औपचारिक और अनौपचारिक भाषा में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए।
औपचारिक और अनौपचारिक भाषा में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
टिप्पणी लिखिये- औपचारिक एवं अनौपचारिक भाषा ।
उत्तर— औपचारिक भाषा– औपचारिक भाषा का तात्पर्य उस भाषा से है जो जान-बूझकर, विचारपूर्वक बोली जाती । यह भाषा शिक्षालय, चर्च, संग्रहालय, पुस्तकालय, आर्ट गैलरीज, पुस्तकें आदि आती हैं। ये सभी भाषा बालकों को ‘औपचारिक भाषा’ प्रदान करती हैं ।
गुण—
(i) इस भाषा के द्वारा शिक्षा को प्रक्रिया एवं ‘पूर्व-निश्चित योजना’ द्वारा प्रदान की जाती है ।
(ii) इस भाषा के द्वारा प्रदान की जाने वाली विचारों का एक ‘निश्चित लक्ष्य’ होता है ।
(iii) ‘विद्यालय’ इस भाषा का स्थान आता है जिसमें सम्पूर्ण शिक्षा-कार्य एक निश्चित उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षणविधि, व्यवस्था तथा नियमों के अनुसार सम्पन्न किये जाते हैं।
(iv) ये भाषा बालक के व्यक्तित्व को ‘प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित ‘ करते हैं ।
(v) इस भाषा के द्वारा शिक्षा देने में कम ‘समय’ लगता है ।
अनौपचारिक भाषा– अनौपचारिक भाषा का तात्पर्य उन साधनों से है जिसका विकास समाज में स्वाभाविक रूप से होता है । इस भाषा की न तो कोई निश्चित योजना होती है और न कोई निश्चित नियम होते हैं। यह अज्ञात, अप्रत्यक्ष तथा औपचारिक रूप से बालक के संस्कारों में रूपान्तर करते हैं। इस भाषा के अन्तर्गत परिवार, राज्य, युवक- समूह, खेल का मैदान, चलचित्र, प्रेस, पत्र-पत्रिकायें, रेडियो, दल, गुट इत्यादि आते हैं।
गुण–भाषा के औपचारिक साधनों की अपेक्षा अनौपचारिक साधनों का अधिक महत्त्व है। बालक दूसरों के साथ रहकर अनौपचारिक ढंग से भाषा सीख सकता है, और साथ रहने की प्रक्रिया ही भाषा प्रदान करने का कार्य करती है। यह प्रक्रिया अनुभव को विस्तृत बनाती हैं और कल्पना को प्रेरित करती है एवं कथन इस विचार में शुद्धता एवं सजीवता है। वास्तव में अनौपचारिक भाषा का बालकों के व्यवहार में अत्यधिक महत्त्व हैं, क्योंकि इनका सम्बन्ध व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक बना रहता है। यही भाषा वास्तविक रूप से बालक में आदतों, दृष्टिकोणों, अभिरुचियों तथा अभिवृद्धियों का स्वाभाविक रूप से निर्माण करते हैं।
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