काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे; पर निर्लज्ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर । व्याख्या करें।
काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे; पर निर्लज्ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर । व्याख्या करें।
उत्तर- प्रस्तत व्याख्येय पंक्ति हिंदी पाठ्य पुस्तक के नाखून क्यों बढ़ते हैं शीर्षक से उद्धत है। यहाँ हिन्दी गद्य साहित्य के महान लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मानवतावादी दृष्टिकोण प्रकट किया है। निबंधकार प्रस्तुत अंश में नाखून के बढ़ने-बढ़ाने और कटने-काटने को लाक्षणिक शब्द शक्ति में बाँधने का पूरा प्रयत्न किया है। इनका कहना है कि नाखून काट दीजिए तो फिर तीसरे दिन, चौथे दिन बढ़ जाते हैं। ये चुपचाप दंड स्वीकार कर लेते हैं जैसे कोई निर्लज्ज अपराधी हो लेकिन जिस प्रकार दंड से छूटने के बाद वह अपराधी फिर अपराध कर बैठता है उसी प्रकार ये नाखून फिर अपने स्थान पर जम जाते हैं। लेखक यहाँ एक ओर नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की आदिम पाश्विक वृत्ति और संघर्ष चेतना का प्रमाण मानता है तो दूसरी ओर उन्हें बार-बार काटते रहना और अलंकृत करते रहना मनुष्य के सौंदर्य बोध और सांस्कृतिक चेतना को भी निरूपित करता है।
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