समुदाय से आप क्या समझते हैं? समुदाय के प्रमुख लक्षणों को लिखिये ।

समुदाय से आप क्या समझते हैं? समुदाय के प्रमुख लक्षणों को लिखिये । 

उत्तर— समुदाय (Community) – प्रकृति में विभिन्न प्रकार के जीव पारस्परिक रूप से संगठन में विकसित होते हैं। अनेक जातियों के समूह जो प्राकृतिक भाग में एक-दूसरे के साथ परस्पर सहनशील और लाभप्रद क्रियाएँ दर्शाते हैं, सम्मिलित रूप से एक समुदाय कहलाते हैं। एक समुदाय में जीव एक समान वातावरण में विकसित होते हुए समान आवास में रहते हैं। वन, घास के मैदान, रेगिस्तान और तालाब प्राकृतिक समुदाय हैं ।

समुदाय की अवधारणा किसी भी प्रकार से नई नहीं है और इसे थियोफ्रैस्टस (Theophrastus 370-250 B.C.) के समय से जाना जाता है जिन्होंने पौधों के समुदाय के अस्तित्व या विभिन्न पर्यावरणीय भागों में जातियों के संगठनों की पहचान की थी ।
समुदाय के लक्षण (Features of Community)–समुदाय के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं—
(1) जातीय विभिन्नता (Species Diversity) – प्रत्येक समुदाय अनेक प्रकार की जातियों के पौधों, जन्तुओं और सूक्ष्म जीवों से बना होता है जो एक-दूसरे से वर्गीकरण के आधार पर भिन्न होते हैं। समुदाय में जातियों की संख्या और समष्टि स्तर अत्यधिक भिन्न होते हैं । जातीय विभिन्नता के दो चरण होते हैं—
(i) क्षेत्रीय विभिन्नता – इसके अन्तर्गत विभिन्न देश अथवा महाद्वीप आते हैं जिनमें विभिन्न जातियाँ निवास करती हैं।
(ii) स्थानीय विभिन्नता – जहाँ एक देश में विभिन्न समुदाय विभिन्न अक्षांश पर पाए जाते हैं ।
(2) प्रभाविता या प्रमुखता (Dominance) – सम्पूर्ण समुदाय की प्रकृति तथा कार्य के निर्धारण में समुदाय के सभी जीवों की भूमिका बराबर नहीं होती है। इनमें से कुछ जीव ही समुदाय का निर्धारण करते हैं। ये समूह समुदाय पर विस्तृत रूप से प्रभाव डालते हैं। इन जीवजातियों को प्रभावी कहा जाता है। समुदाय, उत्पादक (producer) दीर्घ उपभोक्ता (macro consumer) और सूक्ष्म उपभोक्ता (micro consumer) रखता है। इन जातियों में और जाति समूह में जो जातियाँ मुख्य रूप से ऊर्जा प्रवाह को नियन्त्रित करती हैं तथा प्रमुखता से दूसरी जातियों के पर्यावरण को प्रभावित करती हैं वे प्रभावी (Dominant) या पारिस्थितिक प्रभावी (ecological dominants) कहलाती हैं।
(3) संरचना तथा वृद्धि रचना – समुदाय को उनकी विभिन्न वृद्धि रचना; जैसे—पेड़, शाक, झाड़ इत्यादि के आधार पर वर्णित किया जाता है। प्रत्येक वृद्धि रचना; जैसे—पेड़ में विभिन्न प्रकार के पादप, जैसे—बड़ी पत्तियों के वृक्ष, सदाबहार वृक्ष इत्यादि आते है। ये विभिन्न वृद्धि रचनाएँ किसी समुदाय की संरचना को बनाते हैं। विभिन्न वृद्धि रचनाओं के क्रम के आधार पर समुदाय
(i) स्तरीकरण (ऊर्ध्वाधर स्तरीकरण) तथा
(ii) क्षेत्रीकरण (क्षैतिज स्तरीकरण) प्रकार के होते हैं।
(4) वितरण चित्राम – संरचना (Distribution Patterns Structure )—समुदाय को प्रमुख विकसित रूपों; जैसे—पेड़, शाक, झाड़ी इत्यादि के रूप में वर्णित किया गया है। प्रत्येक वृद्धि रूप में अनेक प्रकार के पौधे; जैसे— विस्तृत पत्ती वाले पौधे, सदाबहार पौधे इत्यादि हो सकते हैं। ये अनेक वृद्धि रूप समुदाय की आकृति को निर्धारित करते हैं। आकृति जो जीवों के वितरण से और उनकी पर्यावरण के साथ परस्पर क्रिया से उत्पन्न होती है, इसे हचिन्सन (Hutchinson, 1953) के द्वारा ‘पैटर्न’ (pattern) कहा गया।
(5) पोषण संरचना – आत्म-निर्भरता (Trophic Structure : Self-Sufficiency)—पोषण के आधार पर प्रत्येक समुदाय आत्मनिर्भरता तथा पूर्ण सन्तुलित जीवों के समूह के साथ रहता है।
(6) समुदाय गतिकी – पारिस्थितिकीय अनुक्रम (Community Dynamics : Ecological Sucession ) – प्रत्येक समुदाय का अपने विकास का इतिहास है, जिसमें इसकी उत्पत्ति और विकास के स्तर है। यह समय के साथ दिशात्मक बदलाव के कारण उत्पन्न होते है। यह दिशात्मक बदलाव अर्थात् पारिस्थितिक अनुक्रम (Ecological succession) पारिस्थितिक तन्त्र के विकास (ecosystem development) के रूप में भी जाना जाता है।
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