन करती है जो अंतर्दृष्टि के आधार पर विभिन्न अनुशासन को एक-दूसरे से सार्थक बनाती है। उस अनुशासन का विश्लेषण कर उसके योगदान की समझ तथा कई दृष्टि के आधार पर समस्या से सम्बन्धित विचारों को पूर्ण करने तथा विश्लेषण की रूप रेखा निर्मित करने में सहायक होता है। जैसे—स्वस्थ देखभाल, आनुवांशिक परिमार्जित खाना जैसी समस्याओं का अध्ययन अंतर शास्त्रीय अनुशासन के अंतर्गत आता है। अतः अंतर शास्त्रीय अनुशासन का विश्लेषण किसी मुद्दे को बहुदृष्टि के परिप्रेक्ष्य से जाँचता है तथा क्रमबद्ध प्रयासों के द्वारा समग्र रूप से विश्लेषण कर किसी नतीजे पर पहुँचता है, जिसे विश्लेषण की रूपरेखा के नाम से जाना जाता है ।
(3) बहुशास्त्रीय अनुशासन–बहुशास्त्रीय से तात्पर्य है दो या दो से अधिक अध्ययन के संदर्भ में अंतर्दृष्टि विकसित करना । जैसे— इस उपागम का प्रयोग एक पाठ्यक्रम में किया जा सकता है, जिसे तैयार या उस पर विचार जानने हेतु अनुदेशकों को आमंत्रित किया जाता है, जो भिन्न-भिन्न अध्ययन क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं । विशेषज्ञों को प्रकरण पर क्रमबद्ध विधि से विचार प्रकट करने के निर्देश दिए जाते हैं, जहाँ वह विषय या प्रकरण से सम्बन्धित अंतर्दृष्टि का प्रयोग नहीं करते । यहाँ अध्ययन क्षेत्र के मध्य बहुत समीपता का सम्बन्ध होता है किन्तु उनके मध्य एकीकरण का सम्बन्ध नहीं होता । अतः विभिन्न अध्ययन क्षेत्र की अंतर्दृष्टि को किसी तरह एक साथ लाना, परन्तु कड़े प्रयास के बाद भी एकीकरण न कर पाना ही बहुशास्त्रीय है। संक्षेप में, बहुशास्त्रीय अध्ययन में दो या दो से अधिक अध्ययन क्षेत्र अपना योगदान करके स्वतंत्र भूमिका निभाते हैं। उदाहरण — जैसे हमारे घर की डाइनिंग टेबल पर रखी फलों की टोकरी में रखे फल अपनी विशिष्टता, रंग व स्वाद के आधार पर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखते हैं।
बहुशास्त्रीय अध्ययन क्षेत्र एक या दो से अधिक व्यावसायिक अथवा शैक्षिक अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित ज्ञान को कहा जाता है । इस अध्ययन क्षेत्र का निर्माण कई विभिन्न अध्ययन क्षेत्र व व्यवसाय के व्यक्तियों से होता है। प्रत्येक व्यक्ति एक साथ जवाबदेही की तरह कार्य करते हैं तथा संस्था एक सामान्य लक्ष्य व चुनौती को पूरा करने में अपनी अहम् भूमिका निभाती है। बहुअनुशासनात्मक व्यक्ति वह होता है जो दो या दो से अधिक शैक्षिक उपलब्धि के लिये हुए होता है अर्थात् एक व्यक्ति जो कई अनुशासनों का ज्ञाता होता है, वह बहुअनुशासनात्मक संस्था में दो या दो से अधिक व्यक्तियों का स्थान ले सकता है । यह शैक्षिक अध्ययन क्षेत्र की संख्या को बढ़ाता या घटाता नहीं है। जैसे एक मुख्य प्रकरण की चुनौती को कैसे उपभागों में विभाजित किया जाता है या तोड़ा जाता है जिससे उनके द्वारा समुदाय में ज्ञान को वितरित किया जाये। कई बार समुदाय में शब्दावली के माध्यम से व्यक्तियों के मध्य शब्दों का आदान-प्रदान कम होने से सूचना कभी-कभी मुद्दे का रूप धारण कर लेती है। यदि किसी विशिष्ट प्रकार की चुनौती को बार-बार सम्बोधित किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति उस विषय को विभिन्न कर एक प्रभावी व सक्षम समुदाय का निर्माण करने का प्रयास करते हैं। इसके कई उदाहरण हैं—एक विचार कई अध्ययन क्षेत्र में एक साथ-साथ एक समय में आ सकता है। बहुअनुशासनात्मकता व्यक्ति को भविष्य में नवाचार के लिए प्रोत्साहित करती है। अत: बहुअनुशासनात्मकता उपागम कई अध्ययन क्षेत्र को सही मात्रा में सम्मिलित कर समस्याओं को नये तरीके से परिभाषित करता है तथा उन समस्याओं को सामान्य बाधाओं से हल करके नवीन उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास करता है जो नवीन जटिल परिस्थितियों की समझ पर आधारित होती है । बहुअनुशास्त्रीय उपागम में विभिन्न शैक्षिक अध्ययन क्षेत्र एक ही प्रकरण या अनुसंधानिक समस्या पर अनुसंधान करता है जिसके बहुअध्ययन उद्देश्य होते हैं। बहुअध्ययन क्षेत्र में प्रतिभागी ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं लेकिन विषय अध्ययन क्षेत्र की सीमाओं का उल्लंघन किये बिना जो नवीन ज्ञान व सिद्धान्त निर्माण में अपना योगदान देता है। यह अध्ययन क्षेत्र अनुसंधान प्रक्रिया विभिन्न अध्ययन में साथ-साथ चलती है। इसका प्रमुख उद्देश्य समग्रता से परिणामों की तुलना करना है।
(4) परे शास्त्रीय अनुशासन–परे शास्त्रीय (transdisciplinary) में transcend शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के transfix से हुई है, जिससे तात्पर्य है जो दृष्टि से परे हो जो जल्दी-जल्दी बदलता रहे अर्थात् वह शास्त्र जिसमें दो या उससे अधिक अध्ययन की झलक मिले किन्तु किसी एक विशिष्ट अध्ययन के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से व्याख्या करना सम्भव न हो । वह अध्ययन जो अन्य अध्ययन के आरपार हो तथा उनके साथ-साथ पास से निकल जाये तथा जो सभी अनुशासनों के परे हो । इसके मुख्य उद्देश्य—(i) वर्तमान विश्व को समझना जिसमें परमावश्यक है ज्ञान की एकता, तथा (ii) वृहद् व जटिल समस्या का समाधान निकलना जो विशेषज्ञों के विचारों एवं अध्ययन क्षेत्र समाकलन या एकीकरण पर आधारित सिद्धान्त द्वारा प्राप्त किये गये हों।
परे शास्त्रीय अनुसंधान के दो सम्प्रत्यय हैं—(i) वैज्ञानिक तथा अवैज्ञानिक स्रोत के आधार पर अंतरशास्त्रीय अनुसंधान करना । (ii) नवीन ज्ञान के स्वरूप समझना एवं समस्या समाधान में सहयोग करना जो समाज के विभिन्न भागों से सम्बन्धित हो तथा जो समाज की जटिल चुनौतियों का सामना कर सके ।
इस प्रकार के अनुसंधान के द्वारा समाज के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित समस्याओं का हल निकला जाता है। अनुभव, अंतर्क्रिया व समाधान के आधार पर प्राप्त नवीन परिणाम प्राकृतिक वास्तविकता को नया दृष्टिकोण देता है । यह एक नये प्रकार का ज्ञान है जिसने विश्व में नवीन दृष्टिकोण व जीवन के अनभवों को समाहित कर एक नवीन बुद्धिमता के रूप में अपनी जगह बना ली है। इस नवीन ज्ञान के चार स्तम्भ हैं—
(i) जानने के लिए सीखना
(ii) करने के लिए सीखना
(iii) के साथ होने के लिए
(iv) होने के लिए सीखना ।
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