पाठ्यक्रम सम्पादन की नीतियाँएवं वार्तालाप नीति का वर्णन कीजिये।

पाठ्यक्रम सम्पादन की नीतियाँएवं वार्तालाप नीति का वर्णन कीजिये।

उत्तर–पाठ्यक्रम सम्पादन की नीतियाँ—
(1) पूछताछ प्रशिक्षण—यह विधि वैज्ञानिक धारणा पर आधारित है जो छात्रों को विद्वतापूर्ण पूछताछ के लिए प्रशिक्षित करती है। इसके  अन्तर्गत छात्रों को पूछताछ की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाती है जिसके परिणामस्वरूप बालक अनुशासित ढंग से प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित होते हैं। इस विधि का विकास सन् 1966 ई. में हुआ था। इस विधि के प्रवर्तक रिचर्ड का कथन था कि बालक स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं तथा बालक अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए पूछताछ में आनन्द का अनुभव करते हैं। पूछताछ की प्रक्रिया से बालकों का बौद्धिक विकास तीव्र गति से होता है। इस विधि के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं—
( i ) उद्देश्य–इस विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में ज्ञानात्मक कौशलों का विकास करना है। बालक स्वयं पूछताछ के द्वारा प्रत्ययों की तार्किक ढंग से व्याख्या करता है। इसके उपयोग से बालकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। बालकों में जिज्ञासा अभिवृत्ति तथा अभिरुचियों का विकास होता है जिससे छात्र कठिन समस्याओं का भी सरलता से उपाय खोज सकते हैं।
(ii) पूछताछ प्रक्रिया का विश्लेषण—इसके अन्तर्गत बालकों की पूछताछ प्रक्रिया का विश्लेषण करने के लिए कहा जाता है। शिक्षक सम्पूर्ण प्रक्रिया का मूल्यांकन तथा पुननिरीक्षण करता है तथा उपयुक्त निर्णय लेकर निष्कर्ष तक पहुँचने का प्रयत्न करता है।
(iii) सामाजिक प्रणाली–शिक्षक इस विधि में नेतृत्व प्रदान करता है तथा बालकों को पूछताछ के लिए प्रेरित करता है और प्राप्त निष्कर्षों के परीक्षण के लिए अवसर प्रदान करता है। इस विधि में बालक तथा शिक्षक दोनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(iv) मूल्यांकन प्रणाली इस विधि के अन्तर्गत मूल्यांकन के लिए प्रयोगात्मक परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है। इससे ज्ञात होता है कि बालक समस्या समाधान के द्वारा अपना कार्य कितने तथा किस सीमा तक प्रभावी ढंग से करता है।
वार्तालाप नीति–किसी भी बिन्दु का सामूहिक रूप से विश्लेषण किया जाता है। यह विधि उच्च स्तरीय स्तर पर विचार गोष्ठी, विचार संगोष्ठी, सम्मेलन, विचार समिति एवं कार्यशाला (Workshop) द्वारा प्रयोग में लायी जाती है।
( 2 ) वार्तालाप शिक्षण विधि का अर्थ वार्तालाप एक ऐसी विधि है जिसमें आठ या 10 सदस्य होते हैं, निश्चित पाठ्य बिन्दु (समस्या) उस पर एक-एक करके अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तथा आपस से प्रश्न पूछकर समस्या का समाधान निकालते हैं।
वार्तालाप विधि की परिभाषा समूह चर्चा या वार्तालाप की तैयारी करना आवश्यक होता है। प्रकरण का चुनाव करना पड़ता है तथा इस प्रकरण पर अपने आदर्श एवं मूल्यों के आधार पर अपने विचारविमर्श करते हैं तथा आपस में पूछे प्रश्नों का उत्तर देकर एक-दूसरे को सन्तुष्ट करते हैं। इसकी परिभाषा निम्नलिखित है
हरबर्ट गुली के अनुसार, ‘वार्तालाप उस समय होता है जब व्यक्तियों का एक समूह आमने-सामने एकत्रित होकर मौखिक अन्त:क्रिया द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।’
वार्तालाप नीति के प्रकार—
(i) ‘बज’ वार्तालाप – इस संक्षिप्त संरचनाकृत उद्देश्यपूर्ण ‘बज सत्र’ में छात्रों का एक छोटा समूह भाग लेता है जिसे बाद में सम्पूर्ण कक्षा अपनाती है। इसका आधार कुछ विशिष्ट प्रश्न होते हैं।
इसको हम निम्न रूपों में समझ सकते हैं—
(1)शिक्षक द्वारा समस्या प्रस्तुत करना।
(2) छात्रों के एक वर्ग द्वारा वार्तालाप में भाग लेना ।
(3) रिपोर्ट तैयार करना ।
(4) विशिष्ट प्रश्न तैयार करना ।
(5) सम्पूर्ण कक्षा के समक्ष प्रस्तुत करना ।
इस प्रकार कक्षा के कई भागों में विभाजित करके उन्हें ‘बज सत्र’ में भाग लेने को प्रेरित किया जाता है।
(ii) संरचनाकृत वार्तालाप नीति–वार्तालाप नीति का तीसरा रूप संरचनाकृत है। संरचनाकृत नीति का उदय अधिगम की संरचना से हुआ है। अधिगम संरचना के अनुसार शिक्षण नीतियों का चयन करने से सीखने के उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है ।
(iii) सार्थक संरचनाकृत सामान्य वार्तालाप—ये उद्देश्यपूर्ण संरचनाकृत समूह वार्तालाप है जो सम्पूर्ण कक्षा में दी गई रिपोर्ट का आधार होता है।
शिक्षण बिन्दुओं पर वार्तालाप —यह सामूहिक वार्तालाप है जो कि निश्चित वार्तालाप के बिन्दुओं पर आधारित होता है—
(1) रिपोर्ट सम्पूर्ण कक्षा के वार्तालाप पर आधारित होती है।
(2) इसमें न तो ‘बज सत्र’ की भाँति समस्या पर वार्तालाप एक समूह से पहले होता है तथा न ही संरचनाकृत वार्तालाप की भाँति सामान्य वार्तालाप की स्वतन्त्रता होती है ।
(3) इसमें वार्तालाप के बिन्दु निश्चित रहते हैं।
(4) शिक्षक छात्रों के समक्ष सीधे ही लक्ष्य को रखता है।
(5) इसमें सभी कक्षाएँ भाग लेती हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त संरचनाकृत वार्तालाप नीति के तीनों रूपों के माध्यम से छात्रों के व्यवहार उनके सम्प्रेषण, अभिवृत्तियाँ, मूल्यों तथा सामाजिक विकास में वांछित परिवर्तन लाया जाता है।
वार्तालाप विधि की सीमाएँ-
(1) अनावश्यक आलोचना-प्रत्यालोचना से इसका वास्तविक उद्देश्य नष्ट हो जाता है।
(2) सभी छात्र संकोचवश इसमें भाग नहीं लेते तथा घबराते हैं।
(3) सभी आयु वर्ग तथा मानसिक स्तर के छात्रों के लिए उपयुक्त नहीं ।
(4) छात्रों में इससे ईर्ष्या व स्पर्धा की भावना जागृत हो जाती है।
वार्तालाप को सफल बनाने के लिए सुझाव —
(1) इसमें लक्ष्य स्पष्ट रूप से रखा जाये।
(2) रचनात्मक व सार्थक आलोचना को बढ़ावा दिया जाय।
(3) शिक्षक को वाद-विवाद में अपना प्रभुत्व नहीं जमाना चाहिए वरन् छात्रों की अनुक्रिया अधिक होनी चाहिए।
(4) समस्या की पहचान, विश्लेषण व समस्या समाधान करने के लिए यह विधि प्रयुक्त की जाती है। इसमें छात्रों को अपने समूह का मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
(5) बहुत ज्यादा कमजोर वर्ग के बालकों के लिए ‘बज सत्र’ में विषय को सरल रूप में प्रस्तुत किया जाये।
(6) वार्तालाप का आधार ज्ञान, चिन्तन तथा तर्क होना चाहिए।
(7) इसमें समयानुसार व आवश्यकतानुसार श्रव्य-दृश्य सामग्री का उपयोग भी करना चाहिए।
(8) शिक्षक प्रश्नों द्वारा छात्रों को प्रेरित करे।
(9) शिक्षक का ज्ञान स्पष्ट गहरा हो तथा वह सक्रिय नियन्त्रक का कार्य करे।
(10) विषयों को इस रूप में प्रस्तुत किया जाये कि सभी प्रकार के बालक इसमें भाग लें।
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