कहानी कथन विधि क्या है ? यह विधि सामाजिक अध्ययन शिक्षण में अधिक लोकप्रिय क्यों हैं ? इस विधि की परिसीमाएँ कौन-कौनसी हैं ?
कहानी कथन विधि क्या है ? यह विधि सामाजिक अध्ययन शिक्षण में अधिक लोकप्रिय क्यों हैं ? इस विधि की परिसीमाएँ कौन-कौनसी हैं ?
उत्तर— कहानी कथन विधि–सामाजिक अध्ययन के शिक्षण को रोचक तथा सरल बनाने के लिए कहानी विधि का प्रयोग किया जाता है । अल्प आयु के बालक-बालिकाओं की रुचि कहानियों में विशेषतः होती है। उन्हें किसी भी विषय का ज्ञान कहानियों के माध्यम से कराया जा सकता है। प्लेटो ने इस कारण ही इस विधि को छोटे बालकों के लिए विशेष उपयोगी बताया है, परन्तु इस विधि की सफलता अध्यापक के कहानी कहने के ढंग पर निर्भर करती है। यदि अध्यापक प्रभावशाली और रोचक ढंग से कहानी कहता है तो बालकों के हृदय में इतिहास के प्रति रुचि अपने आप उत्पन्न हो जायेगी। दूसरे, यह विधि बालकों की कल्पना शक्ति को विकसित करती है। तीसरे, इस विधि द्वारा छात्रों की जिज्ञासा को तृप्त किया जा सकता है। जारविस महोदय का विचार कि इसके द्वारा बालकों में नैतिक गुणों का विकास किया जा सकता है। यह उनको अपने आंतरिक भावों को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करती है।
रूसो तथा अन्य शिक्षाशास्त्रियों ने प्रारम्भिक कक्षाओं के लिये जीवन-गाथा द्वारा इतिहास पढ़ने का सुझाव दिया। बाद में भी अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने इस बात पर आग्रह किया कि इतिहास को जीवन-गाथा के रूप में प्रस्तुत किया जाए तो अधिक रुचिप्रद, सरल एवं सहज होगा। कार्लाइल का तो यह मत ही था कि विश्व में मानव की जो भी उपलब्धियाँ हैं वे मूलतः महान् व्यक्तियों की देन हैं। कजिन का भी मत था कि महान् व्यक्ति मानवता के सार हैं और वे मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
कहानी विधि के लिए सामान्य धारणा है कि यह 8 से 10 वर्ष के बालकों के लिए बहुत उपयोगी है। वैसे यदि देखा जाये तो कहानी में बालक से लगाकर बूढ़ों की रुचि रहती है, किन्तु कहानी विधि को प्रभावोत्पादक एवं उपयोगी बनाने के लिए आवश्यक है कि विषय से सम्बन्धित छोटी-छोटी एक-दूसरे से संयुक्त कहानियों का चयन किया जाए। इन कहानियों में रुचिप्रद विवरण भी हों ताकि बालकों की कल्पना एवं जिज्ञासा की सन्तुष्टि के लिए यथेष्ट अवसर मिलें।
सामाजिक अध्ययन शिक्षण में लोकप्रिय होने के कारण– निम्नलिखित हैं—
(1) बालकों की इतिहास की कहानियों तथा इतिहास में रुचि विकसित होती जाती है ।
(2) महान् व्यक्तियों के प्रभावोत्पादक जीवन प्रसंगों को सुनने से बालकों में सद्गुणों का विकास भी होता है । जरविस का मत है कि कहानी विधि से बालकों के आचरण में आदर्शों का निर्माण होता है जो उनके चरित्र विकास में सहायक होता है।
(3) कहानी विधि द्वारा बालकों को जिज्ञासा की सन्तुष्टि का भी यथोचित अवसर रहता है ।
(4) कम व्यय वर्ग के बालक का मस्तिष्क कल्पना प्रधान होता है और इस विधि द्वारा उनकी कल्पना को विकसित करने का अवसर मिलता है ।
(5) कल्पना का अगला चरण सृजनात्मक चिन्तन है। कहानी पद्धति द्वारा बालकों की सृजनात्मक शक्ति को विकसित होने का अवसर मिलता है ।
(6) सबसे कम खर्चीली विधि जिसके द्वारा बालकों की रुचि एवं व्यवधान को बनाये रखने में आसानी होती है। यह बालकों की रुचि को बनाए रख सकती है ।
कहानी–कथन–विधि के दोष–कहानी-विधि के दोष निम्नलिखित हैं—
(1) यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी है, माध्यमिक स्तर के छात्र इस विधि में कम रुचि लेते हैं ।
(2) कहानी-विधि में शिक्षक कहानीकार होता है और छात्र केवल श्रोता । फलतः छात्रों की अन्य ज्ञानेन्द्रियाँ निष्क्रिय रहती हैं ।
(3) छात्रों की आयु एवं स्तर के अनुरूप कहानी नहीं होगी तो छात्र उसमें रुचि नहीं लेंगे – फलतः अवधान केन्द्रित नहीं होगा।
(4) कहानी विधि एक पक्षीय है। छात्र अपनी समस्या का समाधान कहानी की समाप्ति के पश्चात् ही कर सकता है।
(5) प्रत्येक प्रसंग को कहानी विधि से पढ़ाया जाना सम्भव नहीं है।
(6) यह विधि मौखिक विधि है। फलतः इसकी सफलता कहानीकार पर निर्भर करती है।
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