‘जीवनी’ एवं ‘आत्मकथा’ में क्या अन्तर है ?
‘जीवनी’ एवं ‘आत्मकथा’ में क्या अन्तर है ?
उत्तर— आत्मकथा एवं जीवनी में अन्तर–आत्मकथा में लेखक अपने बारे में लिखता है। इसमें लेखक अपने जीवन की घटनाओं अपने चरित्र तथा संघर्षो का सच्चा और सही वर्णन करता है, परन्तु जीवनी में लेखक किसी दूसरे का वर्णन करता है अतः जीवनी अधिक प्रामाणिक नहीं हो सकती। दोनों में निम्नलिखित अन्तर है—
(i) आत्मकथा का विस्तार जीवनी की तरह विस्तृत होता है, परन्तु जीवनी की अपेक्षा आत्मकथा लिखना अधिक कठिन है।
(ii) आत्मकथा स्वयं लिखी जाती है परन्तु जीवनी किसी दूसरे के द्वारा लिखी जाती है।
(iii) आत्मकथा के लेखक को अपने बारे में जितना ज्ञान होता है जीवनी लेखक को अपने चरित्रनायक के बारे में उतना ज्ञान नहीं होता ।
(iv) जीवनीकार अपने चरित्रनायक के गुण-दोषों पर समुचित प्रकाश डाल सकता है परन्तु आत्मकथा का लेखक ऐसा नहीं कर सकता। उसे स्वयं को बिताए गए जीवन का यथार्थ अंकन करना होता है।
(v) यद्यपि आत्मकथा और जीवनी दोनों का सम्बन्ध किसी महापुरुष के जीवन से होता है फिर भी आत्मकथा कोई भी व्यक्ति लिख सकता है।
(vi) आत्मकथा में जीवनी की अपेक्षा तटस्थता, ईमानदारी आदि गुणों का होना अत्यन्त जरूरी है।
(vii) जीवनी में किसी विशेष व्यक्ति की घटनाओं का यथार्थपरक चित्रण किया जाता है परन्तु आत्मकथा आत्मबीती होने के कारण सत्य और यथार्थ पर आधारित होती है।
(viii) जीवनी और आत्मकथा के उद्देश्य सम्बन्धी अन्तर को स्पष्ट करते हुए श्री अजीत कुमार लिखते हैं, “आत्मकथा साहित्य का उद्देश्य होता है— आत्म निर्माण, आत्म-परीक्षण या आत्म-समर्थन ।” अतीत की स्मृतियों को पुनजीर्वित करने का मोह या जटिल विश्व के उलझावों में अपने आपको अन्वेषित करने का सात्विक प्रयास । दूसरी ओर जीवनी लेखक का उद्देश्य होता है— संबद्ध व्यक्ति के प्रति आदरभाव, स्वभाव के सम्बन्धों का प्रत्यक्षीकरण तथा चरित्रनायक के जीवन, विचार का प्रचार-प्रसार आदि।
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