उसकी हँसी बड़ी कोमल और मीठी थी, जैसे फूल की पंखुड़ियाँ बिखर गई हों। व्याख्या कीजिए।

उसकी हँसी बड़ी कोमल और मीठी थी, जैसे फूल की पंखुड़ियाँ बिखर गई हों। व्याख्या कीजिए।

उत्तर :- प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी साहित्य के प्रमुख कथाकार अमरकांत द्वारा लिखित ‘बहादुर’ शीर्षक से अवतरित है। प्रस्तुत अंश में कथा के प्रमुख नायक बहादुर की स्वाभाविक, निश्छल और निष्कपट हँसी का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत व्याख्यांश में लेखक दफ्तर से आने के बाद परिवार के सदस्यों से घर के अनुभव सुनते, बाद में बहादुर की बारी आती। बहादुर कोई बहुत-सी मामूली घटना का रिपोर्ट देता। रिपोर्ट देते समय वह बिल्कुल निडर, नि:संकोच और स्वाभाविक हो जाता। उसे लगता कि मैं साहब को बहुत मजेदार बात सुना रहा हूँ। बात सुनाते समय अंदर ही अंदर इतना आनंदित होता कि वह हँसने लगता । उसकी हँसी इतनी कोमल और मीठी होती थी जैसे फूल की पंखुडियाँ बिखर गई हों।

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