अभिप्रेरणा की तीव्रता को कौनसे तत्त्व प्रभावित करते हैं ? अपने शिक्षण कार्य को प्रभावी बनाने के लिए एक शिक्षक को अभिप्रेरकों का चयन किस प्रकार करना चाहिए

अभिप्रेरणा की तीव्रता को कौनसे तत्त्व प्रभावित करते हैं ? अपने शिक्षण कार्य को प्रभावी बनाने के लिए एक शिक्षक को अभिप्रेरकों का चयन किस प्रकार करना चाहिए

उत्तर— अभिप्रेरणा की तीव्रता को प्रभावित करने वाले तत्त्व (Factors affecting the intensity of motivation)–अभिप्रेरणा की तीव्रता को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं—
(1) आवश्यकताएँ (Needs)— आवश्यकता आविष्कार की जननी है। बालकों की ही नहीं, बड़ों की भी यह प्रवृत्ति होती है कि वे आवश्यकता के वशीभूत होकर ही कार्य करते हैं ।
(2) आदतें (Habits)– बच्चों की आदतें नये ज्ञान को विकसित करने में सहायक होती हैं। नया ज्ञान, पूर्व ज्ञान पर आधारित हो जाए तो पाठ के विकास में सहायक होता है ।
(3) संवेगात्मक (Emotional situation)– सीखे जाने वाले ज्ञान के प्रति बालक का संवेगात्मक सम्बन्ध स्थापित होता है तो निश्चत ही वह अभिप्रेरणा प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करेगा।
(4) अभिवृत्ति (Attitude)– अभिप्रेरणा बालकों में अभिवृत्ति का विकास करने में सहायता देती है। बालकों में अभिवृत्ति का विकास होने से वे कार्य को अच्छी तरह करते हैं।
(5) रुचि (Interest)– जिस पाठ या कार्य में बालक की रुचि होती है, उसे वह तुरन्त सीख लेते हैं।
(6) प्रगति का ज्ञान (Knowledge of Progress)– छात्रों को यदि उनकी प्रगति का ध्यान दिलाते रहे तो उनमें क्रियाशीलता बनी रहती है।
(7) असफलता का भय (Threat or Fear)– असफलता के भय से छात्र कार्य करने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।
(8) आकांक्षा का स्तर (Level of Aspiration )–आकांक्षा का स्तर से यह अभिप्राय है कि जो कार्य छात्रों को सिखाया जाए, वह उनकी शारीरिक, मानसिक परिपक्वता के अनुकूल हो । अनुभव में आया है कि जब ज्ञान या क्रिया का स्तर बालकों से ऊँचा हो जाता है तभी उनमें कार्य के प्रति अरुचि तथा घृणा उत्पन्न हो जाती है ।
(9) पुरस्कार एवं दण्ड (Reward and Punishment)– पुरस्कार एवं दण्ड का अभिप्रेरणा में अत्यधिक महत्त्व है । जब बालक को पुरस्कार अथवा दण्ड दिया जाता है तो उसका एक ही अर्थ होता है— भावी व्यवहार पर अनुकूल प्रभाव डालना । पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक बालक कार्य करता है ।
(10) प्रतियोगिता (Competition)– विद्यालयों में छात्रों में प्रतियोगिता तथा प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति सामान्यतः देखी जाती है । कक्षा में छात्र एक-दूसरे से अधिक अंक प्राप्त करना चाहते हैं। प्रतियोगिता के माध्यम से नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए छात्र अभिप्रेरित होते हैं ।
(11) विद्यालय का वातावरण(School Environment)– विद्यालय का वातावरण ऐसा होना चाहिए जिससे बालक को स्वयं अभिप्रेरणा प्राप्त हो। जिन विद्यालयों में वातावरण अच्छा नहीं होता, वहाँ के छात्रों में क्रियाशीलता अधिक नहीं पाई जाती ।
शिक्षण कार्य को प्रभावी बनाने के लिए एक शिक्षक को अभिप्रेरकों का चयन अत्यन्त सावधानी से करना चाहिए। शिक्षण की प्रक्रिया में छात्रों को सीखने के लिए अथवा व्यवहार परिवर्तन के लिए शिक्षक विभिन्न परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है, जिससे उन्हें सीखने के नये अनुभव प्राप्त होते हैं। इन परिस्थितियों में छात्रों को शारीरिक अथवा मानसिक अनुक्रिया करनी होती है। इन शारीरिक अथवा मानसिक अनुक्रियाओं को बल प्रदान करके एवं तीव्र बनाने में अभिप्रेरणा का विशेष महत्त्व होता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिक्षण कार्य में अभिप्रेरणा का विशेष महत्त्व है। अतः छात्रों के लिए अभिप्रेरणा की प्रविधियों के प्रयोग के लिए शिक्षक को अभिप्रेरकों का चयन करते समय निम्नलिखित मानदण्डों को ध्यान में रखना चाहिए—
(1) अधिगम के उद्देश्य (Objectives of learning)– अभिप्रेरणा की प्रविधियों को शिक्षण-अधिगम में प्रयुक्त करने का तात्पर्य उद्देश्यों को अधिकतम रूप में प्राप्त करना है। सीखने के अनुभवों को अभिप्रेरणाओं की प्रविधियाँ सुविधा प्रदान करती है। अतः अभिप्रेरणा की प्रविधियों के चयन में अधिगम के उद्देश्यों को मानदण्ड के रूप में प्रयुक्त करना चाहिए ।
(2) अधिगम के स्वरूप (Structures of learning)– शिक्षण की युक्तियों के द्वारा अधिगम-स्वरूपों को प्रस्तुत किया जाता है। अभिप्रेरणा की प्रविधियाँ अधिगम की क्रियाओं को तीव्र करती हैं और उन्हें शक्ति प्रदान करती हैं जिससे वे स्थायी रह सकें। अतः अभिप्रेरणा की प्रविधियों के चयन में अधिगम के स्वरूपों को मानदण्ड के रूप में प्रयुक्त करना चाहिए।
(3) छात्रों की आवश्यकताएँ (Needs of Students)– अधिकांश मानव व्यवहार तथा अनुक्रियाएँ आवश्यकताओं से ही नियंत्रित होती है। व्यक्ति को जब किसी चीज की आवश्यकताएँ होती हैं तो तनाव उत्पन्न हो जाता हैं और उसकी पूर्ति के लिए वह प्रयास करता है । आवश्यकता के निदान के बाद यह निश्चय करना होता है कि सन्तुष्टि कैसे मिल सकती है, उस साधन अथवा वस्तु का चयन कैसे किया जा सकता है। शिक्षक छात्रों की आवश्यकताओं को पता लगाने के बाद उनकी सन्तुष्टि के लिए समुचित प्रेरणा का चयन कर सकता है।
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