गवरी लोक नृत्य के उल्लेखनीय पक्षों को स्पष्ट कीजिए ।
गवरी लोक नृत्य के उल्लेखनीय पक्षों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— गवरी लोक नृत्य–इसमें कई तरह की नृत्य नाटिकाएँ होती हैं। जो पौराणिक कथाओं, लोक गाथाओं और लोक जीवन की विभिन्न झांकियों पर आधारित होती है। ऐसी मान्यता है कि भस्मासुर ने अपनी तपस्या से शिवजी को प्रसन्न कर भस्म करने की शक्ति प्राप्त कर ली। उसने पार्वती को लेने के लिए शिव पर ही उसका प्रयोग करना चाहा। अन्त में विष्णु भगवान ने अपनी शक्ति से शिव को बचाया और भस्मासुर का उसी के हाथ को सिर पर रखवा कर अंत किया। गवरी का आयोजन रक्षा बन्धन के दूसरे दिन से शुरू होता है। पात्र मन्दिरों में ‘धोक’ देते हैं और नव-लाख देवी-देवता, चौसठ योगिनी और बावन भैंरू को स्मरण करते हैं। गवरी का मुख्य पात्र बूढ़िया भस्मासुर का जप होता है और अन्य मुख्य पात्र ‘राया’ होती है जो स्त्री वेष में पार्वती और विष्णु की प्रतीक होती है । गवरी सवा महीने तक खेली जाती है । इस अवधि में राई, बढ़िया और भोपा, नंगे पांव रहते हैं। जमीन पर सोते हैं और स्नान नहीं करते ।
गवरी का व्यय, प्रमुख गाँव जहाँ से गवरी आरम्भ होती है, वहन करता है और जिन गाँवों में गवरी खेली जाती है, खाने-पीने का व्यय उस गाँव वाले वहन करते हैं। गवरी समाप्ति पर दो दिन पहले जवार बोये जाते हैं और एक दिन पहले कुम्हार के यहाँ से मिट्टी का हाथी लाया जाता है। यह पर्व आदिवासी जाति पर पौराणिक तथा सामाजिक प्रभाव की अभिव्यक्ति है।
इस लोकनाट्य में चार प्रकार के पात्र होते हैं—देव, मनुष्य, राक्षस और पशु ।‘राय’ और ‘ भूरिया गावरी के दो महत्त्वपूर्ण पौराणिक पात्र हैं। गावरी में ‘पार्वती’ और ‘मोहिनी’ दो राय पात्र महिलाओं की वेशभूषा में होते हैं, जो हमेशा प्रदर्शन करने वाले समूह में मध्य में होते हैं। भूरिया भस्मासुर होता है, जो काला लकड़ी का मुखौटा पहनता है जिसके चेहरे पर बैल की पूँछ के बाल लगे रहते हैं। भूरिया लकड़ी की एक छड़ी लिए रहता है और अन्य कलाकारों के विपरीत दिशा में चलता है। ‘भैरों’ और ‘माता’ राय के साथ खड़े होते हैं। ज्यादातर गाँव में दिन के समय गावरी का प्रदर्शन किया जाता है। मादल और थाली का उपयोग प्रमुख लोकवाद्य के रूप में किया जाता है। पौराणिक और सामाजिक प्रसंगों पर यह लोकनाट्य प्रस्तुत किया जाता है। लोग गाँव-गाँव जाकर इसका प्रदर्शन करते हैं, खासकर उन गाँवों में जाते हैं जहाँ उनकी बहिन और बेटियाँ ब्याही गई हैं।
किसी भी खुले मैदान में गवरी का प्रदर्शन किया जाता है। कुछ हास्य प्रसंगों के साथ कलाकार कलापूर्ण भाव से शिवजी की पौराणिक कथाएँ प्रस्तुत करते हैं। प्रदर्शन के अन्तिम दिन रात्रि जागरण होता है।
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