नाटक प्रदर्शन की शैक्षिक प्रासंगिकता क्या है ?

नाटक प्रदर्शन की शैक्षिक प्रासंगिकता क्या है ?

उत्तर— नाटक प्रदर्शन की शैक्षिक प्रासंगिकता–नाटक बच्चों में विभिन्न सामाजिक एवं शैक्षणिक मूल्यों का विकास कर सकता है, जिसमें प्रमुख का विवरण निम्न प्रकार हैं—
(1) सहानुभूति–नाटक करते समय हम अलग-अलग समय की संस्कृति के अलग-अलग लोगों की जिन्दगियों को जी रहे होते हैं, उसे करीब से जानते हुए उनकी परिस्थितियों को समझ रहे होते हैं। इससे समाज के विभिन्न लोगों के प्रति सहनशीलता, संवेदना का विकास होता है।
(2) अभिव्यक्ति (सम्प्रेषण कौशल) का विकास–नाटक विचारों की मौखिक और मूक अभिव्यक्ति को बढ़ावा देता है। अपनी आवाज को धाराप्रवाह दूर तक पहुँचाना, शब्दों को उच्च एवं साफ उच्चारण करना, भाषा का प्रयोग कर पाना, स्थिति, स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार भाषा का उचित प्रयोग कर पाना-सब नाटक सिखाता है। नाटक बच्चों को मंच प्रदान करता है, ताकि वे खुद को अभिव्यक्त कर सकें। नाटक के माध्यम से वे अपनी भावनाएँ विचार व अपने सपने लोगों के सामने रख सकते हैं, जो वे सामान्यत: नहीं कर पाते हैं। यह सब करने के लिए नाटक उन्हें एक मंच प्रदान करता है।
(3) संवेदनशीलता का विकास—हम किसी नाटक में कोई भूमिका कर रहे होते हैं तो थोड़े वक्त के लिए ही सही, हम खुद से हट कर किसी और की जिंदगी जी रहे होते हैं। इसके दो पहलू हैं। एक तो हम इस प्रक्रिया में खुद से बाहर होकर स्वयं को तटस्थ भाव से देखते हैं। जब खुद को बाहर से देखते हैं तो फिर मैं कहाँ रह जाता है? मैं की गैरहाजरी अहम को अपदस्थ करती है। दूसरे हम जब खुद को दूसरे की जगह रख कर देख रहे होते हैं, तो हमें उसकी स्थिति पता चलती है। मसलन, हम किसी नाटक में हिटलर की भूमिका कर रहे होते हैं तो यह जरूरी नहीं कि हम हिटलर के विचारों से सहमत हों, लेकिन हम भूमिका निभाते हुए समस्या को हिटलर के नजरिये से देखते जरूर हैं। समस्या समाधान के लिए नेगोशिएशन यानी बातचीत तभी संभव है जब हम समस्या को दूसरे के नजरिये से देखना शुरू करते हैं।
(4) कल्पना करना–नाटक करने के लिए नए-नए विचारों के बारे में सोचना और उसे बेहतर बनाने के लिए सृजनात्मक तरीकों के बारे में सोचना, आस-पास मौजूद संसाधनों का उपयोग हमारे जीवन में आने वाली वास्तविक परिस्थितियों के लिए हमें तैयार करता है। आइन्स्टाइन ने कहा है, “कल्पनाशील ज्ञान इकट्ठा करने से ज्यादा जरूरी है। ” नाटक कल्पनाशीलता का प्रयोग करने के भरपूर अवसर देता है ।
(5) एकाग्रता–नाटक तैयार करने के दौरान मस्तिष्क, शरीरांगों और आवाज को केन्द्रित करने में मदद मिलती है, अपने भावों को नियंत्रित करना, जिसका प्रभाव दूसरे विषयों पर और आगे चलकर जीवन पर भी पड़ता है।
(6) सहभागिता–नाटक की प्रक्रिया में टीम वर्क बहुत जरूरी है । किसी भी नाटक के बनने की शुरुआत ही समूह कार्य से होती है। बच्चों से नाटक करने को कहते ही वे एक से दो व दो से तीन होने शुरू हो जाते है। नाटक के साथ-साथ ही समूह बनना शुरू हो जाता है। नाटक में यह जबर्दस्त ताकत है कि यह एक छाते की तरह काम करता है, जिसके नीचे नृत्य, गीत-संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला इत्यादि कलाएँ आ जाती हैं । फलतः नाटक इस वजह से अपने में विभिन्न रुचियों व आयामों वाले लोगों को जोड़ लेता है। इसके अतिरिक्त सामूहिक रूप से लक्ष्य पूर्ति के लिए एकजुट होकर प्रयास करता है ।
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